Sunday, August 25, 2013

रुपए की नहीं गवर्नेंस की फिक्र कीजिए

डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरने का मतलब कितने लोग जानते हैं? कितने लोग यह जानते हैं कि यह कीमत तय कैसे होती है? और कितने लोग जानते हैं कि इसका हमारी जिन्दगी से वास्ता क्या है? हम महंगाई को जानते हैं बाजार में चीजों की उपलब्धता को पहचानते हैं और अपनी आय को कम या ज्यादा होने की प्रक्रिया को भी समझते हैं। विश्व की मुद्राओं की खरीद-फरोख्त का बाजार है विदेशी मुद्रा बाजार। दूसरे वित्तीय बाजारों के मुकाबले यह काफी नया है और सत्तर के दशक में शुरू हुआ है। फिर भी कारोबार के लिहाज से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग चार हजार अरब अमेरिकी डालर के बराबर कामकाज होता है। दूसरे बाजारों के मुकाबले यह सबसे ज्यादा स्थायित्व वाला बाजार है। फिर भी इसमें इन दिनों हो रहे बदलाव से हम परेशान हैं। यह बदलाव लम्बा नहीं चलेगा। एक जगह पर जाकर स्थिरता आएगी। वह बिन्दु कौन सा है यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा।

Wednesday, August 21, 2013

Growth Vs Development Debate

Everything you wanted to know about the Sen-Bhagwati debate

The debate between two of the finest Indian economists—Amartya Sen and Jagdish Bhagwati—reflects the deeper question facing India’s political leaders

 The debate on economic policy has never been as riveting as it is today, with two giants from the world of academic economics, Amartya Sen and Jagdish Bhagwati, tackling each other on what India’s governance priorities should be. Sen is a Nobel Prize winner in economics and a professor of economics and philosophy at Harvard University. Bhagwati is a Columbia University professor of economics, who has been nominated for the top honour several times. Along with Sen and Avinash Dixit, he is considered to be among the three greatest Indian economists ever.

Tuesday, August 20, 2013

लाइसेंसी पत्रकारिता सम्भव नहीं

पत्रकारिता से जुड़ी वैबसाइट सैंस सैरिफ ने अपने पाठकों से इस विषय पर राय माँगी है कि पत्रकारों के चयन के लिए क्या कोई राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा होनी चाहिए? और यह भी क्या कोई लाइसेंस होना चाहिए जैसा वकालत या डॉक्टरी वगैरह का होता है? रोचक बात यह है कि इस पोल के जवाब में लगभग बराबरी की संख्या में पक्ष और विपक्ष में वोट पड़े हैं। कुछ समय पहले जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने भी पत्रकारिता से जुड़ने के एक बुनियादी शैक्षिक योग्यता की सलाह दी थी। बड़ी संख्या में पत्रकार भी मानते हैं कि योग्यता होनी चाहिए। इसे बड़ी संख्या कहने के बजाय लगभग बहुमत कहना चाहिए। किसी को क्यों आपत्ति होगी? हाँ आपत्ति उस तरीके और कारण पर होनी चाहिए जो इस माँग के पीछे है। बहरहाल आप अपनी राय बनाएं उससे पहले इस बात की पृष्ठभूमि तक भी आपको जाना चाहिए।

Sunday, August 18, 2013

सदाचार भी इसी राजनीति में है

जोनाथन स्विफ्ट ने लिखा है, 'दुनिया जिसे राजनीति के नाम से जानती है वह केवल भ्रष्टाचार है और कुछ नहीं।' सत्रहवीं-अठारहवीं सदी के इंग्लैंड में राजनीतिक व्यवस्था बन ही रही थी। पत्रकारिता जन्म ले रही थी। उन दिनों विमर्श पैम्फलेट्स के मार्फत होता था। आपने गुलीवर की यात्राएं पढ़ी होंगी, उसके लेखक जोनाथन स्विफ्ट। स्विफ्ट अपने दौर के श्रेष्ठ पैम्फलेटीयर थे। वह भी नई विधा थी। स्विफ्ट ने उस दौर की दोनों महत्वपूर्ण पार्टियों टोरी और ह्विग के लिए पर्चे लिखे थे। वे श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक थे। अखबारों में सम्पादकीय लेखन के सूत्रधार थे, बल्कि पहले सम्पादकीय लेखक थे। तकरीबन तीन सौ साल पहले उनकी राजनीति के बारे में ऐसी राय थी।

सत्ता-केन्द्र कांग्रेस-भाजपा ही रहेंगे

हमारे देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तमाम कारणों से विश्वसनीय नहीं होते। फिर भी वे सच के करीब होते हैं। सर्वेक्षणों के संचालक अक्सर अपने दृष्टिकोण आरोपित करते हैं। फिर भी धीरे-धीरे यह राय बन रही है कि सन 2014 के चुनाव परिणामों कैसे होंगे। मोटा निष्कर्ष है कि न तो यूपीए को और न एनडीए को कोई खास फायदा होगा। शायद क्षेत्रीय दलों को कुछ लाभ हो। वह भी कितना और कैसा होगा इसे लेकर भ्रम है। इस साल जनवरी में हुए इंडिया टुडे-नील्सन और एबीपी न्यूज-नील्सन के 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे के अनुसार देश में आज चुनाव हों तो भाजपा की अगुआई वाला एनडीए कांग्रेस के नेतृत्व में सत्तारूढ़ यूपीए-2 पर भारी पड़ेगा। फिर मई में कुछ सर्वेक्षणों से यह बात उभर कर आई कि कांग्रेस हार जाएगी। मतलब नहीं कि भाजपा जीत जाएगी। मतलब सिर्फ इतना है कि जनता आज के हालात से नाराज़ है।