Saturday, August 9, 2014

योजना आयोग रहे न रहे, राज्यों की भूमिका बढ़नी चाहिए

यूपीए सरकार और उसकी राजनीति में अंतर्विरोध था। सरकार आर्थिक उदारीकरण पर कटिबद्ध थी और पार्टी नेहरूवादी सोच में कैद थी। मोदी सरकार के सामने भी अंतर्द्वंद है। पर मनमोहन सरकार के मुकाबले वह ज्यादा खुलकर काम कर सकती है। यह बात योजना आयोग को लेकर चल रही अटकलों के संदर्भ में कही जा सकती है। योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने पिछले हफ्ते राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा कि आयोग को फिलहाल खत्म करने या उसके मौजूदा स्वरूप को युक्तिसंगत बनाने का कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है। पर इस बार के बजट का साफ संकेत है कि आयोग के पर कतरे जाएंगे।
योजनागत और गैर-योजनागत व्यय में अंतर पिछली सरकार ने अपने अंतरिम बजट में ही कर दिया था। सरकारी विभागों को दो तरीके से धनराशि आवंटित होती है। एक, वित्त मंत्रालय के जरिए और दूसरे योजना आयोग से। इस विसंगति को दूर किया जा रहा है। यह अवधारणा मोदी सरकार की देन नहीं है। इसकी सिफारिश रंगराजन समिति ने की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बरसों से इसकी बात करते रहे हैं। उन्होंने अपने विदाई भाषण में लगातार खुलती जा रही अर्थव्यवस्था में योजना आयोग की भूमिका की समीक्षा करने की सलाह दी थी। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में भी आयोग के पुनर्गठन की बात कही गई है। अलबत्ता वामपंथी दलों को यह विचार पसंद नहीं आएगा।

Friday, August 8, 2014

पानी में फँसा नौजवान, नीतीश कुमार और टाटा

बारिश कम हो तो परेशानी और ज्यादा हो तो और ज्यादा परेशानी। आज के भास्कर के पहले सफे पर एक पिलर के सहारे लटके एक युवक की तस्वीर है, जो तेज बहते पानी के बीच फँसा है। इन दिनों ऐसे दृश्य देश भर से देखने को मिल रहे हैं। मोबाइल फोनों में लगे कैमरों ने अब ऐसी खबरें लेना आसान बना दिया है। राजस्थान पत्रिका ने जयपुर के महिला कॉलेजों में चल रहे छात्रसंघ चुनाव में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका पर रोचक फीचर छापा है। ऐसी ही कुछ और तस्वीरें दूसरे अखबारों में हैं। एक रोचक खबर बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्र और रतन टाटा के बीच शाब्दिक जिरह को लेकर है। रतन टाटा ने एक रोज पहले कहा था कि मैं दो साल बाद कोलकाता आया हूँ और मुझे राजरहाट इलाके में औद्योगिक विकास नजर नहीं आया। इस पर अमित मित्र ने कहा कि टाटा का दिमाग फिर गया है। सिंगुर मामले के कारण नैनो परियोजना को बंगाल से गुजरात ले जाने वाले टाटा के मन में खलिश है। मित्रा-टाटा संवाद पर आज के टेलीग्राफ ने जोरदार कवरेज की है। आज की एक रोचक खबर बिहार से है जहाँ के मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी ने कहा है कि चुनाव के बाद हम जीते तो मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार बनेंगे। जेडीयू, राजद और कांग्रेस के गठबंधन ने बिहार में गठबंधन की योजना बना ली है। चुनाव अभी दूर है। आज की कुछ कतरनें



Wednesday, August 6, 2014

जितना महत्वपूर्ण है इतिहास बनना, उतना ही जरूरी है उसे लिखा जाना

संजय बारू के बाद नटवर सिंह की किताब का निशाना सीधे-सीधे नेहरू-गांधी परिवार है। देश का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवार आज से नहीं कई दशकों से राजनीतिक निशाने पर है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि इस परिवार ने सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में भागीदारी की। केवल सत्ता का सामान्य भोग ही नहीं किया, काफी इफरात से किया। इस वक्त कांग्रेस इस परिवार का पर्याय है। अब मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल : मनमोहन एंड गुरशरण' आने वाली है। दमन सिंह ने यह किताब मनमोहन सिंह पर एक व्यक्ति के रूप में लिखे जाने का दावा किया है, प्रधानमंत्री मनमोहन पर नहीं। अलबत्ता 5 अगस्त के टाइम्स ऑफ इंडिया में सागरिका घोष के साथ इंटरव्यू में कही गई बातों से लगता है कि मनमोहन सिंह के पास भी कहने को कुछ है। दमन सिंह ने मनमोहन सिंह के पीवी नरसिम्हाराव और इंदिरा गांधी के साथ रिश्तों पर तो बोला है, पर सोनिया गांधी से जुड़े सवाल पर वे कन्नी काट गईं और कहा कि यह सवाल उनसे (यानी मनमोहन सिंह से) ही करिेेए। इससे यह भी पता लगेगा कि नेहरूवादी आर्थिक दर्शन से जुड़े रहे मनमोहन सिंह ग्रोथ मॉडल पर क्यों गए और भारत के व्यवस्थागत संकट को लेकर उनकी राय क्या है। इस किताब को मैने भी मँगाया है। रिलीज होने के बाद मिलेगी। फिलहाल जो दो-तीन किताबें सामने आईं हैं या आने वाली हैं, उनसे  भारत की राजनीति के पिछले ढाई दशक पर रोशनी पड़ेगी। इनसे देश की राजनीतिक संस्कृति और सिस्टम के सच का पता भी लगेगा। यह दौर आधुनिक भारत का सबसे महत्वपूर्ण दौर रहा है।  नीचे मेरा लेख है, जो मुंबई से प्रकाशित दैनिक अखबार एबसल्यूट इंडिया में प्रकाशित हुआ है।


ऐसे ही तो लिखा जाता है इतिहास
यूपीए सरकार के दस साल, उसमें शामिल सहयोगी दलों की करामातें, सोनिया गांधी का त्याग, मनमोहन सिंह की मजबूरियाँ और राहुल गांधी की झिझक से जुड़ी पहेलियाँ नई-नई शक्ल में सामने आ रही हैं। संजय बारू ने 'एक्सीडेंटल पीएम लिखकर जो फुलझड़ी छोड़ी थी उसने कुछ और किताबों और संस्मरणों को जन्म दिया है। इस हफ्ते दो किताबों ने कहानी को रोचक मोड़ दिए हैं। कहना मुश्किल है कि सोनिया गांधी किताब लिखने के अपने वादे को पूरा करेगी या नहीं, पर उनके लिखे जाने की सम्भावना ने ही माहौल को रोचक और जटिल बना दिया है। अभी तक कहानी एकतरफा थी। यानी लिखने वालों पर कांग्रेस विरोधी होने का आरोप लगता था। पर मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने भी माना है कि पार्टी के भीतर मनमोहन सिंह का विरोध होता था।

Tuesday, August 5, 2014

आमिर को चीप पब्लिसिटी की क्या जरूरत?

आमिर को चीप पब्लिसिटी की क्या जरूरत? इस बार नकल में अकल नहीं लगाई...

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
फिल्‍म ‘पीके’ के पोस्टर में आमिर खान का निर्वस्त्र होकर फोटो खिंचाना उन्हें विवादास्पद और एक हद तक अभद्र साबित करता है। वे मार्केटिंग विशेषज्ञ के रूप में सफल साबित हुए हैं। पर उनके सम्मान को ठेस लगने का खतरा भी पैदा हो रहा है। कहा जा रहा है कि उनकी प्रेरणा स्रोत पूनम पाण्डेय हैं। क्या आमिर खान को पब्लिसिटी चाहिए? क्या उनका अंतिम ध्येय व्यावसायिक सफलता ही हासिल करना है? इससे उनकी उस गम्भीर छवि को धक्का लगेगा, जो ‘सत्यमेव जयते’ के कारण बनी है। यह उसी तरह है जैसा क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का भारत रत्न बनने के बाद भी कारोबारी विज्ञापनों में नजर आना अच्छा नहीं लगता।
आप कह सकते हैं कि आखिर उन्हें धंधा भी करना है। सच है कि धंधे में आमिर सफल हैं। चूंकि वे सफल हैं तो वे जो भी करेंगे, वह सफल होता जाएगा। ‘थ्री ईडियट्स’ और ‘गजनी’ फिल्मों की मार्केटिंग के लिए उन्होंने जिन फॉर्मूलों को अपनाया, उन्हें धूम-3 में उल्टा कर दिया। फिल्म के रिलीज होने के एक साल पहले फेडोरा हैट पहने आमिर की तस्वीर जारी की गई। कोई इंटरव्यू नहीं, कोई टीवी रियलिटी शो नहीं, फिल्म के संगीत को भी रहस्य बनाकर रखा गया।
पिछले साल शाहरुख खान की ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ रिलीज होने के पहले प्रचार की झड़ी लग गई थी। इसका फायदा भी मिला और फिल्म ने शुरुआती दिनों में ढाई सौ करोड़ से ऊपर का बिजनेस कर लिया। उसके छह महीने बाद ‘धूम-3’ ने एक प्रकार के सन्नाटे की रचना की और पांच सौ से ऊपर का बिजनेस कर लिया। आमिर खान ने ही टीवी रियलिटी शो, पात्रों की पहचान की प्रतियोगिताएं, वाराणसी में रिक्शे से घूमना, चंडीगढ़ की शादी में शामिल होने वगैरह का काम किया था।
पर कलात्मकता के लिहाज से यह पोस्टर कोई मौलिक रचना नहीं है। सन 1973 में पुर्तगाली संगीतकार किम बैरीरोज़ के पोस्टर की नकल भी लगता है, जिसमें पियानो एकॉर्डियन ने अंग को ढकने का काम किया है। आमिर ने इसके लिए स्टीरियो सिस्टम की मदद ली है। आरोप तो उनकी पुरानी फिल्मों के पोस्टरों पर भी है। पिछले साल ही जब 'धूम-3' का पोस्टर सामने आया तो कहा गया कि यह तो हॉलिवुड की फिल्म 'डार्क नाइट' के पोस्टर की नकल है। 
 

Sunday, August 3, 2014

अमेरिकी रिश्तों में गर्मजोशी

नरेंद्र मोदी सरकार ने हालांकि अपनी राजनयिक मुहिम अपने पड़ोसी देशों के साथ शुरू की है, पर उसकी असली परीक्षा अब शुरू हो रही है। अमेरिकी विदेश मंत्रि जॉन कैरी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इसके एक दिन पहले भारत-अमेरिका पांचवीं रणनीतिक वार्ता के तहत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले ही अमेरिकी सरकार ने उनसे सम्पर्क कर लिया था। इस चक्कर में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल को इस्तीफा भी देना पड़ा। कहीं बदमज़गी थी भी तो वह खत्म हो चुकी है। अमेरिका ने मोदी के और मोदी ने अमेरिका के महत्व को स्वीकार कर लिया है। जॉन कैरी ने भारत यात्रा शुरू करने के पहले 'सबका साथ सबका विकास' दृष्टिकोण का हिंदी में स्वागत करके माहौल को खुशनुमा बना दिया था।
वॉशिंगटन और दिल्ली में एकसाथ जारी किए गए भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्य में लश्करे तैयबा को अल-कायदा जैसा खतरनाक बताया गया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया गया। दोनों देशों के बीच यों तो सहमतियों के बिंदु असहमतियों के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। पर इधर डब्ल्यूटीओ पर असहमति ज्यादा बड़ा मुद्दा बनी है। कैरी की यात्रा के बाद भी वह असहमति बनी हुई है। इधर सुषमा स्वराज ने अमेरिका द्वारा भारतीय नेताओं की जासूसी का मुद्दा उठाया और कहा कि मित्रता में यह स्वीकार नहीं किया जाएगा।