संसद का शीत सत्र इस हफ्ते शुरू होगा। हमारी राजनीति में चुनाव और संसदीय सत्र दो परिघटनाएं राजनीतिक सरगर्मियों से भरी रहती है। दोनों ही गतिविधियाँ देश के जीवन और स्वास्थ्य के साथ गहरा वास्ता रखती हैं। चुनाव और संसदीय कर्म ठीक रहे तो काया पलटते देर नहीं लगेगी। पर दुर्भाग्य से देश की जनता को दोनों मामलों में शिकायत रही है। चुनाव के दौरान सामाजिक अंतर्विरोध और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप चरम सीमा पर होते हैं और संसदीय सत्र के दौरान स्वस्थ बहस पर शोर-शराबा हावी रहता है।
पिछले मॉनसून सत्र में व्यापम घोटाला और ललित मोदी प्रसंग छाया रहा। इस वजह से अनेक सरकारी विधेयक पास नहीं हो पाए। दोनों प्रसंग महत्वपूर्ण थे, पर दोनों मसलों पर बहस नहीं हो पाई। उल्टे पूरे सत्र में संसद का काम ठप रहा। यह पहला मौका नहीं था, जब राजनीति के कारण संसदीय कर्म प्रभावित हुआ हो। अलबत्ता राजनीतिक दलों से उम्मीद की जानी चाहिए कि उन्हें अपनी राजनीति के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों का अंदाज भी होता होगा। इस हफ्ते शीत सत्र शुरू होने के पहले सर्वदलीय बैठक होगी। बेहतर हो कि सभी पार्टियाँ कुछ बुनियादी बातों पर एक राय कायम करें। कांग्रेस के नेता आनन्द शर्मा ने कहा है, ‘विधेयक हमारी प्राथमिकता नहीं है। देश में जो हो रहा है उसे देखना हमारी प्राथमिकता है। संसदीय लोकतंत्र केवल एक या दो विधेयकों तक सीमित नहीं हो सकता।’
पिछले मॉनसून सत्र में व्यापम घोटाला और ललित मोदी प्रसंग छाया रहा। इस वजह से अनेक सरकारी विधेयक पास नहीं हो पाए। दोनों प्रसंग महत्वपूर्ण थे, पर दोनों मसलों पर बहस नहीं हो पाई। उल्टे पूरे सत्र में संसद का काम ठप रहा। यह पहला मौका नहीं था, जब राजनीति के कारण संसदीय कर्म प्रभावित हुआ हो। अलबत्ता राजनीतिक दलों से उम्मीद की जानी चाहिए कि उन्हें अपनी राजनीति के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों का अंदाज भी होता होगा। इस हफ्ते शीत सत्र शुरू होने के पहले सर्वदलीय बैठक होगी। बेहतर हो कि सभी पार्टियाँ कुछ बुनियादी बातों पर एक राय कायम करें। कांग्रेस के नेता आनन्द शर्मा ने कहा है, ‘विधेयक हमारी प्राथमिकता नहीं है। देश में जो हो रहा है उसे देखना हमारी प्राथमिकता है। संसदीय लोकतंत्र केवल एक या दो विधेयकों तक सीमित नहीं हो सकता।’