पता नहीं कितने अखबारों में यह खबर थी कि 'कौन बनेगा करोड़पति' में पाँच करोड़ जीतने वाले मोतीहारी के सुशील कुमार ने श्रीमती सोनिया गांधी से भेंट की। यह सम्मान ओलिम्पिक मेडल जीतने वालों को मिलता रहा है। कल यानी इतवार के अखबारों ने इस बार के केबीसी की व्यावसायिक सफलता का गुणगान किया है। किस तरह उसने 'स्मॉल टाउन इंडिया' की भावनाओं को भुनाया। बहरहाल कुछ ज्ञान और कुछ भाग्य के सहारे चलने वाला खेल गाँव-गाँव, गली-गली सपने बिखेरने में कामयाब हुआ है। यह सायास था या अनायास पर 'कौन बनेगा करोड़पति' में कुछ नई बातें देखने को मिलीं। इसमें शामिल होने वालों की बड़ी तादाद बिहार, झारखंड और हिन्दी राज्यों के पिछड़े इलाकों से थी। कार्यक्रम के प्रस्तोताओं ने दुर्भाग्य के शिकार, हताश और विफलता से जूझते लोगों पर खासतौर से ध्यान दिया। उनकी करुण-कथाएं देश के सामने रखीं। अमिताभ बच्चन ने इन निराश लोगों के जीवन में खुशियाँ बाँटीं। सन 2000 में जब यह सीरियल जब शुरू हुआ था तब लोगों को करोड़पति बनने का यह रास्ता नज़र आया। यह रास्ता सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक की लॉटरी संस्कृति से बेहतर था। कम से कम लोगों ने जीके का रट्टा तो लगाया।
Wednesday, November 23, 2011
उत्तर प्रदेश में शोर ज़्यादा और मुद्दे कम
राजनीतिक दलों को समझदार माना जाता है। इतना तो ज़रूर माना जाता है कि वे जनता के करीब होते हैं। उन्हें उसकी नब्ज़ का पता होता है। बावज़ूद इसके वे अक्सर गलती कर जाते हैं। हारने वाली पार्टियों को वास्तव में समय रहते यकीन नहीं होता कि उनकी हार होने वाली है। उत्तर प्रदेश में हालांकि पार्टियाँ एक अरसे से प्रचार में जुटीं हैं, पर उनके पास मुद्दे कम हैं, आवेश ज्यादा हैं।
मुलायम सिंह ने बुधवार को एटा की रैली से अपने चुनाव अभियान की शुरूआत की। समाजवादी पार्टी का यकीन है कि मुलायम सिंह जब भी एटा से अभियान शुरू करते हैं, जीत उनकी होती है। एटा उनका गढ़ रहा है, पर 2007 के चुनाव में उन्हें यहाँ सफलता नहीं मिली। समाजवादी पार्टी इस बार अपने मजबूत गढ़ों को लेकर संवेदनशील है। एटा की रैली में पार्टी के महामंत्री मुहम्मद आजम खां ने कहा, ‘मैं यहाँ आपसे आपका गुस्सा माँगने आया हूँ। आप सबको मायावती के कार्यकाल में हुए अन्याय का बदला लेना है।‘ समाजवादी पार्टी घायल शेर की तरह इस बार 2007 के अपमान का बदला लेना चाहती है। मुलायम सिंह इस बार खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए नहीं मायावती को हराने के लिए मैदान में हैं।
मुलायम सिंह ने बुधवार को एटा की रैली से अपने चुनाव अभियान की शुरूआत की। समाजवादी पार्टी का यकीन है कि मुलायम सिंह जब भी एटा से अभियान शुरू करते हैं, जीत उनकी होती है। एटा उनका गढ़ रहा है, पर 2007 के चुनाव में उन्हें यहाँ सफलता नहीं मिली। समाजवादी पार्टी इस बार अपने मजबूत गढ़ों को लेकर संवेदनशील है। एटा की रैली में पार्टी के महामंत्री मुहम्मद आजम खां ने कहा, ‘मैं यहाँ आपसे आपका गुस्सा माँगने आया हूँ। आप सबको मायावती के कार्यकाल में हुए अन्याय का बदला लेना है।‘ समाजवादी पार्टी घायल शेर की तरह इस बार 2007 के अपमान का बदला लेना चाहती है। मुलायम सिंह इस बार खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए नहीं मायावती को हराने के लिए मैदान में हैं।
एक दाँव जो उल्टा भी पड़ सकता है
उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रदेश को चार हिस्सों में बाँटने वाला प्रस्ताव आनन-फानन पास तो हो गया, पर इससे विभाजन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। अलबत्ता यह बात ज़रूर कही जा सकती है कि यह इतना महत्वपूर्ण मामला है तो इस पर बहस क्यों नहीं हुई? सरकार ने साढ़े चार साल तक इंतज़ार क्यों किया? इस प्रस्ताव के पास होने मात्र से उत्तर प्रदेश का चुनाव परिदृश्य बदल जाएगा ऐसा नहीं मानना चाहिए।
और मुगल राज किसी न किसी रूप में इस ज़मीन से होकर गुजरा था। वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, इलाहाबाद, मेरठ, अलीगढ़, गोरखपुर, लखनऊ, आगरा, कानपुर, बरेली जैसे शहरों का देश में ही नहीं दुनिया के प्राचीनतम शहरों में शुमार होता है। सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 की आज़ादी तक उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय आंदोलनों में सबसे आगे होता था। वैदिक, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनेक पवित्र स्थल उत्तर प्रदेश में हैं। सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से यह भारत का हृदय प्रदेश है।
Monday, November 14, 2011
कर ही क्या सकता था बन्दा खाँस लेने के सिवा
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हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
Friday, November 11, 2011
राहुल गांधी को लेकर कुछ किन्तु-परन्तु
एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि राहुल गांधी भविष्य में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता होंगे। इसी विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि यह कब होगा और वे किस पद से इसकी शुरूआत करेंगे। पिछले दिनों जब श्रीमती सोनिया गांधी स्वास्थ्य-कारणों से विदेश गईं थीं, तब आधिकारिक रूप से राहुल गांधी को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अन्ना-आंदोलन के कारण वह समय राहुल को प्रोजेक्ट करने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सका। बल्कि उस दौरान अन्ना को गिरफ्तार करने से लेकर संसद में लोकपाल-प्रस्ताव रखने तक के सरकारी फैसलों में इतने उतार-चढ़ाव आए कि बजाय श्रेय मिलने के पार्टी की फज़ीहत हो गई। राहुल गांधी को शून्य-प्रहर में बोलने का मौका दिया गया और उन्होंने लोकपाल के लिए संवैधानिक पद की बात कहकर पूरी बहस को बुनियादी मोड़ देने की कोशिश की। पर उनका सुझाव को हवा में उड़ गया। बहरहाल अब आसार हैं कि राहुल गांधी को पार्टी कोई महत्वपूर्ण पद देगी। हवा में यह बात है कि 19 नवम्बर को श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्मदिन के अवसर पर वे कोई नई भूमिका ग्रहण करेंगे।
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