Sunday, July 5, 2015

तकनीकी क्रांति की सौगात

नरेंद्र मोदी सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम की उपयोगिता पर राय देने के पहले यह जानकारी देना उपयोगी होगा कि सरकार प्राथमिक कृषि उत्पादों के लिए एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल शुरू करने की कोशिश कर रही है। यह पोर्टल शुरू हुआ तो एक प्रकार से एक अखिल भारतीय मंडी या बाजार की स्थापना हो जाएगी, जिसमें किसान अपनी फसल देश के किसी भी इलाके के खरीदार को बेच सकेगा। ऐसे बाजार का संचालन तकनीक की मदद से सम्भव है। ऐसे बाजार की स्थापना के पहले सरकार को कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में बदलाव करना होगा।

Saturday, July 4, 2015

‘डिजिटल इंडिया’ के लिए क्या हम तैयार हैं?

मोबाइल फोन की वजह से भारत में कितना बड़ा बदलाव आया?  हमने इसे अपनी आँखों से देखा है।  पर इस बदलाव के अंतर्विरोध भी हैं। पिछले दिनों हरियाणा की दो लड़कियों के साथ एक बस में कुछ लड़कों की मारपीट हुई। इसका किसी ने अपने मोबाइल फोन में वीडियो बना लिया। उस वीडियो से लड़कों पर आरोप लग रहे थे तो एक और वीडियो सामने आ गया। जब सारे पहलुओं पर गौर किया जाए तो कुछ निष्कर्ष बदले। ऐसा ही एक वीडियो दिल्ली में एक ट्रैफिक पुलिस कर्मी और एक स्कूटर सवार महिला के बीच झगड़े का नमूदार हुआ। वीडियो के जवाब में एक और वीडियो आया। पूरे देश में सैकड़ों, हजारों ऐसे वीडियो हर समय बनने लगे हैं। सिर्फ झगड़ों के ही नहीं। सैर-सपाटों, जन्मदिन, समारोहों, जयंतियों, मीटिंगों और अपराध के।

सॉफ्टवेयर के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश कब और कैसे बन गया, इसके बारे में आपने कभी सोचा? पिछले तीन-साढ़े तीन दशक में भारी बदलाव आया है। सन 1986 में सेंटर फॉर रेलवे सिस्टम (सीआरआईएस-क्रिस) की स्थापना हुई, जिसने यात्रियों के सीट रिज़र्वेशन की प्रणाली का विकास किया। हालांकि इस सिस्टम को लेकर अब भी शिकायतें हैं, पर इसमें दो राय नहीं कि तीन दशक पहले की और आज की रेल यात्रा में बुनियादी बदलाव आ चुका है। पूरे देश में यात्रियों का आवागमन कई गुना बढ़ा है। यह आवागमन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसी क्रांति दुनिया में कहीं नहीं हुई। पिछले साल दीवाली के मौके पर अचानक ई-रिटेल के कारोबार ने दस्तक दी। इसके कारण केवल सेवा का विस्तार ही नहीं हुआ है, नए किस्म के रोजगार भी तैयार हुए हैं।

Friday, July 3, 2015

‘व्यापम’ यानी भ्रष्टाचार का नंगा नाच

जिस तरह सन 2010 में टू-जी मामले ने यूपीए सरकार की अलोकप्रियता की बुनियाद डाली थी, लगभग उसी तरह मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला भारतीय जनता पार्टी के गले की हड्डी बनेगा. लगता यह है कि अगले कुछ दिनों में शिवराज सिंह चौहान सरकार के लिए यह खतरे का संदेश लेकर आ रहा है. इसमें व्यक्तिगत रूप से वे भी घिरे हैं. और अब जितना इस मामले को दबाने की कोशिश होगी, उतना ही यह उभर कर आएगा. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों इसे राजनीतिक समस्या मानकर चल रहे हैं, जबकि यह केस देश की सड़ती प्रशासनिक व्यवस्था और भ्रष्ट राजनीति की पोल खोल रहा है. हैरत है कि हमारा हाहाकारी मीडिया अभी तक इस हल्के ढंग से ले रहा है. यह मामला दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर आया है और लगता है कि यहाँ से यह निर्णायक मोड़ लेगा.

Sunday, June 28, 2015

भारत को बदनाम करने की पाक-हड़बड़ी

पाकिस्तानी मीडिया में छह पेज का एक दस्तावेज प्रकाशित हुआ है, जो दरअसल ब्रिटेन की पुलिस के सामने दिया गया एक बयान है। इसमें मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के वरिष्ठ नेता तारिक मीर ने स्वीकार किया है कि भारतीय खुफिया संगठन रॉ ने हमें पैसा दिया और हमारे कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। यह दस्तावेज आज के इंडियन एक्सप्रेस में भी छपा है। इस दस्तावेज को जारी करने वाले ने इसके काफी हिस्सों को छिपाकर केवल कुछ हिस्से ही जारी किए हैं। इतना समझ में आता है कि ये दस्तावेज़ पाकिस्तान सरकार के इशारे पर जारी हुए हैं। इसके दो-तीन दिन पहले बीबीसी टीवी और वैब पर एक खबर प्रसारित हुई थी, जिसमें इसी आशय की जानकारी थी। पाकिस्तानी मीडिया में इस दस्तावेज के अलावा बैंक एकाउंट वगैरह की जानकारी भी छपी है। जब तक इन बातों की पुष्टि नहीं होती, यह कहना मुश्किल है कि जानकारियाँ सही हैं या नहीं। अलबत्ता पाकिस्तान सरकार अपने देश में लोगों को यह समझाने में कामयाब हो रही है कि भारतीय खुफिया संगठन उनके यहाँ गड़बड़ी फैलाने के लिए सक्रिय है। इससे उसके दो काम हो रहे हैं। एक तो भारत बदनाम हो रहा है और दूसरे एमक्यूएम की साख गिर रही है। अभी तक पाकिस्तान के खुफिया अभियानों की जानकारी ज्यादातर मिलती थी। इस बार भारत के बारे में जानकारी सामने आई है। फिलहाल वह पुष्ट नहीं है, पर यह समझने की जरूरत है कि ये बातें इस वक्त क्यों सामने आईं और बीबीसी ने इसे क्यों उठाया, जबकि जानकारियाँ पाकिस्तान सरकार ने उपलब्ध कराईं। बाद में उन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई।

Friday, June 26, 2015

बीबीसी की रपट पर भारतीय प्रतिक्रिया

बीबीसी की एमक्यूएम को भारतीय फंडिंग की 'धमाकेदार' रिपोर्ट पाकिस्तान के मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर छाई हुई है. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी सेना और सरकार ने भारत के खुफिया संगठन रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के आरोप लगाए हैं. वे आरोप पाकिस्तानी सरकार ने लगाए थे. बीबीसी की रिपोर्ट का नाम सुनने से लगता है कि यह बीबीसी की कोई स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट है, पर यह पाकिस्तानी सरकार के सूत्रों पर आधारित है. पाकिस्तान सरकार के आरोपों को बीबीसी की साख का सहारा जरूर मिला है. भारत सरकार ने इस ख़बर में किए गए दावों को 'पूरी तरह आधारहीन' करार दिया है. एमक्यूएम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी की ख़बर को 'टेबल रिपोर्ट' क़रार दिया.

बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.

पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.

बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-