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Sunday, September 11, 2022

‘मिशन 24’ की राजनीतिक यात्राएं


राष्ट्रीय-राजनीति का चुनाव-विमर्श अचानक तेज हो गया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिस दिन शुरू हो रही थी, उसके एक दिन पहले नीतीश कुमार दिल्ली में 2024 के चुनाव की संभावनाओं को लेकर मुलाकातें कर रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी और राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अलावा शरद पवार, एचडी कुमारस्वामी, ओम प्रकाश चौटाला, सीताराम येचुरी और दूसरे कुछ नेताओं से भी मुलाकात की। पार्टी उन्हें पीएम-उम्मीदवार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं नीतीश कुमार ने दिल्ली में कहा कि मैं दावेदार नहीं बनना चाहता। सिर्फ विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहा हूँ। 4 सितंबर को रामलीला मैदान में हुई रैली में राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। यानी कि बीजेपी को हराना है तो उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व में ही आना होगा। पर विरोधी-खिचड़ियाँ अलग-अलग बर्तनों में पक रही हैं। विपक्ष बिखरा हुआ है, लेकिन एकजुटता की कोशिशें जारी है। इस एकता का एक प्रदर्शन 25 सितंबर को हरियाणा में हिसार के नजदीक विपक्ष की रैली में देखने को मिलेगा।

एकता के प्रयास

विरोधी राजनीति के नजरिए से बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद संभावनाएं बेहतर हुई हैं। इसका संकेत ममता बनर्जी के ताजा बयान से मिलता है। उन्होंने कहा, नीतीश जी, अखिलेश, हेमंत और मेरा वादा है कि ये चार मिलकर बीजेपी को 2024 लोकसभा चुनाव में 100 सीटों पर रोक देंगे। इनमें से पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40, उत्तर प्रदेश में 80 और झारखंड में 14 लोकसभा सीटे हैं। भाजपा कहती है कि उनके पास 300 सीटें हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि राजीव गांधी के पास 400 सीटें थीं लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस हार गई। बीजेपी भी हारेगी। इन राज्यों में उसे 100 सीटों का नुकसान होगा। देश के अन्य हिस्सों की पार्टियां भी जल्द ही हमारे साथ आएंगी। क्या बीजेपी को 100 सीटों पर रोका जा सकता है?

कांग्रेस से परहेज

ध्यान देने वाली बात है कि ममता बनर्जी ने राहुल गांधी, केजरीवाल, शरद पवार और चंद्रशेखर राव के नामों का उल्लेख नहीं किया है। क्या इस बयान को भविष्य के राजनीतिक गठजोड़ का संकेत मानें? या सिर्फ बयान मानें, जो माहौल बनाने के लिए है? सवाल तीन हैं। नंबर एक, क्या राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी एकता है? दो, क्या इस एकता में कांग्रेस भी शामिल है? और तीन, बीजेपी के पास इसकी काट की रणनीति क्या है? इन सवालों के आगे-पीछे अनेक किंतु-परंतु हैं। इंडियन नेशनल लोकदल अपने संस्थापक देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को रैली का आयोजन कर रहा है। इसमें कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी दलों के कई नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। दूसरी तरफ हालांकि ममता बनर्जी विरोधी-एकता की समर्थक हैं, पर उनकी पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के योग्य उम्मीदवार माना है। कोलकाता में आयोजित पार्टी की बैठक के दौरान उन्होंने जिन दलों के नाम लिए उनमें कांग्रेस का नाम गायब था। यह भी साफ है कि बीजेपी को हराने के लिए लेफ्ट के साथ भी उनका गठबंधन नहीं होने वाला है।

भारत जोड़ो यात्रा

राहुल गांधी की यात्रा का उद्देश्य क्या है? कन्याकुमारी से यात्रा शुरू करते हुए राहुल गांधी ने दो तरह की बातें कहीं, यह मार्च राष्ट्रीय ध्वज के मूल्यों के तले सभी भारतीयों को एकजुट करने की कोशिश है, जिसका मूल सिद्धांत विविधता है। साथ ही यह भी कहा कि हिंदुत्व की विचारधारा के साए में ये मूल्य अब खतरे में हैं। ज़ाहिर है कि यह कांग्रेस को बचाने की कोशिश है और 2024 के चुनाव के पहले की राजनीतिक गतिविधि। यह यात्रा पार्टी के झंडे के पीछे नहीं चल रही है, बल्कि तिरंगे के पीछे है, पर संदेश राजनीतिक है और कांग्रेस के नेतृत्व में बनी योजना भी राजनीतिक है। अब इसे विरोधी एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों के साथ जोड़कर देखें।

धुरी या परिधि?

विरोधी दलों की एकता में कांग्रेस कहाँ है? धुरी में या परिधि में? कांग्रेस साबित करना चाहती है कि यह एकता उसके नेतृत्व में ही संभव है, जबकि क्षेत्रीय स्तर पर दूसरे नेताओं को लगता है कि कांग्रेस अब नेतृत्व के लायक नहीं रही। डीएमके, राकांपा और शिवसेना जैसे दल कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विरोधी एकता संभव नहीं है, पर जल्द ही होने वाले बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में राकांपा और शिवसेना मिलकर लड़ेंगे। कांग्रेस उसमें शामिल नहीं होगी। महाराष्ट्र में सरकार गिरने के बाद महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की पहली बैठक में तीनों सहयोगी पार्टियों ने फैसला किया कि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव एक साथ लड़ेंगी, जबकि स्थानीय निकाय चुनावों को साथ लड़ने पर कोई सहमति नहीं बनी।

यात्रा की राजनीति

राहुल गांधी खुद को हिंदुत्व का सबसे मुखर आलोचक, संघवाद और उदारवाद का प्रवर्तक मानते हैं। पर चुनाव परिणामों को देखें, तो लगता है कि वे पर्याप्त जन समर्थन जुटाने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस ने हिंदू-जनाधार को खो दिया है, जबकि बीजेपी ने गहरी जड़ें जमा ली हैं। राहुल गांधी अब यात्रा के फॉर्मूले का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अतीत में महात्मा गांधी, चंद्रशेखर, मुरली मनोहर जोशी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक ने इसका लाभ लिया है। क्या राहुल गांधी को इसका लाभ मिलेगा? आंशिक-परिणाम सामने आने में कुछ महीने लगेंगे और अंतिम-परिणाम 2024 के चुनाव के बाद आएंगे।  

Friday, August 19, 2022

बिहार का बदलाव विरोधी दलों की राष्ट्रीय-राजनीति का प्रस्थान-बिंदु बनेगा

बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने शपथ लेकर एक नई राजनीतिक शुरुआत की है। इससे बिहार में ही नहीं देशभर में विरोधी दलों का आत्मविश्वास लौट आया है। पहली बार भारतीय जनता पार्टी अर्दब में दिखाई पड़ रही है। सवाल है कि राज्य की राजनीति अब किस दिशा में बढ़ेगी? क्या तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी की समझदारी बढ़ी है? नए सत्ता समीकरणों में कांग्रेस की भूमिका क्या है? शेष छोटे दलों का व्यवहार कैसा रहेगा वगैरह? ये सवाल बिहार तक ही सीमित नहीं हैं। इस बदलाव को विरोधी दलों की राष्ट्रीय-राजनीति का प्रस्थान-बिंदु बनना चाहिए।  

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक अरसे से प्रयास कर रही हैं कि बीजेपी के आक्रामक रवैए को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी दलों को एकजुट होना चाहिए। ममता बनर्जी ने बिहार में हुए परिवर्तन पर खुशी जाहिर की है। तृणमूल कांग्रेस ने नीतीश कुमार के कदम का स्वागत किया है और कहा है कि भाजपा सत्ता हथियाने के साथ सहयोगी दलों के अस्तित्व में विश्वास नहीं करती है।

तेजस्वी यादव ने भी इसी बात को दोहराया है। उन्होंने कहा कि हिंदी पट्टी वाले राज्यों में बीजेपी का अब कोई भी अलायंस पार्टनर नहीं बचा। बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियों का इस्तेमाल करती है, फिर उन्हीं पार्टियों को ख़त्म करने के मिशन में जुट जाती है। बिहार में यही करने की कोशिश हो रही थी। बीजेपी के राष्ट्रीय अभियान का प्रतिरोध नहीं हुआ, तो वह समूची राजनीति पर बुलडोजर चला देगी।

Friday, December 3, 2021

कांग्रेस के बगैर क्या ममता सफल होंगी?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार 1 दिसंबर को मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से कहा, "यूपीए क्या है? कोई यूपीए नहीं है।" पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या शरद पवार को यूपीए का नेतृत्व करना चाहिए? इसके जवाब में ममता बनर्जी ने यूपीए पर ही सवाल उठा दिया। साथ ही कांग्रेस को लगभग खारिज करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां साथ आ जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है। हालांकि तृणमूल कांग्रेस 2012 में ही यूपीए से अलग हो चुकी थी, पर यूपीए का अस्तित्व आज भी बना हुआ है, पर उससे जुड़े कई सवाल हैं। मसलन महाराष्ट्र में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार है यूपीए की नहीं।

तृणमूल नेताओं का कहना है पार्टी के विस्तार को कांग्रेस के खिलाफ कदम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। पर ममता बनर्जी ने बयान दिया कि बीजेपी से लड़ने की इच्छा रखने वाले हर नेता का वह स्वागत करेंगी। साफ है कि पार्टी की रणनीति में यह नया बदलाव है। अलबत्ता ममता बनर्जी ने महाराष्ट्र में जो आक्रामक मुद्रा अपनाई उससे बीजेपी के बजाय विरोधी दलों में तिलमिलाहट नजर आ रही है।

राहुल पर हमला

कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व पर सीधा हमला बोलते हुए ममता ने कहा कि ज्यादातर समय विदेश में बिताते हुए आप राजनीति नहीं कर सकते। उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ था। ममता ने कहा, "आज जो परिस्थिति चल रही है देश में, जैसा फासिज्म चल रहा है, इसके ख़िलाफ़ एक मज़बूत वैकल्पिक ताक़त बनानी पड़ेगी, अकेला कोई नहीं कर सकता है, जो मज़बूत है उसे लेकर करना पड़ेगा।"

ममता बनर्जी इन दिनों पश्चिम बंगाल के बाहर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने स्वयं बाहर के कई दौरे किए हैं और विरोधी दलों के नेताओं से मुलाक़ात की है। राजनीतिक विश्लेषक इसे ममता बनर्जी की विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश के रूप में देखते हैं। साथ ही यह भी कि ममता बनर्जी अपनी स्थिति को मजबूत बना रही हैं, ताकि आने वाले समय में उन्हें कांग्रेस के साथ सौदेबाजी करनी पड़े, तो अच्छी शर्तों पर हो। 

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यूपीए का हिस्सा रही है, लेकिन साल 2012 में वे इससे अलग हो गईं। पर कांग्रेस के साथ मनमुटाव उसके भी काफी पहले से शुरू हो चुका था। सन 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में यह साफ नजर आने लगा, जब ममता बनर्जी और मुलायम सिंह ने मिलकर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे कर दिया था। 2014 और फिर 2019 चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद ये गठबंधन सिमट गया है.

क्या है यूपीए?

2004 में बनीं राजनीतिक परिस्थितियों के जवाब में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए बना था। चार वामदलों- सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने गठबंधन का समर्थन तो किया लेकिन सरकार में शामिल नहीं हुए. वामदलों ने सरकार का समर्थन करने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम-सीएमपी) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता 14 मई 2004 को हुआ था।

Monday, November 29, 2021

तृणमूल ने कांग्रेस से दूरी बनाई


 इस साल के शुरू में लगता था कि तृणमूल पार्टी तो गई। पश्चिम बंगाल के चुनाव में उसकी पराजय का मतलब था उसके समूचे राजनीतिक आधार का सफाया। पर अब लगता है कि यह पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर खड़ी हो रही है और बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस का विकल्प भी बनने को उत्सुक है। हालांकि त्रिपुरा के स्थानीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भारी विजय मिली है, पर तृणमूल कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। यानी त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, अब दूसरे नंबर की पार्टी भी नहीं रही, जबकि पश्चिम बंगाल की तरह त्रिपुरा भी उसका गढ़ था।

विरोधी दलों के साझा बयान में
तृणमूल का नाम नहीं
अब तृणमूल कांग्रेस गोवा में अपनी किस्मत आजमाने जा रही है। पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार चुनाव जीत जाने के बाद उसका आर्थिक आधार भी अपेक्षाकृत मजबूत है। देश में राजनीतिक धन-संकलन की व्यवस्था अपारदर्शी होने के कारण केवल अनुमान ही लगाए जा सकते हैं कि पैसा किस तरह आया होगा।

उधर विरोधी एकता का सवाल पहले ही दिन खड़ा हो गया है। राज्यसभा में कांग्रेसटीएमसी और शिवसेना के 12 सदस्यों को अनुशासनहीनता के आरोप में पूरे सत्र के लिए निलंबित करने की कार्रवाई के विरुद्ध विरोधी दल एकसाथ खड़े नजर आ रहे हैं, पर इस एकता में भी पेच नजर आ रहा है।

इन सांसदों को निलंबित करने के मामले में विपक्षी दलों ने संयुक्त बयान जारी किया है। हालांकि टीएमसी के सांसदों का निलंबन भी हुआ है, पर विपक्षी दलों की ओर से जारी संयुक्त बयान में टीएमसी शामिल नहीं है। बयान में 12 सांसदों के निलंबन के फैसले की निंदा की गई है और इसे अलोकतांत्रिक निलंबन करार दिया है। निलंबन के बाद कई सांसदों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। विरोधी दलों ने कल यानी 30 नवंबर को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के दफ्तर में बैठक बुलाई है।

Thursday, October 14, 2021

बीजेपी को हराएगा कौन?


पिछले शुक्रवार को एबीपी चैनल ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा समेत पाँच चुनावी राज्यों की सम्भावनाओं पर सी-वोटर के सर्वेक्षण को प्रसारित किया। सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में सबसे ज्यादा सीटों के साथ बीजेपी फिर सरकार बना सकती है। इसे लेकर तमाम बातें हवा में हैं। माहौल बनाने की कोशिश है। सरकारी विज्ञापन देकर चैनलों से कुछ भी कहलाया जा सकता है वगैरह। बेशक चैनलों की साख खत्म है, पर सर्वे के परिणाम पूरी तरह हवाई नहीं हैं। बीजेपी नहीं, तो कौन?

2022 के उत्तर प्रदेश के परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव की कसौटी साबित होंगे। बीजेपी अजर-अमर नहीं है। वह भी हार सकती है। पर कैसे और कौन उसे हराएगा? केन्द्र की बात बाद में करिए, क्या उसके पहले यूपी में उसे हराया जा सकता है? पिछले सात साल से यह सवाल हवा में है कि क्या बीजेपी लम्बे अरसे तक सत्ता में रहेगी? क्या कांग्रेस धीरे-धीरे हवा में विलीन हो जाएगी? दोनों अर्धसत्य हैं। यानी एक हद तक सच हैं।

पिछले सात साल में हुए चुनावों में बीजेपी को भी झटके लगे हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में और उसके पहले छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वह हारी है। 2015 में बिहार में उसे झटका लगा, 2017 में पंजाब में, कर्नाटक में वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार जेडीएस और कांग्रेस की बनी। गुजरात में भले ही बीजेपी की सरकार बनी, पर उसकी ताकत कम हो गई।

बीजेपी तभी हारेगी, जब राष्ट्रीय स्तर पर उसका विकल्प होगा। विचार और संगठन दोनों रूपों में। विकल्प जो बहुसंख्यक समाज को स्वीकार हो। कांग्रेस ने सायास वह जगह छोड़ी है और आज वह लकवे की शिकार है। पंजाब के घटनाक्रम को देखें, तो भ्रमित नेतृत्व की तस्वीर उभरती है। हाल में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश के गाँव के कुछ लोग कह रहे थे, ‘चाहे कुछ हो जाए वोट तो योगी को ही देंगे। कितनी भी महंगाई हो जाए, वोट बीजेपी को ही देंगे, धन गया तो फिर कमा लेंगे, धर्म गया तो अधर्मी जीने नहीं देंगे वगैरह-वगैरह।’

Friday, August 20, 2021

सोनिया गांधी के साथ 18 विरोधी दलों के नेताओं का वर्चुअल-संवाद


कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शुक्रवार की शाम को प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक की। 19पार्टियों की इस बैठक में सोनिया ने कहा कि विपक्ष को वर्ष 2024 के आम चुनाव के लिए व्यवस्थित योजना बनानी होगी और दबावों/बाध्यताओं से ऊपर उठना होगा। सोनिया गांधी ने तमाम मतभेदों को भुलाकर मिलकर काम करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। बैठक में कांग्रेस के अलावा 1.तृणमूल कांग्रेस, 2.एनसीपी, 3.डीएमके, 4.शिवसेना, 5.जेएमएम, 6.सीपीआई, 7.सीपीएम, 8.नेशनल कॉन्फ्रेंस, 9.आरजेडी,10.एआईयूडीएफ, 11.वीसीके, 12.लोकतांत्रिक जनता दल, 13.जेडीएस, 14.आरएलडी, 15.आरएसपी, 16.केरल कांग्रेस मनीला, 17.पीडीपी और 18आईयूएमएल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

बैठक में कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और राहुल गांधी भी शामिल थे। दूसरी पार्टियों के प्रमुख नेताओं में फारूक अब्दुल्ला, एमके स्टालिन, ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, शरद यादव और सीताराम येचुरी शामिल थे। यह उपस्थिति काफी आकर्षक बताई जा रही है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि विरोधी दलों के बीच एकजुटता है। खासतौर से ममता बनर्जी की उपस्थिति ने इसे स्पष्ट किया है।

संवाद में आम आदमी पार्टी, बसपा और सपा की उपस्थिति दिखाई नहीं पड़ी। बताते हैं कि आम आदमी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को निमंत्रित नहीं किया गया था। समाजवादी पार्टी का भी कोई नेता मीटिंग से नहीं जुड़ा। अखिलेश यादव किसी कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण जुड़ नहीं पाए और उनकी अनुपस्थिति में कोई दूसरा नेता भी इस संवाद में शामिल नहीं हो पया। इस बैठक के पहले हाल में कपिल सिब्बल के घर में भी रात्रिभोज पर एक बैठक हुई थी। हालांकि आज की बैठक से उसका कोई टकराव नहीं था, पर चूंकि कपिल सिब्बल जी-23 में शामिल किए जाते हैं, इसलिए उस बैठक के निहितार्थ भी इस बैठक के साथ देखे जाएंगे।  

Tuesday, August 10, 2021

राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कपिल सिब्बल के घर हुई बैठक के मायने


सोमवार 9 अगस्त को कपिल सिब्बल के घर पर विरोधी-नेताओं की बैठक चर्चा का विषय बन गई है। 15 पार्टियों के क़रीब 45 नेता रात्रिभोज के लिए कपिल सिब्बल के घर पर जमा हुए। इनमें कुछ सांसद भी थे। इसके एक दिन पहले ही कपिल सिब्बल का 73वाँ जन्मदिन मनाया गया था। माना जाता है कि सोनिया गांधी को लिखे गए 23 नेताओं के पत्र के पीछे कपिल सिब्बल प्रमुख प्रस्तावक थे। उन्हें उन नेताओं में शुमार किया जाता है जो राहुल गांधी के तौर-तरीकों से असहमत हैं। इस बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर सुगबुगाहट है कि इस तरह से बैठक बुलाना क्या सही था?

हर रंग के विरोधी

बैठक में शामिल नेताओं में लालू यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव, पी चिदंबरम, डेरेक ओब्रायन, कल्याण बनर्जी, सीताराम येचुरी, डी राजा और संजय राउत, डीएमके के तिरुचि शिवा, जयंत चौधरी, उमर अब्दुल्ला शामिल थे। इनके अलावा बीजेडी के पिनाकी मिश्रा, अकाली दल के नरेश गुजराल, और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी शामिल हुए। टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस और आरएलडी के नेता भी इनमें थे। इनमें वे पार्टियां शामिल हैं, जो अमूमन विरोधी-दलों बैठकों बुलाई नहीं जातीं या फिर आती नहीं हैं। हाल में राहुल गांधी ने नाश्ते पर बुलाया था तो आम आदमी पार्टी शामिल नहीं हुई थी और बीजेडी, टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस को बुलाया नहीं गया था।

राहुल गांधी सोमवार को ही दो दिवसीय दौरे पर कश्मीर गए हैं और इस बीच ये डिनर हुआ है। इतने महत्वपूर्ण नेताओं की बैठक में उनकी अनुपस्थिति अटपटी लगती है। इस डिनर में कांग्रेस के जी-23 के कुछ सदस्य भी शामिल हुए, जिनमें गुलाम नबी आज़ाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चह्वाण और संदीप दीक्षित के नाम प्रमुख हैं। पी चिदंबरम भी मौजूद थे, हालांकि उनकी गिनती जी-23 में नहीं होती।

Wednesday, August 4, 2021

कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष

नाश्ते की बैठक में एकत्र राजनेता

पिछले एक पखवाड़े से कांग्रेस और विरोधी दलों के बीच की गतिविधियों के परिणाम सामने आने लगे हैं। कम से कम ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी की दिलचस्पी अलग से विरोधी-मोर्चा खोलने की नहीं है और कांग्रेस पार्टी इसमें सबसे आगे रहेगी। गत 3 अगस्त को विरोधी दलों के सांसदों के साथ नाश्ता करने के साथ ही साइकिल मार्च निकाल कर इस विरोधी-एकता का प्रत्यक्ष-प्रदर्शन भी हो गया है। राहुल के साथ नाश्ते पर जिन पार्टियों के नेता पहुंचे, वे ज्यादातर वही हैं, जिनके साथ किसी न किसी रूप में अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस का गठबंधन या तालमेल रहा है। इनमें तृणमूल कांग्रेस का नाम अब जुड़ा है, जो हाल में ममता बनर्जी और सोनिया गांधी की मुलाकात का परिणाम लगता है। बहरहाल संसद के भीतर और बाहर विरोधी-दलों की एकता नजर आने लगी है। हालांकि यह एकता 2024 के चुनाव का प्रस्थान-बिंदु है, पर इसके राजनीतिक-निहितार्थ का पता उसके पहले उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों के चुनावों में लगेगा। 

इस मौके पर बैठक को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि विरोधी दल देश की 60 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन सरकार इस तरह व्यवहार कर रही है जैसे वे किसी का प्रतिनिधित्व ही नहीं करते हैं। जब सरकार हमें संसद में चुप करा देती है, तो वह सिर्फ सांसदों को ही अपमानित नहीं करती, बल्कि भारत के बहुसंख्यक लोगों की आवाज की भी अनसुनी करती है।

उन्होंने विपक्षी नेताओं से कहा, आपको आमंत्रित करने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हम इस ताकत को एकजुट करें। जब सभी आवाजें एकजुट और मजबूत हो जाएगी तो बीजेपी और आरएसएस के लिए इस आवाज को दबाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हम इस एकजुटता के आधार को याद करना चाहिए और यह महत्वपूर्ण है कि अब हम इस एकता के आधार के सिद्धांत के साथ आना शुरू कर रहे हैं।

नाश्ते पर चर्चा के बाद राहुल गांधी साइकिल चलाते हुए संसद पहुंचे। उन्होंने साइकिल पर एक तख्ती लगा रखी थी जिस पर रसोई गैस के सिलेंडर की तस्वीर थी और इसकी कीमत 834 रुपये लिखी हुई थी। बैठक में राहुल गांधी ने महंगाई के विरोध में संसद तक साइकिल मार्च का सुझाव दिया था। उनके साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल, अधीर रंजन चौधरी, गौरव गोगोई, सैयद नासिर हुसैन, आरजेडी के मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और कुछ अन्य सांसद भी साइकिल चलाकर संसद पहुंचे।

नाश्ते पर आए नेताओं में कांग्रेस और तृणमूल के अलावा एनसीपी, शिवसेना, आरजेडी,डीएमके, सीपीएम, सीपीआई, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग,आरएसपी, केरल कांग्रेस (एम), जेएमएम, समाजवादी पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) शामिल हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में गठबंधन का संकेत दे चुके हैं। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ गुपकार गठबंधन में भी कांग्रेस हाथ मिला चुकी है। बाकी दल भी किसी न किसी रूप में पार्टी के सहयोगी ही रहे हैं।

Sunday, August 1, 2021

विरोधी-एकता का गुब्बारा


विरोधी-एकता का गुब्बारा फिर से फूल रहा है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सफलता इसका प्रस्थान बिंदु है और ममता बनर्जी, शरद पवार और राहुल गांधी की महत्वाकांक्षाएं बुनियाद में। तीनों को जोड़ रहे हैं प्रशांत किशोर। कांग्रेस पार्टी भी प्रशांत किशोर की सलाह पर नई रणनीति बना रही है। ममता बनर्जी एक्शन पर जोर देती हैं। उनके पास बंगाल में वाममोर्चे को उखाड़ फेंकने का अनुभव है। क्या वह रणनीति पूरे देश में सफल होगी? सवाल है कि रणनीति के केंद्र में कौन है और परिधि में कौन? कौन है इसका सूत्रधार?

मोदी को हटाना है?

विरोधी-एकता का राजनीतिक एजेंडा क्या है? मोदी को हटाना? कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने कहा है कि केवल मोदी-विरोधी एजेंडा कारगर नहीं होगा। व्यक्ति विशेष का विरोध किसी भी राजनीतिक मोर्चे को आगे लेकर नहीं जाएगा। एक जमाने में विरोधी-दलों ने इंदिरा गांधी के खिलाफ यही किया था। वे कामयाब नहीं हुए। मोइली का कहना है कि हमें साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाना होगा। हम चर्चा यह कर रहे हैं कि कौन इसका नेता बनेगा, किस राजनीतिक पार्टी को इसकी अगुवाई करनी चाहिए तो, यह कामयाब नहीं होगा।

मोदी की सफलता व्यक्ति-केंद्रित है या विचार-केंद्रित? कांग्रेस, ममता और शरद पवार का राजनीतिक-नैरेटिव क्या है? व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं या सामूहिक चेतना? बात केवल विरोधी-एकता की नहीं है। यह कितने बड़े आधार वाली एकता होगी? इसमें बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, जेडीएस, बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, अकाली दल और इनके अलावा तमाम छोटे-बड़े दल दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। क्या वे इसमें शामिल होंगे? जैसे ही आधार व्यापक होगा, क्या आपसी मसले खड़े नहीं होंगे?

अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके बाद गुजरात के चुनाव होंगे। क्या यह विरोधी-एकता इन चुनावों में दिखाई पड़ेगी? यह बहुत मुश्किल सवाल है। केवल मुखिया के नाम का झगड़ा नहीं है। सत्ता-प्राप्ति की मनोकामना केवल राजनीतिक-आदर्श नहीं है, बल्कि आर्थिक-आधार बनाने की कामना है।

नेता ममता बनर्जी?

दिल्ली आकर ममता बनर्जी ने घोषणा की कि अब कोई इस राजनीतिक तूफान को रोक नहीं पाएगा। जब उनसे पूछा गया कि इस तूफान का नेतृत्व कौन करेगा, तो उनका जवाब था, मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ। कांग्रेस और तृणमूल दोनों की तरफ से कहा जा रहा है कि नेतृत्व का मसला महत्वपूर्ण नहीं है, पर यह समझ में आने वाली बात नहीं है। ममता बनर्जी और शरद पवार कांग्रेस से ही टूटकर बाहर गए थे। क्यों गए?

पिछले बुधवार को राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर पहल की। बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया, पर तृणमूल के नेता नहीं थे। जब राहुल पैदल मार्च कर रहे थे, लगभग उसी समय, ममता बनर्जी ने अपने सांसदों की बैठक बुलाई थी।

तृणमूल-सांसद कल्याण बनर्जी ने बाद में कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर वन’ हैं। ममता बनर्जी की रणनीति में विसंगतियाँ हैं। नरेंद्र मोदी की तरह उन्होंने खुद को राष्ट्रीय नेता बनाने का प्रयास नहीं किया। उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव के दौरान बांग्ला उप-राष्ट्रवाद का जमकर इस्तेमाल किया। उनके कार्यकर्ताओं ने हिंदी और हिंदी-क्षेत्र को लेकर जो बातें कही थीं, वे बाधा बनेंगी।

Friday, July 30, 2021

संसद में शोर और विरोधी-एकता के जुड़ते तार


संसद में पेगासस-विवाद के सहारे विरोधी दलों की एकता के तार जुड़ तो रहे हैं, पर साथ ही उसके अंतर्विरोध भी सामने आ रहे हैं। इसे संसद के भीतर और बाहर की गतिविधियों में देखा जा सकता है। पेगासस मामले को लेकर संसद के दोनों सदनों में विरोधी दलों ने कार्य-स्थगन प्रस्ताव के नोटिस दिए हैं। राज्यसभा के सभापति ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया है। लोकसभा में राहुल गांधी ने 14 विरोधी दलों की ओर से जो नोटिस दिया है, अभी उसपर अध्यक्ष के फैसले की सूचना नहीं है।

अभी तक सरकार इस विषय पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है। सरकार का कहना है कि विपक्ष ठोस सबूत पेश करे। अफवाहों की जांच कैसे होगी? सम्भव है कि वह कार्य-स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार हो जाए, पर उसकी दिलचस्पी विरोधी-एकता के छिद्रों और उनकी गैर-जिम्मेदारी को उजागर करने में ज्यादा होगी। क्या वास्तव में यह इतना बड़ा मामला है, जितना बड़ा कांग्रेस पार्टी मानकर चल रही है? क्या इससे आने वाले समय के चुनावों पर असर डाला जा सकेगा? संसद में विरोधी-दलों की शोरगुल और हंगामे की नीति भी समझ में नहीं आती है। खासतौर से राज्यसभा में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के हाथ से कागज लेकर फाड़ना।

पिछले 11 दिन में लोकसभा में केवल 11 फीसदी काम हुआ है और राज्यसभा में करीब 21 फीसदी। सरकार ने लोकसभा में अपने दो विधेयक इस दौरान पास करा लिए, जिनपर चर्चा नहीं हुई। लगता है कि यह शोरगुल चलता रहेगा। यानी सरकार अपने विधेयक पास कराती रहेगी और महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा नहीं होगी, केवल नारे लगेंगे और तख्तियाँ दिखाई जाएंगी। इस बीच सम्भव है कि लोकसभा में कुछ सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई हो। राज्यसभा में ऐसा हो चुका है। क्या विरोधी दल यही चाहते हैं?

पेगासस मामले पर विरोधी दलों की रणनीति बिखरी हुई है। एक पक्ष सदन के अंदर बहस चाहता है, दूसरा चाहता है कि संयुक्त संसदीय समिति जांच करे, और तीसरा सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच चाहता है। संसद के बाहर विरोधी एकता कायम करने के प्रयास दो या तीन छोरों पर हो रहे हैं। एक प्रयास हाल में शरद पवार ने शुरू किया है, दूसरे की पहल ममता बनर्जी ने की है। उनका दिल्ली-दौरा इस लिहाज से महत्वपूर्ण है।

बुधवार को राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर पहल की कोशिश की। इस बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया, पर तृणमूल कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हुए। विरोधी सांसद संसद से विजय चौक तक पैदल गए और फिर मीडिया को संबोधित किया।

इस मार्च का नेतृत्व प्रत्यक्षतः राहुल गांधी ने किया। उनके साथ संजय राउत, सुप्रिया सुले, रामगोपाल यादव और द्रमुक तथा राजद के प्रतिनिधि थे। कांग्रेस के साथ चलने वाले इस दस्ते में कोई नया सदस्य नहीं है। बहरहाल जब राहुल पैदल मार्च कर रहे थे, लगभग उसी समय, ममता बनर्जी ने अपने सांसदों की बैठक बुलाई थी। उनकी पार्टी के सांसद कल्याण बनर्जी ने बाद में कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर वन’ हैं। ममता बनर्जी की इस रणनीति में विसंगतियाँ हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी ने पिछले चुनाव के दौरान बांग्ला उप-राष्ट्रवाद का जमकर इस्तेमाल किया। उनके कार्यकर्ताओं ने हिंदी भाषा और हिंदी-क्षेत्र को लेकर जो बातें कही थीं, वे उन्हें राष्ट्रीय नेता बनने से रोकेंगी।

बहरहाल ममता बनर्जी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात भी की। उन्होंने मुलाकात करने के बाद पत्रकारों से कहा, सभी विपक्षी दलों को हाथ मिलाना होगा और मिलकर काम करना होगा। ममता बनर्जी की योजना में कांग्रेस समेत वे सभी पार्टियाँ शामिल हैं, जो किसी न किसी रूप में बीजेपी-विरोधी हैं। इसके पहले सोनिया गांधी कह चुकी हैं कि नेतृत्व का सवाल एकता के आड़े नहीं आएगा। फिर भी सवाल है कि कांग्रेस इस एकता के केंद्र में होगी या परिधि में?

Monday, June 21, 2021

शरद पवार ने विरोधी-महागठबंधन की पहल की, कल होगी बैठक

 


नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार आज दिल्ली में हैं। उन्होंने कल दिन में 4.00 बजे अपने निवास पर विरोधी दलों की बैठक बुलाई है, जिसमें 15-20 नेताओं के अलावा कुछ गैर-राजनीतिक व्यक्तियों के भी आने की सम्भावनाएं हैं, जिनमें वकील, अर्थशास्त्री और साहित्यकार शामिल हैं। शरद पवार ने आज चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी मुलाकात की। इससे पहले भी हाल में शरद पवार प्रशांत किशोर से मुलाकात कर चुके हैं। इस बैठक के पहले सुबह एनसीपी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक भी होने जा रही है।

तृणमूल कांग्रेस के यशवंत सिन्हा, राजद के मनोज झा, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह से भी आज शरद पवार की मुलाकात हुई। बताया जा रहा है कि यह बैठक राष्ट्रीय मंच के तत्वावधान में होने जा रही है, जिसका गठन कुछ साल पहले यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने किया था। खबर यह भी है कि यशवंत सिन्हा ने कहा है कि प्रशांत किशोर का इस बैठक से कोई वास्ता नहीं है। उधर प्रधानमंत्री ने 24 जून को जम्‍मू-कश्‍मीर के 14 नेताओं की बैठक बुलाई है, उसे लेकर भी कयास हैं।

इन दोनों बैठकों का राजनीतिक महत्व है। शरद पवार के घर पर होने वाली बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस को भी बुलाया गया है या नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पार्टी का कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल होगा या नहीं। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि बैठक यूपीए के तत्वावधान में नहीं हो रही है। इसका निमंत्रण शरद पवार और यशवंत सिन्हा की ओर से भेजा गया है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार 15 राजनीतिक दलों को निमंत्रण दिया गया है। एक सूत्र ने बताया कि सात दलों ने इसमें शामिल होने की स्वीकृति दी है।

इस मामले में मीडिया कवरेज संदेह पैदा कर रही है। बैठक विरोधी दलों की है या किसी वैचारिक मंच की, यह स्पष्ट नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार बैठक में फारूक अब्दुल्ला, यशवंत सिन्हा, संजय सिंह, पवन वर्मा, केटीएस तुलसी, डी राजा, जस्टिस एपी सिंह, करन थापर, आशुतोष, मजीद मेमन, वंदना चह्वाण, एसवाई कुरैशी, केसी सिंह, जावेद अख्तर, संजय झा, सुधीन्द्र कुलकर्णी, कॉलिन गोंज़ाल्वेस, अर्थशास्त्री अरुण कुमार, घनश्याम तिवारी और प्रीतीश नंदी शामिल हो सकते हैं। इनमें से कुछ नाम ऐसे हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। एनडीटीवी के अनुसार एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने ट्वीट करके इस विस्तृत सूची को जारी किया, जिसमें प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम भी हैं। हालांकि नवाब मलिक की सूची में कांग्रेस के विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल के नाम नहीं हैं, पर मीडिया में खबरें हैं कि उन्हें भी बुलाया गया है।  

Thursday, January 28, 2021

अभिभाषण का बहिष्कार करेंगे 16 विरोधी दल

 


शुक्रवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में कांग्रेस समेत देश के 16 विरोधी दलों ने किसान-आंदोलन के प्रति एकजुटता प्रकट दिखाते हुए राष्ट्रपति के अभिभाषण के बहिष्कार का फैसला किया है। 16 दलों ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा की जांच कराने की भी मांग की है। बहिष्कार करने वाले दल हैं कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, सपा, राजद, माकपा, भाकपा, आईयूएमएल, आरएसपी, पीडीपी, एमडीएमके, केरल कांग्रेस(एम) और एआईयूडीएफ।

संसद के इस सत्र में विपक्षी दलों ने तीन नए कृषि कानूनों, पूर्वी लद्दाख गतिरोध, अर्थव्यवस्था की स्थिति, महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। बजट सत्र की शुरुआत शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने के साथ होगी और 1 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा। अभिभाषण के बहिष्कार की घोषणा के साथ विरोधी दलों ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने पूर्वी लद्दाख के मुद्दे पर भी सरकार को घेरते हुए इससे ठीक ढंग ने नहीं निपटने के आरोप लगाए हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी ने कृषि कानूनों का विरोध किया है और आगे भी करेगी। वाम दलों ने भी सरकार से तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरिक ओ ब्रायन ने हाल में कहा है कि सरकार संसद में एक और विधेयक लेकर आए जिसमें तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का प्रावधान किया जाए।

Friday, December 25, 2020

बीजेपी-विरोध के अंतर्विरोध


ज्यादातर विरोधी दलों के निशाने पर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई महामोर्चा नहीं बन पाना, अकेला ऐसा बड़ा कारण है, जो भारतीय जनता पार्टी को क्रमशः मजबूत बना रहा है। अगले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यह बात नजर आएगी, पर उसकी एक झलक इस समय भी देखी जा सकती है।

बीजेपी के खिलाफ रणनीति में एक तरफ ममता बनर्जी मुहिम चला रही हैं, वहीं सीपीएम ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 11 पार्टियों का जो संयुक्त बयान जारी किया है, उसमें तृणमूल का नाम नहीं है। यह बयान केंद्र सरकार के कृषि-कानूनों के विरोध में है। इसपर उन्हीं 11 पार्टियों के नाम हैं, जिन्होंने किसान-आंदोलन के समर्थन में 8 दिसंबर के भारत बंद का समर्थन किया था।