Sunday, December 21, 2014

उत्साहवर्धक है कश्मीर की वोटिंग

बहुत कुछ कहता है भारी मतदान

  • 51 मिनट पहले

चुनाव, कश्मीर

झारखंड और भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव अपने राजनीतिक निहितार्थ के अलावा सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से महत्वपूर्ण होते हैं.
इन दोनों राज्यों में शांतिपूर्ण तरीक़े से मतदान होना चुनाव व्यवस्थापकों की सफलता को बताता है और मतदान का प्रतिशत बढ़ना वोटर की जागरूकता को.
दोनों राज्यों के हालात एक-दूसरे से अलग हैं, पर दोनों जगह एक तबक़ा ऐसा है जो चुनावों को निरर्थक साबित करता है.
इस लिहाज से भारी मतदान होना वोटर की दिलचस्पी को प्रदर्शित करता है.

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चुनाव, कश्मीर

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और झारखंड में माओवादियों का डर था.
दोनों राज्यों में भारी मतदान हुआ. यूं भी सन 2014 को देश में भारी मतदान के लिए याद किया जाएगा. साल का अंत भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ अच्छी यादें छोड़कर जा रहा है.
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में पिछले 25 साल का सबसे भारी मतदान इस बार हुआ है.
सन 2002 के विधान सभा चुनावों ने कश्मीर में नया माहौल तैयार किया था, पर घाटी में मतदान काफ़ी कम होता था. पर इस बार कहानी बदली हुई है.
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहले और दूसरे दौर का मतदान था. दोनों में 71 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े.

Saturday, December 20, 2014

भारत बनाम चीन : निर्माण क्षेत्र की भावी प्रतियोगिता

 Well before the arrival of Modi, Indian leaders had talked about promoting manufacturing. The slowdown in China, however, could make a big difference this time. China became an export powerhouse because of its vast pool of low-wage workers, but it’s no longer so cheap to manufacture there. Pinched by double-digit increases in China’s minimum wages, many companies are looking for low-cost alternatives. Southeast Asian countries such as Vietnam and Indonesia are attractive, but they lack the deep supply of workers available in India. “It’s the only country that has the scale to take up where China is leaving off,” says Frederic Neumann, a senior economist with HSBC (HSBC). Vietnam and Indonesia? “Neither one is big enough to take up the slack,” he says, leaving India with a “golden opportunity.
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क्या चीन ने अमरीका को पीछे छोड़ दिया है?

पिछले 140 सालों में यह पहली बार हुआ है. अमरीका ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का रुतबा खो दिया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के मुताबिक़ अब ये हैसियत चीन के पास है. लेकिन सवाल उठता है कि इस दावे को मजबूती देने वाले आंकड़ों पर किस हद तक भरोसा किया जा सकता है. बीबीसी के आर्थिक मामलों के संपादक रॉबर्ट पेस्टन बता रहे हैं कि आख़िर चीन क्यों हम सबके लिए मायने रखता है.
चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था 17.6 ट्रिलियन डॉलर की है जबकि आईएमएफ़ ने अमरीका के लिए 17.4 ट्रिलियन का अनुमान लगाया है.


Friday, December 19, 2014

इंटरनेट की स्वतंत्रता और उस पर नियंत्रण का सवाल


हाल में बेंगलुरु में आईएस के ट्वीट हैंडलर मेहदी विश्वास की गिरफ्तारी के बाद यह बहस आगे बढ़ी है कि  इंटरनेट पर विचारों और सूचना के आदान-प्रदान की आजादी किस हद तक होनी चाहिए। इस बात की जानकारी मिल रही है कि इराक में बाकायदा लड़ाई लड़ रहा आईएस सोशल मीडिया का भरपूर इस्कतेमाल कर रहा है। एक ओर लोकतांत्रिक आजादी का सवाल है और दूसरी ओर आतंकवादी और यहाँ तक कि समुद्री डाकू भी इसका सहारा ले रहे हैं। 

Thursday, December 18, 2014

India's GSLV Mk.III with prototype crew capsule


India debuts GSLV Mk.III with prototype crew capsule

no altThe Indian Space Research Organisation has launched the first test flight of its newest rocket – the GSLV Mk.III – on Thursday, conducting a suborbital flight that also demonstrated a prototype crew capsule (CARE) for India’s proposed manned missions. Liftoff from the Satish Dhawan Space Centre occurred at 09:30 local time (04:00 UTC).

ISRO Launch:
India’s new rocket, which the Indian Space Research Organisation (ISRO) refers to by the names GSLV Mk.III and LVM3, is a completely new vehicle marking the third generation for India’s orbital launch systems.
The two-stage rocket is designed to place around 10 tonnes (9.8 Imperial tons, 11 US tons) of payload into low earth orbit or four tonnes (3.9 Imperial tons, 4.4 US tons) to a geosynchronous transfer orbit.
2014-12-18 01_00_29-LIVE_ GSLV Mk-3 1st test launch (X1) December 18, 2014 (ETD 0400UTC)For Thursday’s mission only the first stage and boosters were live, while the inert second stage was loaded with liquid nitrogen to simulate propellant.

अपने भस्मासुर से रूबरू पाकिस्तान

पाकिस्तान सरकार ने सन 2008 में आतंकियों को फाँसी दने पर रोक लगा दी थी। पेशावर के हत्याकांड के बाद सरकार ने उस रोक को हटाने का फैसला किया है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें दो राय नहीं कि आत्मघाती हमले करने वाले लोग एक खास किस्म की मनोदशा में आते हैं। उनका ब्रेनवॉश होता है। उन्हें जुनूनी विचारधारा से लैस किया जाता है। फाँसी की सजा उन्हें कितना रोक पाएगी? अलबत्ता इस फैसले से सरकारी मंशा का पता लगता है। पेशावर हमले के बाद आज सुबह के भारतीय अखबारों में हाफिज सईद का बयान छपा है। उसने कहा है कि पेशावर हमला भारत की साजिश है। उसका यह बयान पाकिस्तानी चैनलों पर प्रसारित किया गया। देश के किसी नेता ने उसके बयान पर आपत्ति व्यक्त नहीं की है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में पाकिस्तान की आतंकवाद से लड़ाई किस किस्म की होगी। 

पेशावर में स्कूली बच्चों की हत्या के बाद सवाल पैदा होता है कि क्या पाकिस्तान अब आतंकवादियों के खिलाफ कमर कस कर उतरेगा? वहाँ की जनता कट्टरपंथियों को खारिज कर देगी? क्या उन्हें 26/11 के मुम्बई हमले और इस हत्याकांड में समानता नज़र आएगी? तमाम भावुक संदेशों और आँसू भरी कहानियों के बाद भी लगता नहीं कि इस समस्या का समाधान होने वाला है। तहरीके तालिबान के खिलाफ सेना अभियान चलाएगी। उसमें भी लोग मरेंगे, पर यह अभियान आतंकवाद के खिलाफ नहीं होगा। उन लोगों के खिलाफ होगा जिन्हें व्यवस्था ने हथियारबंद किया, ट्रेनिंग दी और खूंरेज़ी के लिए उकसाया। इस घटना के बाद पाकिस्तानी अख़बार डॉनने अपने सम्पादकीय में लिखा है, ऐसी घटनाओं के बाद लड़ने की इच्छा तो पैदा होगी, पर वह रणनीति सामने नहीं आएगी जो हमें चाहिए। फाटा (फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया) में फौजी कार्रवाई और शहरों में आतंक-विरोधी ऑपरेशन तब तक मामूली फायर-फाइटिंग से ज्यादा साबित नहीं होंगे, जब तक उग्रवादियों की वैचारिक बुनियाद और उनकी सामाजिक पकड़ पर हमला न किया जाए।