भारत की सुदूर-पूर्व विदेश-नीति के मद्देनज़र दो घटनाओं ने हाल में खासतौर से ध्यान खींचा है. दोनों चीन और उत्तरी कोरिया से जुड़ी हैं. ये दोनों प्रसंग ध्रुवीकरण से जुड़ी वैश्विक-राजनीति के दौर में भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति की ओर भी इशारा कर रहे हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गत 18 दिसंबर को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. इस बैठक के परिणामों से लगता है कि दोनों देश भारत पिछले चार साल से चले आ रहे गतिरोध को दूर करके सहयोग के नए रास्ते तलाश करने पर राजी हो गए हैं.
चीन-भारत सीमा प्रश्न के लिए विशेष प्रतिनिधियों की यह 23वीं बैठक थी. संवाद की इस प्रक्रिया की शुरुआत 2003 में दशकों से चले आ रहे भारत-चीन सीमा विवाद का संतोषजनक समाधान खोजने के लिए की गई थी.
अभी कहना मुश्किल है कि इस रास्ते पर सफलता कितनी मिलेगी, पर इतना स्पष्ट है कि स्थितियों में बुनियादी बदलाव दिखाई पड़ रहा है. इस समझौते से सीमा-विवाद सुलझ नहीं जाएँगे, पर रास्ता खुल सकता है, बशर्ते सब ठीक रहे. पाँच साल बाद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच यह पहली औपचारिक बैठक द्विपक्षीय संबंधों में बर्फ पिघलने जैसी है.