लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और इसके साथ ही परिवारवाद या वंशवाद की बहस फिर से चल निकली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कई बार वंशवाद की आलोचना करते हुए कहा है कि राजनीति में नए लोगों को आना चाहिए.
राजनीति में नए लोगों का आना यानी ‘पोलिटिकल रिक्रूटमेंट’ ऐसा विषय है, जिसपर हमारे देश में
ज्यादा विचार नहीं हुआ है. हमने मान लिया है कि कोई राजनीति में है, तो कम से कम
उसका एक बेटा या बेटी को राजनीति में जाना ही है. इसे समझना होगा कि नए लोग
राजनीति में कैसे आते हैं, क्यों आते हैं और वे सफल या विफल क्यों होते हैं?
दुनिया में लोकतंत्र अपेक्षाकृत नई व्यवस्था
है. राजतंत्र और सामंतवाद आज भी कई देशों में कायम है और हम अभी संक्रमणकाल से
गुज़र रहे हैं. लोकतंत्र अपनी पुष्ट संस्थाओं के सहारे काम करता है. विकसित
लोकतांत्रिक-व्यवस्थाओं में भी भाई-भतीजावाद, दोस्त-यारवाद,
वंशवाद, परिवारवाद वगैरह मौज़ूद है, जिसका मतलब
है मेरिट यानी काबिलीयत की उपेक्षा. जो होना चाहिए,
उसका न होना.
वंशवाद पर मोदी जब हमला करते हैं, तब सबसे पहले
उनके निशाने पर नेहरू-गांधी परिवार होता है. इसके बाद वे तमिलनाडु के करुणानिधि,
बिहार के लालू और यूपी के मुलायम परिवार वगैरह को निशाना बनाते हैं. इस बात से
ध्यान हटाने के लिए जवाब में मोदी की पार्टी पर भी प्रहार होता है.
बीजेपी के घराने
हाल में बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी होने के बाद किसी ने ट्वीट किया: प्रेम धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर, बीएस येदियुरप्पा के पुत्र राघवेंद्र, रवि सुब्रमण्य के भतीजे तेजस्वी सूर्या, वेद प्रकाश गोयल के बेटे पीयूष गोयल, एकनाथ खडसे की पुत्रवधू रक्षा खडसे, गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे, बालासाहेब विखे पाटील के पौत्र और राधाकृष्ण विखे के पुत्र सुजय को टिकट मिला है.