Thursday, July 18, 2013

हमें तुम्हारी जरूरत है मंडेला

मन कहता है, तुम जियो हजारों साल. बीसवीं सदी ने दुनिया को जितने महान नेता दिए उतने दूसरी किसी सदी ने नहीं दिए. नेलसन मंडेला उस कद-काठी के आखिरी नेताओं में एक हैं. फिदेल कास्त्रो, अमेरिका के जिमी कार्टर और चीन के जियांग जेमिन उनसे उम्र में छह से आठ साल छोटे हैं और पहचान में भी. नेलसन मंडेला का आज जन्म दिन है. वे आज 95 वर्ष पूरे कर लेंगे (जन्मतिथि 18 जुलाई 1918). उनकी बीमारी को लेकर सारी दुनिया फिक्रमंद है. हमारी कामना है कि वे दीर्घायु हों, शतायु हों. हमें उनके जैसे नेता की आज बेहद जरूरत है। 

नेलसन मंडेला हमें अपने लगते हैं. महात्मा गांधी सत्याग्रह का अपना विचार दक्षिण अफ्रीका से लेकर आए थे। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चली लड़ाई महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चली थी. नेलसन मंडेला और महात्मा गांधी की मुलाकात कभी नहीं हुई, फिर भी दोनों गहरे दोस्त लगते हैं. अमेरिका की साप्ताहिक टाइम मैग्ज़ीन का 3 जनवरी 2000 का अंक सदी के महान व्यक्तियों पर केन्द्रित था. इसमें महात्मा गाँधी पर लेख नेलसन मंडेला ने लिखा था. उन्होंने लिखा, भारत ने दक्षिण अफ्रीका को जो गाँधी सौंपा वह बैरिस्टर था, जबकि दक्षिण अफ्रीका ने उस गाँधी को महात्मा बनाकर भारत को लौटाया. भारत ने केवल दो गैर-भारतीयों को भारत रत्न दिया है. पहले थे खान अब्दुल गफ्फार खां और दूसरे नेलसन मंडेला.

Sunday, July 14, 2013

इस फजीहत से नहीं रुकेगा आतंकवाद

इसी हफ्ते गृहमंत्री सुशील शिंदे ने बताया कि नेशनल काउंटर टैररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) के गठन का प्रस्ताव पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। उसे देश की राजनीति खा गई। इन दिनों इंटेलीजेंस ब्यूरो और नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी तथा सीबीआई के बीच इशरत जहाँ के मामले को लेकर जवाबी कव्वाली चल रही है। सीबीआई के ऊपर आपराधिक मामलों की जांच की जिम्मेदारी है। और खुफिया एजेंसियों के पास देश के खिलाफ होने वाली आपराधिक गतिविधियों पर नजर रखने की। दुनिया के किसी देश की खुफिया एजेंसी नियमों और नैतिकताओं का शत-प्रतिशत पालन करने का दावा नहीं कर सकती। इसीलिए खुफिया एजेंसियों के कई प्रकार के खर्चों को सामान्य लेखा परीक्षा के बाहर रखा जाता है। उनकी गोपनीयता को संरक्षण दिया जाता है। बहरहाल इस मामले में अभी बहस चल ही रही थी कि बोधगया में धमाके हो गए। वहाँ तेरह बम लगाए गए थे, जिनमें से दस फट गए। यह सब तब हुआ जब खुफिया विभाग ने पहले से सूचना दे रखी थी कि बोधगया ही नहीं अनेक बौद्ध स्थलों पर हमला होने का खतरा है।

Saturday, July 13, 2013

नरेन्द्र मोदी की बात पर हंगामा है क्यों...

 शनिवार, 13 जुलाई, 2013 को 13:55 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
मोदी के "कुत्ते के पिल्ले के मरने पर भी दुख होता है" बयान के बाद हंगामा मच गया है
नरेन्द्र मोदी भारत के ध्रुवीकारी नेताओं में सबसे आगे हैं, इसे मान लिया जाना चाहिए. उनका समर्थन और विरोध लगभग समान आक्रामक अंदाज़ में होता है. इस वजह से उन्हें ख़बरों में बने रहने के लिए अब कुछ नहीं करना पड़ता.
ख़बरों को उनकी तलाश रहती है. इसमें आक्रामक समर्थकों से ज़्यादा उनके आक्रामक विरोधियों की भूमिका होती है.
दूसरी बात यह कि उनसे जुड़ी हर बात घूम फिर कर सन 2002 पर जाती है. रॉयटर्स के रॉस कॉल्विन और श्रुति गोत्तीपति का पहला सवाल इसी से जुड़ा था. वे जानना चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी को क्या घटनाक्रम पर कोई पछतावा है.

पिल्ले का रूपक

मोदी का वही जवाब था जो अब तक देते रहे हैं. उनका कहना था, "फ्रस्टेशन तब आएगा जब मैने कोई ग़लती की होगी. मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं."

विपक्ष का ‘गेम चेंजर’ भी हो सकता है खाद्य सुरक्षा अध्यादेश

खाद्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा विधेयक और खाद्य सुरक्षा अध्यादेश एक सिक्के के तीन पहलू हैं। खाद्य सुरक्षा पर सिद्धांततः राष्ट्रीय सवार्नुमति है। किसी पार्टी में हिम्मत नहीं कि वह खुद को जन-विरोधी साबित करे।
भले ही अर्थशास्त्रीय दृष्टि कहती हो कि अंततः इसकी कीमत गरीब जनता को चुकानी होगी। पर खाद्य सुरक्षा विधेयक को लेकर गहरी असहमतियाँ हैं। वामपंथी दल चाहते हैं कि खाद्य सुरक्षा सार्वभौमिक होनी चाहिए। सबके लिए समान। 
भाजपा बहस चाहती है। अध्यादेश के रास्ते इसे लागू करने का समर्थन किसी ने नहीं किया है। पर क्या विपक्ष इस अध्यादेश को रोकेगा? और रोका तो क्या कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा? और क्या विपक्ष इस मामले में कांग्रेस का पर्दाफाश कर पाएगा?
 दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक-कल्याण योजना क्या बगैर संसदीय विमर्श के लागू हो जाएगी? कांग्रेस क्या अर्दब में है या विपक्ष एक मास्टर स्ट्रोक में मारा गया?

Friday, July 5, 2013

क्या भाजपा चेहरा बदल रही है?

 शुक्रवार, 5 जुलाई, 2013 को 06:49 IST तक के समाचार
भाजपा की अंदरूनी राजनीति
मीडिया रिपोर्टों पर भरोसा करें तो इशरत जहाँ मामले में क्लिक करेंचार्जशीटदाखिल होने के बाद सीबीआई और आईबी के भीतर व्यक्तिगत स्तर पर गंभीर चर्चा है.
ये न्याय की लड़ाई है या राजनीतिक रस्साकसी, जिसमें दोनों संगठनों का क्लिक करेंइस्तेमाल हो रहा है?
जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै के वकील मुकुल सिन्हा हैरान हैं कि आईबी के स्पेशल डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार का नाम सीबीआई की पहली चार्जशीट में क्यों नहीं है.
उन्हें लगता है कि राजेन्द्र कुमार का नाम न आने के पीछे क्लिक करेंराजनीतिक दबाव है.
इसका मतलब है कि जिस रोज सरकार सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई को आजाद पंछी बनाने का हलफनामा दे रही थी उसी रोज सीबीआई ऐसा आरोप-पत्र पेश कर रही थी, जिसके कारण उसपर सरकारी दबाव में काम करने का आरोप लगता है.
राजेन्द्र कुमार का नाम होता तो भाजपा को आश्चर्य होता. नहीं है तो मुकुल सिन्हा को आश्चर्य है.
अभी क्लिक करेंतफ्तीश ख़त्म नहीं हुई है. सीबीआई सप्लीमेंट्री यानि पूरक चार्जशीट भी दाखिल करेगी लेकिन इस मामले में अभी कई विस्मय बाकी हैं.