अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा रद्द
होने के बाद देश के गणतंत्र-दिवस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों
के आगमन की घोषणा के भी राजनयिक-निहितार्थ हैं. वहाँ की आंतरिक-राजनीति में भारत
के प्रति नकारात्मक भावनाएं वैसी नहीं हैं, जैसी अमेरिका में हैं.
बाइडेन का कार्यक्रम रद्द होने में जहाँ अमेरिका
के राजनीतिक-अंतर्विरोधों की भूमिका है, वहीं मैक्रों के दौरे का मतलब है
भारत-फ्रांस रिश्तों का एक और पायदान पर पहुँचना. मैक्रों के दौरे की इस त्वरित-स्वीकृति
से भारत के डिप्लोमैटिक कौशल की पुष्टि भी
हुई है.
त्वरित-स्वीकृति
फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने जिस
तेजी से समय के रुख को पहचानते हुए मैक्रों के दौरे की पुष्टि कराने में सफलता
प्राप्त की है, वह उल्लेखनीय है. मैक्रों की इस यात्रा से नरेंद्र मोदी को
बास्तील-दिवस परेड की प्रतिध्वनि आ रही है.
राष्ट्रपति मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में
शामिल होने वाले छठे फ्रांसीसी नेता होंगे. फ्रांस एकमात्र देश है, जिसके नेताओं
को इतनी बार गणतंत्र दिवस परेड का मुख्य अतिथि बनाया गया है.
गणतंत्र दिवस की आगामी परेड इसलिए विशेष है,
क्योंकि उसमें केवल महिलाएं शामिल होंगी. भारत सरकार ने इस अवसर पर अमेरिका के
राष्ट्रपति जो बाइडेन को आमंत्रित किया था, लेकिन
उन्होंने असमर्थता जताई. संभवतः बाइडेन अगले साल के ‘स्टेट ऑफ द यूनियन' संबोधन में हमस-इजराइल संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.
रिश्तों की गहराई
फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दौरे से यह बात स्पष्ट
होगी कि भारत और फ्रांस के रिश्तों की गहराई क्रमशः बढ़ती जा रही है और यूरोप में
वह हमारा सबसे बड़ा मित्र देश है. यह दूसरा मौका होगा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति का
दौरा रद्द होने पर उनका स्थान फ्रांस के नेता लेंगे.
1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण अमेरिकी
राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने अपनी भारत यात्रा स्थगित कर दी थी. पश्चिम में भारत
के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद जनवरी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री याक
शिराक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर आए.
शिराक के बाद निकोलस सरकोज़ी, फ्रांस्वा होलां
से लेकर इमैनुएल मैक्रों तक सभी राष्ट्रनेताओं ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे
है. भारत के गणतंत्र समारोह में फ्रांस के छह राष्ट्रनेता भाग ले चुके हैं. किसी
भी देश के राष्ट्राध्यक्षों की यह सबसे बड़ी संख्या है.