कई सवाल एक साथ हैं? अमेरिकी सेना अगले साल अफगानिस्तान से
हटने जा रही है, पर उससे पहले ही सीरिया में अपने पैर फँसाकर क्या वह हाराकीरी करेगी? या वह शिया और सुन्नियों के बीच झगड़ा
बढ़ाकर अपनी रोटी सेकना चाहता है? क्या उसने ईरान पर दबाव बनाने
के लिए सलाफी इस्लाम के समर्थकों से हाथ मिला लिया है, जिनका गढ़ पाकिस्तान है और जिसे
सऊदी अरब से पैसा मिलता है? उधर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सऊदी अरब
को धमकी दी है कि सीरिया पर हमला हुआ तो हम सऊदी अरब पर हमला बोल देंगे? यह धमकी सऊदी शाहजादे बंदर बिन सुल्तान अल-सऊद की
इस बात से नाराज होकर दी है कि रूस यदि सीरिया की पराजय को स्वीकार नहीं करेगा तो अगले
साल फरवरी में होने वाले विंटर ओलिम्पिक्स के दौरान चेचेन चरमपंथियों खूनी खेल खेलने
से रोक नहीं पाएगा। पुतिन की सऊदी शाहजादे से इसी महीने मुलाकात हुई है। पर इसका मतलब
क्या है? यह अमेरिका की लड़ाई है या सऊदी अरब की? अमेरिका इस इलाके में लोकतंत्र का संदेश लेकर आया
है तो वह सऊदी अरब के साथ मिलकर क्या कर रहा है?
Saturday, August 31, 2013
Thursday, August 29, 2013
यूपीए का आर्थिक राजनीति शास्त्र
देश का राजनीतिक अर्थशास्त्र या आर्थिक राजनीति शास्त्र एक दिशा में चलता है और व्यावहारिक अर्थ व्यवस्था दूसरी दिशा में जाती है। सन 1991 में हमने जो आर्थिक दिशा पकड़ी थी वह कम से कम कांग्रेस की विचारधारात्मक देन नहीं थी। मनमोहन सिंह ने विश्व बैंक के 'वॉशिंगटन कंसेंसस' के अनुरूप ही अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया। वह दौर वैश्वीकरण का शुरूआती दौर था। ऐसा कहा जा रहा था कि भारत इस दौड़ में चीन से तकरीबन डेढ़ दशक पीछे है, जापान और कोऱिया से और भी ज्यादा पिछड़ गया है। बहरहाल तमाम आलोचनाओं के उदारीकरण की गाड़ी चलती रही। एनडीए सरकार भी इसी रास्ते पर चली। सन 2004 में यूपीए सरकार ने दो रास्ते पकड़े। एक था सामाजिक कल्याण पर खर्च बढ़ाने की राह और दूसरी उदारीकरण की गाड़ी को आगे बढ़ाने की राह। 2009 के बाद यूपीए का यह अंतर्विरोध और बढ़ा। आज जिस पॉलिसी पैरेलिसिस का आरोप मनमोहन सिंह पर लग रहा है वह वस्तुतः सोनिया गांधी के नेतृत्व के कारण है। यदि वे मानती हैं कि उदारीकरण गलत है तो प्रधानमंत्री बदलतीं। आज का आर्थिक संकट यूपीए के असमंजस का संकट भी है। यह असमंजस एनडीए की सरकार में भी रहेगा। भारत की राजनीति और राजनेताओं के पास या तो आर्थिक दृष्टि नहीं है या साफ कहने में वे डरते हैं।
जिस विधेयक को लेकर राजनीति में ज्वालामुखी फूट रहे थे वह खुशबू
के झोंके सा निकल गया. लेफ्ट से राइट तक पक्षियों और विपक्षियों में उसे गले लगाने
की ऐसी होड़ लगी जैसे अपना बच्चा हो. उसकी आलोचना भी की तो जुबान दबाकर. ईर्ष्या भाव
से कि जैसे दुश्मन ले गया जलेबी का थाल. यों भी उसे पास होना था, पर जिस अंदाज में
हुआ उससे कांग्रेस का दिल खुश हुआ होगा. जब संसद के मॉनसून सत्र के पहले सरकार अध्यादेश
लाई तो वृन्दा करात ने कहा था, हम उसके समर्थक हैं पर हमारी आपत्तियाँ हैं. हम चाहते
हैं कि इस पर संसद में बहस हो. खाद्य सुरक्षा सार्वभौमिक होनी चाहिए. सबके लिए समान.
मुलायम सिंह ने कहा, यह किसान विरोधी है. नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी
लिखी कि मुख्यमंत्रियों से बात कीजिए. पर लगता है उन्होंने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ
नेताओं से बात नहीं की. भाजपा के नेता इन दिनों अलग-अलग सुर में हैं. दिल्ली में विधान
सभा चुनाव होने हैं और पार्टी संग्राम के मोड में है. बिल पर संसद में जो बहस हुई,
उसमें तकरीबन हरेक दल ने इसे ‘चुनाव सुरक्षा
विधेयक’ मानकर ही अपने विचार व्यक्त किए. सोमवार की रात कांग्रेसी
सांसद विपक्ष के संशोधनों को धड़ाधड़ रद्द करने के चक्कर में सरकारी संशोधन को भी खारिज
कर गए. इस ‘गेम चेंजर’ का खौफ विपक्ष पर
इस कदर हावी था कि सुषमा स्वराज को कहना पड़ा कि हम इस आधे-अधूरे और कमजोर विधेयक का
भी समर्थन करते हैं. जब हम सत्ता में आएंगे तो इसे सुधार लेंगे.
Tuesday, August 27, 2013
लोक और तंत्र के बीच यह कौन बैठा है?
पिछले साल दिसम्बर में दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद अचानक
लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। वे समझ नहीं पा रहे थे कि किसके खिलाफ इस गुस्से का इजहार
करें? और किससे करें? देश भयावह
संदेहों का शिकार है। एक तरफ आर्थिक संवृद्धि, विकास और समृद्धि के कंगूरे हैं तो दूसरी
ओर भ्रष्टाचार और बेईमानी की कीचड़भरी राह है। समझ में नहीं आता हम कहाँ जा रहे हैं? आजादी के 66 साल पूरे हो चुके हैं और लगता है कि हम चार कदम आगे आए हैं तो
छह कदम पीछे चले गए हैं। दो साल पहले इन्हीं दिनों अन्ना हजारे का आंदोलन जब शुरू हुआ
था तब उसके साथ करोड़ों आँखों की उम्मीदें जुड़ गई थीं। पर वह आंदोलन तार्किक परिणति
तक नहीं पहुँचा। और अन्ना आज अपनी जनतांत्रिक यात्राओं के साथ देश के कोने-कोने में
जा रहे हैं। पर संशय कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं। संसद से सड़क तक देश सत्याग्रह की
ओर बढ़ रहा है। सत्याग्रह यानी आंदोलन। कैसा आंदोलन और किसके खिलाफ आंदोलन? गांधी का सत्याग्रह सुराज की खोज थी। कहाँ गया सुराज का सपना?
Monday, August 26, 2013
डिफेंस मॉनिटर का नया अंक
रक्षा आयात से भी चाहिए आजादी
डिफेंस मॉनिटर का छठा अंक बाजार में आ गया है। यह अंक रक्षा सामग्री के स्वदेशीकरण पर केन्द्रित है। इसके मुख्य लेख इस प्रकार हैं :-
डिफेंस मॉनिटर का छठा अंक बाजार में आ गया है। यह अंक रक्षा सामग्री के स्वदेशीकरण पर केन्द्रित है। इसके मुख्य लेख इस प्रकार हैं :-
कहानी पर्वत और तूफान की :
रक्षा सामग्री के स्वदेशीकरण की दिशा में फाइटर प्लेन एचएफ-24 मारुत और युद्धपोत
नीलगिरि के निर्माण की कहानियाँ दो अलग किस्म के अनुभवों को बताती है। रियर एडमिरल
विजय एस चौधरी (सेनि) का विशेष लेख
एम्फीबियस एयरक्राफ्ट से और बढ़ेगी नौसेना
की ताकत : एम्फीबियस
विमान सागर की सतह पर भी उतर सकते हैं। जापानी विमान शिनमेवा यूएस-2 दुनिया का
सर्वश्रेष्ठ एम्फीबियस विमान है, जिन्हें भारत खरीदने का विचार कर रहा है।
हाइड्रोग्राफी :
सागर की गहराइयों की राजदार : कैप्टेन
जीएस इंदा
तलवार की धार पर अफगानिस्तान : गुरमीत कँवल
कैसा हो आदर्श रक्षा उत्पादन : मृणाल पाण्डे
जीतेगा वही जो सोचेगा, हम पीछे क्यों रहें :
प्रमोद जोशी
‘इंपोर्टेड माल’ की पुरानी लत है सेनाओं को : सुशील
शर्मा
हिमालय सा हौसला लिए जुटी रही आईटीबीपी :
श्याम प्रधान
इसके अलावा वर्दी वाले देवदूत, मिग-21 विमान
: 50 साल का गबरू, उत्तराखंड में राहत की एक्सक्लूसिव तस्वीरें और रक्षा
शब्दावली।
Sunday, August 25, 2013
रुपए की नहीं गवर्नेंस की फिक्र कीजिए
डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरने का मतलब कितने लोग जानते
हैं? कितने लोग यह जानते हैं कि यह कीमत तय कैसे
होती है? और कितने लोग जानते हैं कि इसका हमारी जिन्दगी से वास्ता
क्या है? हम महंगाई को जानते हैं बाजार में चीजों की उपलब्धता
को पहचानते हैं और अपनी आय को कम या ज्यादा होने की प्रक्रिया को भी समझते हैं। विश्व
की मुद्राओं की खरीद-फरोख्त का बाजार है विदेशी मुद्रा बाजार। दूसरे वित्तीय बाजारों
के मुकाबले यह काफी नया है और सत्तर के दशक में शुरू हुआ है। फिर भी कारोबार के लिहाज
से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग चार हजार अरब अमेरिकी
डालर के बराबर कामकाज होता है। दूसरे बाजारों के मुकाबले यह सबसे ज्यादा स्थायित्व
वाला बाजार है। फिर भी इसमें इन दिनों हो रहे बदलाव से हम परेशान हैं। यह बदलाव लम्बा
नहीं चलेगा। एक जगह पर जाकर स्थिरता आएगी। वह बिन्दु कौन सा है यह अगले कुछ दिनों में
साफ हो जाएगा।
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