Sunday, October 19, 2025

अज्ञान को त्यागें, ज्ञान की रोशनी फैलाएँ


अठारहवीं सदी के शायर नज़ीर अकबराबादी ने लिखा है:- हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का/हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का। दिवाली आम त्योहार नहीं है। यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व है। भारत का यह सबसे शानदार त्योहार है, जो दरिद्रता और गंदगी के खिलाफ है। अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत का पर्व। यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है। क्या ज्ञान की इस रोशनी का मतलब हम समझते हैं? दीपावली का वास्तविक संदेश है, अज्ञान को त्यागें और ज्ञान की रोशनी फैलाएँ

दीपावली लक्ष्मी की पूजा का पर्व है। अर्थात हम समृद्धि के पुजारी हैं। समृद्धि का अर्थ है, जीवन में खुशहाली। पर यह खुशहाली तभी सार्थक है, जब वह पूरे समाज के लिए उपलब्ध हो। निजी तौर पर किसी एक व्यक्ति या एक समूह के लिए नहीं। यह विचार और सिद्धांत आज भी जीवन पर लागू होता है। इसका आशय है कि यह समृद्धि समावेशी होनी चाहिए। समाज के प्रत्येक वर्ग तक इस समृद्धि का लाभ पहुँचे। हम अपने परंपरागत पर्वों और उत्सवों की मूल भावना पर गौर करें, तो पाएँगे कि उनकी संरचना इस प्रकार की थी कि समाज का प्रत्येक वर्ग उस खुशी में शामिल था। इसी भावना को आज भी बढ़ावा देने की जरूरत है।

लखनऊ की इस कला का जिक्र
 कुलसूम तल्हा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में
किया है। ऐसे कारीगरों को
 संरक्षण देना हमारा काम है। 

दीपावली केवल एक पर्व नहीं है। कई पर्वों का समुच्चय है। इस दौरान पाँच दिनों के पर्व मनाए जाते हैं। इन पाँच दिनों में हमारी परंपरागत जीवन-शैली, खानपान और सामाजिक-संबंधों पर भी रोशनी पड़ती है। हम अपने पारंपरिक उद्यमों को संरक्षण देते हैं, ताकि समाज के सभी वर्गों को उत्सव का लाभ मिले। कृपया अपने पारंपरिक उद्यमों को न भूलें।

सवाल है कि क्या अब हमारी दिवाली वही है, जो इसका मौलिक विचार और दर्शन है? अपने आसपास देखें तो आप पाएँगे कि इस रोशनी के केंद्र में अँधेरा और अंधेर भी है। यह मानसिक दरिद्रता का अंधेरा है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले पटाखों को दागने में संयम बरतने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतज़ार करना पड़ रहा है। यह तो हमारी अपनी जिम्मेदारी थी। बेशक उत्सव का पूरा आनंद लें, पर उन सामाजिक दायित्वों को न बिसराएँ, जो इन पर्वों के साथ जुड़े हैं। जिनका हमारे पूर्वजों ने पालन किया।

जैसे-जैसे दीपावली नज़दीक आती है, उत्तर भारत के आकाश पर कोहरे की परत गाढ़ी होने लगत है। माहौल में ठंड का प्रवेश होता है, जिसके कारण हवा भारी होने लगती है और वह तेजी से ऊपर नहीं उठती, जिसके कारण धुआँ और गर्द स्मॉग की शक्ल ले लेता है। स्मॉग परंपरागत अवधारणा नहीं है, क्योंकि रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ी हमारी गतिविधियाँ स्मॉग बनने नहीं देती थीं। पर औद्योगिक विकास ने स्मॉग को जन्म दे दिया है। सवाल है, ऐसे में हम क्या करें? इसका जवाब है, अपने दायित्वों का निर्वाह करें। पर क्या आप जानते हैं हमारे दायित्व क्या हैं? आपने भले ही न सोचा हो, पर हमारे समझदार पूर्वजों ने ज़रूर सोचा था। बेशक उन्होंने अपने समय के परिप्रेक्ष्य में सोचा था, और हमें आज के परिप्रेक्ष्य में सोचना होगा।

Tuesday, October 14, 2025

भारत-तालिबान के बीच बढ़ती गर्मजोशी और कुछ असमंजस


तालिबान के साथ सांस्कृतिक-अंतर्विरोधों की थोड़ी देर के लिए अनदेखी कर दें, तब भी भारत-अफगानिस्तान रिश्ते हमेशा से दोस्ती के रहे हैं. इस दृष्टि से देखें, तो पिछले हफ्ते तालिबान के विदेशमंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी की भारत-यात्रा अचानक नहीं हो गई.

इसकी पृष्ठभूमि दो-तीन साल से बन रही थी. भविष्य की ओर देखें, तो लगता है कि यह संपर्क बढ़ेगा. पिछले कुछ दिनों में पाक-अफगान सीमा पर टकराव को देखते हुए कुछ लोगों ने इसे भारत-पाक रिश्तों की तल्ख़ी से भी जोड़ा है, पर बात इतनी ही नहीं है. अफगान-पाक रिश्तों की तल्ख़ी के पीछे दूसरे कारण ज्यादा बड़े हैं.

पिछले हफ्ते भारतीय विदेश-नीति के सिलसिले में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो नए राजनयिक-परिदृश्य की ओर इशारा कर रही हैं. मुत्तकी की यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर भी भारत में थे.

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप के बीच एक बार फोन पर बातचीत भी हुई है. इसके बाद ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को सोमवार को गाज़ा पर मिस्र में हुए ‘शांति सम्मेलन’ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. हालाँकि मोदी इसमें गए नहीं, पर यह एक संकेत ज़रूर है.

वे वहाँ जाते, तो ट्रंप से मुलाकात का मौका बनता था. शायद अब यह मौका आसियान सम्मेलन में मिलेगा. बहरहाल भारत-अमेरिका व्यापार-वार्ता अब अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से आगे बढ़ रही है. फिलहाल हम भारत-अफ़गान रिश्तों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे.

पिछले साल बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद से भारत को शिद्दत से अपने इलाके में अच्छे मित्रों की तलाश है. भारत सरकार ने श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के साथ काफी हद तक रिश्तों को बेहतर किया है. उसी शृंखला में अफगानिस्तान को भी रखा जाना चाहिए.

मान्यता का मसला

भारत यह संकेत भी नहीं देना चाहता कि हम तालिबान को राजनयिक रूप से मान्यता दे रहे हैं. मान्यता तभी दी जाएगी, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसा करेगा, फिलहाल सहयोग-संबंध बनाने के लिए एक प्लेटफॉर्म की ज़रूरत होगी, इसलिए वहाँ दूतावास को फिर से खोलना सही कदम है.

हालाँकि इससे तालिबान को कुछ निराशा होगी, पर भारत अमेरिका समेत पश्चिमी खेमे को यह संकेत भी नहीं देगा कि हम रूस-चीन खेमे में शामिल हो गए हैं. बल्कि ऐसा करके पश्चिम के साथ भारत एक पुल की तरह भी काम कर सकता है.

औपचारिक राजनयिक मान्यता नहीं होते हुए भी मुत्तकी को पूरे प्रोटोकॉल के साथ विदेशमंत्री का सम्मान दिया गया. इन बातों को अंतर्विरोधों और व्यावहारिकता की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिए.

Saturday, October 11, 2025

ट्रंप की बीस-सूत्री गज़ा शांति योजना क्या है?

 

गज़ा पट्टी का नक्शा, जिसमें आईडीएफ़ की वापसी के प्रथम चरण की रेखा दर्शाई गई है।     स्रोत: वाइट हाउस

इसराइल और हमास के बीच लंबे समय से प्रतीक्षित युद्धविराम आखिरकार शुरू हो गया है। संघर्ष का अंत अभी भी अधर में लटका हुआ है, क्योंकि ट्रंप के शांति के बीस सूत्री रोडमैप में सभी पुरानी बाधाएँ अभी भी मौजूद हैं।

9 अक्तूबर की देर रात, इसराइली कैबिनेट ने हमास के साथ युद्धविराम की योजना को औपचारिक रूप से मंज़ूरी दे दी, जिससे गज़ा शांति प्रक्रिया शुरू हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि यह उनकी बीस सूत्री शांति योजना का ‘पहला चरण’ है, जिसे वाइट हाउस ने पिछले हफ़्ते पेश किया था। मध्यस्थता प्रयासों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कतर ने, इसराइली और हमास अधिकारियों की तरह, इस घटनाक्रम की पुष्टि की है।

मिस्र में इसराइल और हमास और पेरिस में यूरोपीय और अरब सहयोगियों के बीच कई दिनों तक चली गहन वार्ता के बाद युद्धविराम की ओर यह कदम उठाया गया है। यह युद्ध की दो साल की सालगिरह के ठीक पहले हो रहा है, जो 7 अक्तूबर, 2023 को शुरू हुआ था, जब हमास ने गज़ा से दक्षिणी इसराइल पर हमला किया था। हमास लड़ाकों ने लगभग 1,200 लोगों को मार डाला था और 251 अन्य को बंधक बना लिया था। हमास द्वारा संचालित गज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इसराइल ने एक बड़े सैन्य हमले के साथ जवाबी कार्रवाई की, जिसमें 67 हज़ार से ज़्यादा फलस्तीनी मारे गए। 

Friday, October 10, 2025

विदेश-नीति के ‘संतुलन’ की परीक्षा


इस साल पहले टैरिफ और फिर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अमेरिकी रुख में आए बदलाव पर भारत की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई, पर देश में आक्रोश की लहर थी। शुरू में समझ नहीं आता था, पर अब धीरे-धीरे लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच, पिछले दो दशक से चली आ रही सौहार्द-नीति में कोई बड़ा मोड़ आने वाला है। कुछ वर्षों से यह सवाल किया जा रहा है कि भारत एक तरफ रूस और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका के बीच अपनी विदेश-नीति को किस तरह संतुलित करेगा? इसे स्पष्ट करने की घड़ी अब आ रही है।

भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अफ़ग़ानिस्तान स्थित बगराम एयरबेस पर कब्ज़ा करने के प्रयास का विरोध किया है। यह अप्रत्याशित घटना तालिबान के विदेशमंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी की इस हफ़्ते के अंत में होने वाली भारत-यात्रा से कुछ दिन पहले हुई है। अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श के प्रतिभागियों द्वारा मंगलवार को जारी संयुक्त बयान में बगराम का नाम लिए बिना यह बात कही गई।

अफ़ग़ानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श की सातवीं बैठक मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान, भारत, ईरान, क़ज़ाक़िस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर आयोजित की गई थी। बेलारूस का एक प्रतिनिधिमंडल भी अतिथि के रूप में बैठक में शामिल हुआ। इस बैठक में पहली बार विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी के नेतृत्व में अफगान प्रतिनिधिमंडल ने भी सदस्य के रूप में भाग लिया।

इसके पहले ट्रंप ने कहा था कि तालिबान, देश के बगराम एयर बेस को वाशिंगटन को सौंप दें। सच यह है कि ट्रंप ने ही पाँच साल पहले तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने काबुल से अमेरिका की वापसी का रास्ता साफ किया था। पिछली 18 सितंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, ‘हमने इसे तालिबान को मुफ्त में दे दिया। अब हमें वह अड्डा वापस चाहिए।’

Wednesday, October 8, 2025

गज़ा शांति-योजना, सपना है या सच?


29 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.

असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना के अनुसार,  दोनों पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की ‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.

कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे टू स्टेट समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.

हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन अभी तक उनकी बातचीत की माँग के बारे में कुछ नहीं कहा है.

इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के पहले चरण के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद हो जाएंगे या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.