खेलों की दुर्दशा दिखानी होती है तो हम इशारा राजनीति की ओर करते हैं। कहते हैं कि भाई बड़ी राजनीति है। और राजनीति की दुर्दशा होती है तो उसे खेल कहते हैं। कुछ लोग इसे राजनीति खेलना कहते हैं। संयोग है कि पिछले ढाई साल से हम अपनी राजनीति में जो हंगामा देख रहे हैं, उसकी शुरूआत कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारियों से हुई थी। राष्ट्रीय क्षितिज पर उन दिनों एक नया हीरो उभरा था, सुरेश कलमाडी। भारतीय ओलिम्पिक संघ के अध्यक्ष कलमाडी के साथ कॉमनवैल्थ गेम्स ऑर्गनाइज़िंग कमेटी के सेक्रेटरी जनरल ललित भनोत और डायरेक्टर जनरल वीके वर्मा की उस मामले में गिरफ्तारी भी हुई थी। बहरहाल दो साल के भीतर सारी चीजें बदल गई हैं। सुरेश कलमाडी की भारतीय ओलिम्पिक एसोसिएशन में वापसी तो नहीं हो पाई, पर दो दिन बाद यानी 5 दिसम्बर को होने वाले भारतीय ओलिम्पिक महासंघ (आईओए) के चुनाव में ललित भनोत निर्विरोध सेक्रेटरी जनरल चुन लिए जाएंगे। अध्यक्ष पद के लिए हरियाणा के राजनेता अभय चौटाला का नाम तय हो चुका है। पिछले एक हफ्ते की गहमागहमी में चौटाला-भनोत सहयोग उभर कर आया। आईओए के पूर्व सेक्रेटरी जनरल रणधीर सिंह और उनके साथियों के मैदान से हट जाने के बाद चुनाव अब सिर्फ औपचारिकता रह गए हैं। यह तब सम्भव हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पक कमेटी (आईओसी) की एथिक्स कमीशन ने कलमाडी, भनोत और वर्मा को उनके पदों से निलंबित करने का सुझाव दिया था। इसलिए माना जाता था कि भनोत चुनाव में नहीं उतरेंगे, पर जैसाकि स्वाभाविक है अभय चौटाला ने ही राजनीति से उदाहरण दिया है कि आरोप तो मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और जे जयललिता पर भी हैं। ललित भनोत कहीं से दोषी तो साबित नहीं हुए हैं।
Tuesday, December 4, 2012
Sunday, December 2, 2012
क्या सुषमा स्वराज ने मोदी के लिए रास्ता खोल दिया?
नरेन्द्र मोदी के बाबत सुषमा स्वराज के वक्तव्य का अर्थ लोग अपने-अपने तरीके से निकाल रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि सुषमा स्वराज ने भी नामो का समर्थन कर दिया, जो खुद भाजपा संसदीय दल का नेतृत्व करती हैं और जब भी सरकार बनाने का मौका होगा तो प्रधानमंत्री पद की दावेदार होंगी। पर सुषमा जी के वक्तव्य को ध्यान से पढ़ें तो यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा। हाँ इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नामो के नाम पर उनका विरोध नहीं है। गुजरात की चुनाव सभाओं में अरुण जेटली ने भी इसी आशय की बात कही है।
यह दूर की बात है कि एनडीए कभी सरकार बनाने की स्थिति में आता भी है या नहीं, पर लोकसभा चुनाव में उतरते वक्त पार्टी सरकार बनाने के इरादों को ज़ाहिर क्यों नहीं करना चाहेगी? ऐसी स्थिति में उसे सम्भावनाओं के दरवाजे भी खुले रखने होंगे। अभी तक ऐसा लगता था कि पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय राजनीति में लाने का विरोध है। इस साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में उन्हें नहीं आने दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई कार्यकारिणी की बैठक के बाद से यह जताना शुरू कर दिया है कि मैं राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक हूँ। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे वार करने शुरू किए जो सहजे रूप से राष्ट्रीय समझ का प्रतीक है।
यह दूर की बात है कि एनडीए कभी सरकार बनाने की स्थिति में आता भी है या नहीं, पर लोकसभा चुनाव में उतरते वक्त पार्टी सरकार बनाने के इरादों को ज़ाहिर क्यों नहीं करना चाहेगी? ऐसी स्थिति में उसे सम्भावनाओं के दरवाजे भी खुले रखने होंगे। अभी तक ऐसा लगता था कि पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय राजनीति में लाने का विरोध है। इस साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में उन्हें नहीं आने दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई कार्यकारिणी की बैठक के बाद से यह जताना शुरू कर दिया है कि मैं राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक हूँ। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे वार करने शुरू किए जो सहजे रूप से राष्ट्रीय समझ का प्रतीक है।
Friday, November 30, 2012
बड़े राजनीतिक गेम चेंजर की तलाश
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हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
कांग्रेस
पार्टी ने कंडीशनल कैश ट्रांसफर कार्यक्रम को तैयार किया है, जिसे आने वाले समय का
सबसे बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है। सन 2004 में एनडीए की पराजय से सबक लेकर कांग्रेस
ने सामाजिक जीवन में अपनी जड़ें तलाशनी शुरू की थी, जिसमें उसे सफलता मिली है। ग्रामीण
रोजगार गारंटी योजना ने उसे 2009 का चुनाव जिताया। उसे पंचायत राज की शुरूआत का श्रेय
भी दिया जा सकता है। सूचना के अधिकार पर भी वह अपना दावा पेश करती है, पर इसका श्रेय
विश्वनाथ प्रताप सिंह को दिया जाना चाहिए। इसी तरह आधार योजना का बुनियादी काम एनडीए
शासन में हुआ था। सर्व शिक्षा कार्यक्रम भी एनडीए की देन है। हालांकि शिक्षा के अधिकार
का कानून अभी तक प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं हो पाया है, पर जिस दिन यह अपने पूरे
अर्थ में लागू होगा, वह दिन एक नई क्रांति का दिन होगा। भोजन के अधिकार का मसौदा तो
सरकार ने तैयार कर लिया है, पर उसे अभी तक कानून का रूप नहीं दिया जा सका है। प्रधानमंत्री
ने हाल में घोषणा भी की है कि अगली पंचवर्षीय योजना से देश के सभी अस्पतालों में जेनरिक
दवाएं मुफ्त में मिलने लगेंगी। सामान्य व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या
है। कंडीशनल कैश ट्रांसफर योजना का मतलब है कि सरकार नागरिकों को जो भी सब्सिडी देगी
वह नकद राशि के रूप में उसके बैंक खाते में जाएगी।
Wednesday, November 28, 2012
कुछ भी हो साख पत्रकारिता की कम होगी
ज़ी़ न्यूज़ के सम्पादक की गिरफ्तारी के बारे में सोशल मीडिया में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसमें कई तरह की व्यक्तिगत बातें भी हैं। कुछ लोग सुधीर चौधरी से व्यक्तिगत रूप से खफा हैं। वे इसे अपनी तरह देख रहे हैं, पर काफी लोग हैं जो मीडिया और खासकर समूची पत्रकारिता की साख को लेकर परेशान हैं। इन दोनों सवालों पर हमें दो अलग-अलग तरीकों से सोचना चाहिए।
एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।
एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।
Monday, November 26, 2012
यथा राजनीति, तथा व्यवस्था
जब
हम राजनीति में सक्रिय होते हैं तो जाने-अनजाने सिस्टम से जुड़े संवेदनशील सवालों से
भी रूबरू होते हैं। टू-जी घोटाले के कारण पिछले दो साल से भारतीय राजनीति में भूचाल
आया है। यह भूचाल केवल राजनीति तक सीमित रहता तब ठीक भी था, पर इसने हमारी सांविधानिक
संस्थाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। संसद के कई सत्र परोक्ष या अपरोक्ष रूप
से पूरी तरह या आंशिक रूप से ठप हो गए। यह व्यवस्था की विसंगति है और राजनीति की भी।
सीएजी दफ्तर के पूर्व महानिदेशक आरपी सिंह के बयान के बाद और कुछ हो या न हो, इतना
ज़रूर झलक रहा है कि सीएजी की रपटें भी राजनीति के रंग से रंग सकती हैं। टू-जी के स्पेक्ट्रम
आबंटन की कीमत किस आधार पर तय होनी चाहिए थी और संभावित नुकसान कितना हुआ, उसे लेकर
लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी का नाम जुड़ गया है। इससे सीएजी विनोद
राय विवादास्पद हो गए हैं। इसके पहले कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी इस
बात को कह रहे थे, पर अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस बात को रेखांकित किया
है। अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में यह विवाद किस दिशा में जाएगा। इसके
पहले पीएमओ में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सीएजी की कार्यशैली पर टिप्पणी की थी
और कहा था कि सरकार सीएजी को एक के बजाय अनेक सदस्यों का बनाने पर विचार करेगी। इस
बयान के फौरन बाद प्रधानमंत्री ने सफाई दी कि ऐसा कोई विचार नहीं है, पर सीएजी को लेकर
सरकार के मन में कड़वाहट ज़रूर है।
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