Sunday, May 13, 2012

इससे बेहतर है कि कार्टून बनाना-छापना बैन कर दीजिए

लगता है कुएं में भाँग पड़ी है। सन 1949 में बना एक कार्टून विवाद का विषय बन गया। संसद में हंगामा हो गया। सरकार ने माफी माँग ली। एनसीईआरटी की किताब बैन कर दी गई। किताब को स्वीकृति देने वाली समिति के विद्वान सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। मानव संसाधन मंत्री ने कहा, '' मैंने एक और फैसला किया है कि जिस पुस्तक में भी इस तरह के कार्टून होंगे, उन्हें आगे वितरित नहीं किया जाएगा।'' बेहतर होता कि भारत सरकार कार्टून बनाने पर स्थायी रूप से रोक लगा दे। साथ ही हर तरह की पाठ्य पुस्तक पर हर तरह की आपत्तिजनक सामग्री हटाने की घोषणा कर दे। उसके बाद किताबों में कुछ पूर्ण विराम, अर्ध विराम, कुछ क्रियाएं और सर्वनाम बचेंगे, उन्हें ही पढ़ाया जाए। इस कार्टून के पहले बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर बने एक कार्टून ने भी देश का ध्यान खींचा था, जिसमें कार्टून का प्रसारण करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके पहले कपिल सिब्बल ने इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ कार्रवाई करने की बात जब की थी तब भी मामला मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि के कार्टूनों-मॉर्फ्ड पिक्चरों का था।

Friday, May 11, 2012

कितने सच सामने लाएंगे आमिर खान?

सतीश आचार्य का कार्टून साभार
नए रविवारी सीरियल ‘सत्यमेव जयते’ के प्रसारण के साथ ही लाखों-लाख लोगों ने आमिर खान से सम्पर्क किया है। इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। सत्यमेव जयते की वैबसाइट पर जाकर आप एक पोल में शामिल हो सकते हैं। इसमें पूछा गया है कि क्या राजस्थान में स्त्री भ्रूण हत्या के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की जानी चाहिए? कुछ लोगों का कहना है कि यह सीरियल नहीं आंदोलन है। इसकी मार्केटिंग पर 20 करोड़ से ज्‍यादा खर्च हुआ है। आखिरी मिनट तक सामान्य दर्शक को नहीं पता था कि इस सीरियल में क्या है। मीडिया विशेषज्ञ इस बात पर निहाल हैं कि कितनी चतुराई से दूरदर्शन द्वारा वर्षों पहले तैयार किए गए स्लॉट का इस्तेमाल कर लिया गया। सीरियल प्रसारण के अगले रोज दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार के सम्पादकीय पेज पर आमिर खान का स्त्री भ्रूण हत्या विषय पर लेख प्रकाशित हुआ। अब हर सोमवार को उनका लेख पढ़ने को मिलेगा। शायद यह भी यह सीरियल की मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है। अखबारों को भी आईबॉल्स जमा करने के लिए के लिए टीवी स्टार चाहिए।

Monday, May 7, 2012

एक और झंझावात से गुजरता नेपाल


दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर बर्मा तक और मालदीव से नेपाल तक तकरीबन हर देश में राजनीतिक हलचल है। हालांकि बर्मा को भू-राजनीतिक भाषा में दक्षिण पूर्व एशिया का देश माना जाता है, पर वह अनेक कारणों से हमेशा हमारे करीब रहेगा। भारत इन सभी देशों के बीच में पड़ता है और इस इलाके का सबसे बड़ा देश है। पर हमारा महत्व केवल बड़ा देश होने तक सीमित नहीं है। इन सभी देशों की समस्याएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं।

Sunday, May 6, 2012

एनसीटीसी की भैंस चली गई पानी में

सतीश आचार्य का कार्टून
नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर पर शनिवार को हुई बैठक से जिन्होंने उम्मीदें लगा रखी थीं, उन्हें निराशा हाथ लगी। कोई भी पक्ष अपनी बात से हिलता नज़र नहीं आ रहा है। खासतौर से जो इसके विरोधी हैं उनके रुख में सख्ती ही आई है। मसलन ममता बनर्जी और जयललिता चाहती हैं कि पहले इसकी अधिसूचना वापस ली जाए। केन्द्र सरकार ने सावधानी बरती होती तो यह केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का मामला नहीं बनता। पर अब बन गया है। फिलहाल इसमें किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं लगती।

Thursday, May 3, 2012

हाईस्पीड रेलगाड़ियाँ यानी तेज रफ्तार शहरीकरण




शहरीकरण समस्या है या समस्याओं का समाधान है? पहली बात यह कि आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र शहर हैं, गाँव नहीं हैं। दूसरे खेती में क्रांति के लिए भी औद्योगिक क्रांति की ज़रूरत है। खेती में विकास दर बढ़ भी जाए, पर गाँवों के विकास का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। गाँवों से शहर आए लोग तमाम दिक्कतों से जूझने के बावजूद गाँव वापस नहीं जाना चाहते। पर शहरीकरण विषमता और तमाम समस्याएं लेकर आता है। हमें मानवीय चेहरे वाले शहरीकरण की ज़रूरत है, जो प्रदूषण मुक्त हो और जहाँ गरीबों को सम्मान और सुख से जीने के साधन मुहैया हों।