Sunday, October 4, 2015

कालेधन के प्राण कहाँ बसते हैं?

कर अपवंचना रोकने या काले धन को सामने लाने की मुहिम केवल भारत की मुहिम नहीं है, बल्कि वैश्विक अभियान है। इसका उद्देश्य कराधान को सुनिश्चित और प्रभावी बनाना है। भारत सरकार ने देश में काला धन कानून लागू करने के पहले जो अनुपालन खिड़की छोड़ी थी उसका उत्साहवर्धक परिणाम सामने नहीं आया है। चूंकि इस योजना में माफी की व्यवस्था नहीं थी इसलिए बहुत अच्छे परिणामों की आशा भी नहीं थी। कुल मिलाकर 638 लोगों ने 3,770 करोड़ रुपए (58 करोड़ डॉलर) विदेशी संपत्ति की घोषणा की। यह राशि अनुमान से काफी कम है। हालांकि विदेश में जमा काले धन के बारे में कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है, लेकिन गैर-सरकारी अनुमान है कि यह राशि 466 अरब डॉलर से लेकर 1,400 अरब डॉलर तक हो सकती है। 

इस योजना के परिणामों को देखने से लगता है कि काले धन को सामने लाने की चालू कोशिशें ज्यादा सफल होने वाली नहीं हैं। इसके लिए कोई ज्यादा व्यावहारिक नीति अपनानी होगी। इस बार की योजना सन 1997 की माफी योजना जैसी नहीं थी, जिसमें जुर्माने और आपराधिक कार्रवाई से लोगों को मुक्त कर दिया गया था। उस योजना में सरकार को 10,000 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई थी। पर उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि भविष्य में माफी की कोई योजना शुरू नहीं की जाएगी। इसबार की योजना में जुर्माने की व्यवस्था भी थी। पश्चिमी देशों में इस प्रकार की योजनाओं का चलन हैं, जिनमें राजस्व बढ़ाने के तरीके शामिल होते हैं साथ ही ऐसी व्यवस्था होती है, जिससे अपनी आय स्वतः घोषित करने की प्रवृत्ति बढ़े।
सरकार को यह देखने की जरूरत भी है कि टैक्स जमा करने और घोषित करने की व्यवस्था ज्यादा से ज्यादा आसान बनाई जाए। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) से जुड़े अमीर देशों का अनुमान है कि वहाँ सन 2014 के पहले पाँच वर्षों में लगभग 37 अरब यूरो (करीब तीन लाख करोड़ रुपए) के राजस्व की प्राप्ति हुई थी। भारत ने अपनी योजनाओं को ओईसीडी के ऑटोमेटिक एक्सचेंज इनफॉर्मेशन पैक्ट के साथ जोड़ा है। सूचनाओं के आदान-प्रदान से व्यवस्था को पारदर्शी बनाना सम्भव होगा। इस काम में उन कम्पनियों के हिसाब-किताब की जाँच की जरूरत है जो वैश्विक कारोबार में लगी हैं। अर्थ-व्यवस्था का वैश्वीकरण दुनिया की सरकारों के सामने टैक्स जमा करने की चुनौतियाँ भी लेकर आ रहा है।

हाल में ओईसीडी ने भारत समेत 47 देशों का सर्वे किया जिसमें यह बात सामने आई कि ज्यादातर देश करदाताओं की चूकों पर सख्त कार्रवाई करते हैं। पर जरूरत इस बात की है काला धन जन्म ही न लेने पाए। सारी दुनिया में राजनीतिक चंदा काले धन के जन्म का एक बड़ा कारण है। भारत में तो खासतौर से यह बड़ी बीमारी है। पार्टियाँ अपने हिसाब-किताब को कानूनी मकड़जाल में छिपा कर रखती हैं। उन्हें आयकर कानून की 1961 की धारा 13 ए के तहत पूरी छूट प्राप्त है। आयकर रिटर्न जरूर दाखिल करना होता है, लेकिन इसमें देरी करने पर कोई जुर्माना नहीं है। चैरिटेबल ट्रस्टों और संस्थाओं को भी आयकर में छूट होने के बावजूद रिटर्न दाखिल करने में देरी करने पर उन पर जुर्माना लगाया जाता है। पार्टियों को आयकर से छूट मिली जरूर है, पर उन्हें अपनी आय का ब्योरा चुनाव आयोग को देना होता है। उन्हें 20 हजार रुपए से अधिक आय या चंदा प्राप्त होने पर बुक ऑफ अकाउंट रखना होता है।

सच यह है कि पार्टियों की ज्यादातर यानी 75 से 80 फीसदी कमाई 20,000 रुपए से नीचे के चंदे की है। यानी जिसे बड़ा चंदा भी देना है तो वह छोटी-छोटी राशि में कई बार और बेनामी देता है। चूंकि उसका विवरण देश के सामने नहीं है इसलिए अंदेशा है कि यह चंदा काले धन के रूप में होगा। इस मकड़जाल को तोड़ने के लिए नागरिक संगठन लगातार कोशिश करते रहे हैं। इस 75 या 80 फीसदी कमाई का विवरण हासिल करने के लिए जब आरटीआई के तहत अर्जी दी गई तो पार्टियों ने उसे खारिज करते हुए कहा कि हम सार्वजनिक प्रतिष्ठान नहीं है। इसके बाद केंद्रीय सूचना आयुक्त से दरयाफ्त की गई। अंततः 3 जून 2013 को सूचना आयोग की फुल बेंच ने छह राष्ट्रीय दलों को सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाने का फैसला किया। इस फैसले का लगभग सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया। तत्कालीन सरकार ने पार्टियों को सूचना-अधिकार कानून के दायरे से बाहर करने से जुड़ा विधेयक भी संसद में रख दिया।

जनता के दबाव में वह विधेयक पास नहीं हुआ और उसे स्थायी समिति को सौंप दिया गया। यह मामला अभी तक तार्किक परिणति तक नहीं पहुँचा है। पर 2014 के लोकसभा चुनाव में काले धन का मामला जोर-शोर से उठा था। सरकार पर दबाव है कि वह विदेश में रखा काला पैसा भारत वापस लाए। यह योजना उसी दिशा में एक कदम है। इस कानून का उद्देश्य टैक्स बचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना है। देखना होगा कि सरकार अब किस प्रकार के कदम उठाती है। देश की विकास दर बढ़ने पर यदि सरकार की राजस्व आय बढ़ेगी तो जनता के लिए उपयोगी कार्यक्रमों को शुरू किया जा सकेगा। पर यदि टैक्स बचाकर काला धन जन्म लेगा तो उसका इस्तेमाल आपराधिक कार्यों में होगा।

दुनिया में बढ़ते आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई तब तक सफल नहीं होगी जब तक काले धन को रोका न जाए। इसके लिए विदेशी कारोबार करने वाली संस्थाओं के फर्जी ऑर्डर और बिल, देश के भीतर सम्पत्ति की खरीद-फरोख्त में बेनामी लेन-देन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। इसी तरह राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। यह बात किसी के भी समझ में आती है कि कम्पनियाँ किसी पार्टी को चंदा क्यों देती है। इसी तरह देश के उन कानूनों में बदलाव की जरूरत है जो काले धन को जन्म देने में मददगार है। इनमें बेनामी सम्पत्ति के पंजीकरण से जुड़ा कानून भी है। दूसरी और हमें जीएसटी जैसे कानूनों को जल्द से जल्द पास करना चाहिए जो काला धन रोकने में मददगार होंगे। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बने विशेष जाँच दल के सुझावों पर ध्यान देने की जरूरत भी है। खासतौर से आयात-निर्यात पर नजर रखने वाली संस्था के गठन की जरूरत है। यह सब जानते हैं कि रियल एस्टेट में बहुत काला धन है, पर उसके नियमन की व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है। कालेधन का नाभि जहाँ है तीर वहाँ लगना चाहिए।

हरिभूमि में प्रकाशित

2 comments:

  1. बहुत ही सटीक विश्लेषण सर | आकंड़ों के माध्यम से आपने सही समझाया

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  2. काले धन का स्रोत नेता लोग भी हैं , कृषि के नाम पर इन लोगों ने काले धन को छिपा रखा है , सरकार की कृषि पर आयकर की छूट का लाभ बेचारे छोटे किसान तो उठा नहीं पाते हैं और यह लोग इसका उठा रहे हैं , सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए लेकिन यह सम्भव नहीं क्योंकि इसमें सभी पार्टियों के नेता खत्म करने के पक्ष में नहीं है कला धन जितना विदेशों में है उस से कई गुना हमारे देश में है , निकलवाने में सरकार की रूचि नहीं है , केवल कुछ छोटी मछलियों को फांस कर दिखावा किया जाता है , क्योंकि सख्त कार्यवाही में खुद के गले फंदे के निकट पहुँचने की संभावना रहेगी। इसलिए यह समस्या हल नहीं होनी है ,केवल एक दूजे को कोसने व जनता को बेवकूफ बनाने जतन मात्र है

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