राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की जो पहल की है, उससे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं
बाँधनी चाहिए, पर इसे समाधान की दिशा में पहला बड़ा कदम माना जा सकता है। इसकी कुछ
बड़ी वजहें हैं। एक, अदालत ने तीनों मध्यस्थों को तय करते समय इस बात का
ख्याल रखा है कि वे पूर्वग्रह से मुक्त हों। तीनों दक्षिण भारतीय हैं और उत्तर
भारत के क्षेत्रीय विवादों से दूर हैं। कहा जा सकता है कि समाधान के प्रयासों से श्रीश्री
रविशंकर पहले से जुड़े हैं। वे कई बार समाधान के प्रयास कर चुके हैं, इसलिए इससे
जुड़े मुद्दों के बेहतर समझते हैं। दोनों पक्षों के साथ उनके सम्बन्ध मधुर हैं। पर
उनकी तटस्थता को लेकर आपत्तियाँ हो सकती हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है
कि इसके पहले हुई मध्यस्थताओं और इसबार में अंतर है। यह कोर्ट की निगरानी में चलने
वाली मध्यस्थता है, इसमें एक अनुभवी न्यायाधीश शामिल हैं और मध्यस्थों को एक समय
सीमा दी गई है। फिर वे मध्यस्थ हैं, समझौता पक्षकारों के बीच होगा, मध्यस्थों की
भूमिका उसमें मदद करने की होगी। वे जज नहीं हैं। तीसरे, मध्यस्थता से हासिल
हुए समझौते में कटुता नहीं होगी, किसी पक्ष की हार या किसी की जीत की भावना नहीं
होगी। चौथी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले पर अब जो भी होगा, वह लोकसभा
चुनाव के बाद होगा। मध्यस्थ किसी समझौते पर पहुँचे भी तो इसमें दो महीने लगेंगे।
यानी कि मई के दूसरे हफ्ते से पहले कुछ होगा नहीं और उसी वक्त चुनाव परिणाम आ रहे
होंगे। उसके बाद अदालती कार्यवाही चलेगी।
Saturday, March 9, 2019
Friday, March 8, 2019
राजनीति के दरवाजे से बाहर क्यों हैं स्त्रियाँ?
बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में भारत के
तकनीकी-आर्थिक रूपांतरण के समांतर सबसे बड़ी परिघटना है सामाजिक जीवन में लड़कियों
की बढ़ती भागीदारी. सत्तर के दशक तक भारतीय महिलाएं घरों तक
सीमित थीं, आज वे जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद हैं. युवा स्त्रियाँ आधुनिकीकरण और सामाजिक रूपांतरण में सबसे बड़ी भूमिका
निभा रहीं हैं. भूमिका बढ़ने के साथ उनसे जुड़े सवाल भी खड़े हुए
हैं. पिछले साल जब ‘मी-टू’ आंदोलन ने भारत में प्रवेश किया था, तब काफी
स्त्रियों ने अपने जीवन के ढके-छिपे पहलुओं को उजागर किया. न जाने कितने तथ्य अभी
छिपे हुए हैं.
‘यत्र नार्यस्तु...’ के देश में स्त्रियों के जीवन की जमीन बहुत कठोर है. उन्हें अपनी जगह
बनाने में जबर्दस्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. फिर भी वे इनका मुकाबला
करते हुए आगे बढ़ रहीं हैं. दिसम्बर, 2012 में दिल्ली रेप कांड के बाद
स्त्री-चेतना में विस्मयकारी बदलाव हुआ था. लम्बे अरसे से छिपा गुस्सा एकबारगी
सामने आया. यह केवल स्त्रियों का गुस्सा नहीं था, पूरे समाज की नाराजगी थी. उस आंदोलन
की अनुगूँज शहरों, कस्बों, गाँवों और गली-मोहल्लों तक में सुनाई पड़ी थी. उस आंदोलन
से बड़ा बदलाव भले नहीं हुआ, पर सामाजिक जीवन में एक नया नैरेटिव तैयार हुआ.
Sunday, March 3, 2019
क्या यह सिर्फ मीडिया का स्वांग था?
पिछले पखवाड़े भारत-पाकिस्तान टकराव का एक और दौर पूरा हो गया। इस दौरान सीमा के दोनों तरफ के मीडिया का एक और चिंतनीय चेहरा सामने आया है। मीडिया ने हमारे विमर्श का एजेंडा तय करना शुरू कर दिया है, जबकि वह खुद संशयों का शिकार है। वह अपने थिएटरी निष्कर्षों को दर्शकों के दिलो-दिमाग में डाल रहा है। यह बात पिछले एक पखवाड़े के घटनाक्रम से समझी जा सकती है। शुक्रवार देर रात तक टीवी से चिपके लोगों को एंकर और रिपोर्टर समझाते रहे कि अभिनंदन अब आए, अब आने वाले हैं, आते ही होंगे वगैरह। बहरहाल जब वे आए वाघा सीमा पर मौजूद भीड़ से मुखातिब होने का मौका उन्हें नहीं मिला। क्यों हुआ इतना लम्बा ड्रामा?
Friday, March 1, 2019
आतंकवाद से लड़ने की पेचीदगियाँ
भारतीय पायलट की वापसी के कारण फिलहाल दोनों देशों के बीच फैला तनाव कुछ समय के लिए दूर जरूर हो गया है, पर आतंकवाद का बुनियादी सवाल अपनी जगह है. यह सब पुलवामा कांड के कारण शुरू हुआ था. बुधवार को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिर से प्रस्ताव रखा है कि जैशे-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाए. परिषद की प्रतिबंध समिति अगले दस दिन में इसपर विचार करेगी. पता नहीं, प्रस्ताव पास होगा या नहीं. चीन ने पुलवामा कांड की निंदा की है और बालाकोट पर की गई भारतीय वायुसेना की कार्रवाई की आलोचना भी नहीं की है, पर इस प्रस्ताव पर उसका दृष्टिकोण क्या होगा, यह देखना होगा.
पिछले दस साल में यह चौथी कोशिश है. सारी कोशिशें चीन ने नाकाम की हैं. वुज़ान में विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हालांकि चीन ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सारी बातों का समर्थन किया, पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया. एक प्रतिबंधित संगठन के नेता पर प्रतिबंध लगाने में इतने पेच हैं. हम इस वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकते.
आतंकवाद पर विजय केवल फौजी कार्रवाई से हासिल नहीं होगी. उसके लिए राजनयिक मोर्चे पर ही लड़ना होगा. और केवल मसूद अज़हर पर पाबंदी लगाने से सारा काम नहीं होगा. पर वह बड़ा कदम होगा. सफलता तभी मिलेगी, जब पाकिस्तानी समाज इसके खिलाफ खड़ा होगा. सीमा के दोनों तरफ कट्टरता का माहौल खत्म होगा और कश्मीर में शांति की स्थापना होगी. क्या यह सब आसानी से सम्भव है?
बालाकोट स्थित जैशे-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर पर हमले के बाद पाकिस्तानी आईएसपीआर के मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने सुबह 5.12 मिनट पर पहला ट्वीट किया था, पर भारत सरकार की तरफ से पहली आधिकारिक जानकारी 11.30 बजे विदेश सचिव विजय गोखले ने दी. रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में काफी सोच-विचार के बाद भारत ने इसे ‘नॉन-मिलिट्री’ एक्शन बताया था. हमला पाकिस्तान पर नहीं था, बल्कि ऐसे दुश्मन पर था, जो पाकिस्तान में तो है, पर नॉन-स्टेट एक्टर है.
पिछले दस साल में यह चौथी कोशिश है. सारी कोशिशें चीन ने नाकाम की हैं. वुज़ान में विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हालांकि चीन ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सारी बातों का समर्थन किया, पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया. एक प्रतिबंधित संगठन के नेता पर प्रतिबंध लगाने में इतने पेच हैं. हम इस वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकते.
आतंकवाद पर विजय केवल फौजी कार्रवाई से हासिल नहीं होगी. उसके लिए राजनयिक मोर्चे पर ही लड़ना होगा. और केवल मसूद अज़हर पर पाबंदी लगाने से सारा काम नहीं होगा. पर वह बड़ा कदम होगा. सफलता तभी मिलेगी, जब पाकिस्तानी समाज इसके खिलाफ खड़ा होगा. सीमा के दोनों तरफ कट्टरता का माहौल खत्म होगा और कश्मीर में शांति की स्थापना होगी. क्या यह सब आसानी से सम्भव है?
बालाकोट स्थित जैशे-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर पर हमले के बाद पाकिस्तानी आईएसपीआर के मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने सुबह 5.12 मिनट पर पहला ट्वीट किया था, पर भारत सरकार की तरफ से पहली आधिकारिक जानकारी 11.30 बजे विदेश सचिव विजय गोखले ने दी. रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में काफी सोच-विचार के बाद भारत ने इसे ‘नॉन-मिलिट्री’ एक्शन बताया था. हमला पाकिस्तान पर नहीं था, बल्कि ऐसे दुश्मन पर था, जो पाकिस्तान में तो है, पर नॉन-स्टेट एक्टर है.
Monday, February 25, 2019
कश्मीरियों को जोड़िए, तोड़िए नहीं
पुलवामा हमले के बाद देश के कई इलाकों में कश्मीरी
मूल के लोगों पर हमले की खबरें आईं और इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र
सरकार समेत 11 राज्यों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने सभी राज्यों के चीफ
सेक्रेटरी और डीजीपी को निर्देश दिया है कि कश्मीरियों पर होने वाले किसी भी हमले के
खिलाफ तुरंत कार्रवाई करें. जिन राज्यों को नोटिस दिया गया है उनमें जम्मू कश्मीर
उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, बिहार, मेघालय,
छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल, पंजाब
और महाराष्ट्र शामिल हैं.
कश्मीरियों पर हमलों की खबरों
के साथ ऐसी खबरें भी हैं कि कई जगहों पर इन्हें बचाने वाले लोग
भी सामने आए. हालांकि ऐसी खबरों को ज्यादा तवज्जोह नहीं मिली, पर सुप्रीम कोर्ट के
निर्देश से भरोसा बढ़ा है. भले ही बचाने वालों की संख्या कम रही हो, पर हमारे बीच
सकारात्मक सोच वाले भी मौजूद हैं. लोगों को भावनाओं में बहाना आसान है, सकारात्मक
सोच पैदा करना काफी मुश्किल है. पर हमें इसके व्यापक पहलुओं पर विचार करना चाहिए. साथ ही मॉब लिंचिंग की मनोदशा को पूरी ताकत से धिक्कारना होगा. यदि हम कश्मीरियों को कट्टरपंथी रास्ते पर जाने से रोकना चाहते हैं, तो पहले हमें उस रास्ते का बहिष्कार करना होगा.
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