Friday, January 5, 2024

डिप्लोमेसी से ही होगा क़तर के मसले का समाधान


क़तर की जेल में क़ैद भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों की सज़ा-ए-मौत को क़तर की अदालत ने कम कर दिया है. इस खबर से देश ने फिलहाल राहत की साँस ली है. इन आठ भारतीयों के सिर पर मँडरा रहा मौत का साया तो हट गया है, पर यह मामूली राहत है.

प्रारंभिक खबरों के अनुसार इन लोगों की सजाएं कम करके तीन से 25 साल की कैद तक में तब्दील कर दी गई हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गत 4 जनवरी को बताया कि अदालत ने ऊँची अदालत में अपील करने के लिए 60 दिन का समय भी दिया है. सरकार को अदालत के फैसले की प्रति मिल गई है, पर वह गोपनीय है.

इतना स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वह भारत की डिप्लोमेसी के प्रयास से हो पाया है. पीड़ित-परिवार सजा के कम होने को सफलता नहीं मान रहे हैं और वे क़तर की सर्वोच्च अदालत में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. वहाँ सुनवाई और फैसला होने में भी तीन महीने या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है.

Tuesday, January 2, 2024

जोशो-जुनून और उम्मीदें लेकर आया 2024


2024 का साल देश के राजनीतिक, राजनयिक, सामाजिक-सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और खेल के मैदान से कुछ बड़ी खबरों या दूसरे शब्दों में सफलताओं की उम्मीदें लेकर आ रहा है. साल की शुरुआत जिस माहौल में हो रही है, उससे लगता है कि यह साल जोशो-जुनून से भरा होगा.  

राजनीतिक दृष्टि से बहुत सी बातें इस बात पर निर्भर करेंगी कि इस साल होने वाले चुनाव में किसकी सरकार जीतकर आती है. अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के साथ भारतीय जनता पार्टी अपने विजय-रथ को तार्किक परिणति पर पहुँचाना चाहती है.

नरेंद्र मोदी लगातार तीसरा चुनाव जीतकर जवाहर लाल नेहरू के कीर्तिमान की बराबरी की ओर बढ़ रहे हैं. आर्थिक मोर्चे पर समय उनका साथ दे रहा है. देखना होगा कि चुनाव में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन कैसा रहता है.

Sunday, December 31, 2023

विधानसभा चुनाव और 2024 के संकेत

तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के बाद बीजेपी ने बड़ी तेजी से लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया है। तीन राज्यों के नए मुख्यमंत्रियों के चयन से यह बात साफ हो गई है कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव ही नहीं, उसके बाद की राजनीति पर भी विचार शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों के कयासों को ग़लत साबित करते हुए बीजेपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि नए मुख्यमंत्रियों के रूप में तीन नए चेहरों को आगे बढ़ाकर चौंकाया है। संभवतः पार्टी का आशय है कि हमारे यहाँ व्यक्ति से ज्यादा संगठन का महत्व है। हम नेता बना सकते हैं।

तीनों राज्यों में बीजेपी की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं। मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह। इनमें शुक्रिया मोदीजी को भी जोड़ लीजिए। यानी मुसलमान वोटरों को खींचने के प्रयासों में भी उसे आंशिक सफलता मिलती नज़र आ रही है।  

राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा, मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के नामों की दूर तक चर्चा नहीं थी। इनका नाम नहीं था, पर पार्टी अब इनके सहारे नएपन का आभास देगी। उसे कितनी सफलता मिलेगी, यह तो मई 2024 में ही पता लगेगा, पर इतना साफ है कि पार्टी पुरानेपन को भुलाना और नएपन को अपनाना चाहती है। पुराने नेताओं का कोई हैंगओवर अब नहीं है। दूसरी तरफ पार्टी को इस बात का भरोसा भी है कि वह लोकसभा चुनाव आसानी से जीत जाएगी। उसने इंड गठबंधन या इंडिया को चुनौती के रूप में लिया ही नहीं।

Thursday, December 28, 2023

कमोबेश बेहतर गुजरा 2023 का साल


गुजरते साल के आखिरी हफ्ते में हम पीछे मुड़कर देखना चाहें, तो पाएंगे कि पिछले तीन वर्षों की तुलना में यह साल अपेक्षाकृत सकारात्मक उपलब्धियों का  रहा है। पिछले साल का समापन कोविड-19 के नए अंदेशों के साथ हुआ था, पर उनपर विजय पा ली गई। हालांकि देश के कुछ इलाकों से बीमारी की खबरें फिर से आ रही हैं, पर खतरा ज्यादा बड़ा नहीं है। ज्यादातर बड़ी खबरें आर्थिक पुनर्निर्माण और राजनीतिक उठा-पटक से जुड़ी हैं। साल के अंत में हुए विधानसभा चुनावों, नए संसद भवन और संसदीय-राजनीति, सुप्रीम कोर्ट के कुछ बड़े फैसलों, चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों के महत्व को रेखांकित किया जाना चाहिए। इस साल हमारे पास निराशा से ज्यादा आशा भरी खबरें हैं।

चलते-चलाते साल के अंत में आर्थिक मोर्चे से अच्छी खबरें मिली हैं, जो बता रही हैं कि भारतीय जीडीपी अब 7 से 7.5 प्रतिशत सालाना की दर से संवृद्धि की दिशा में बढ़ रही है। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश की बाढ़, सिल्यारा सुरंग, बालेश्वर (बालासोर) ट्रेन-दुर्घटना, मणिपुर की हिंसा और उसके दौरान वायरल हुए शर्मनाक वीडियो से जुड़ी निराशाओं को भी भुलाना नहीं चाहिए। गत 13 दिसंबर को संसद भवन हमले के सालगिरह पर एक और बड़ी घटना को अंजाम दिया गया। लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान कुछ लोग अंदर कूद गए और उन्होंने एक कैन से पीले रंग का धुआँ छोड़ा।

हमलावरों पर काबू पा लिया गया, पर इसके बाद सत्तापक्ष और इंडिया गठबंधन से जुड़े विरोधी दलों के बीच टकराव शुरू हो गया, जिसकी परिणति 146 सांसदों के निलंबन के रूप में हुई है। यह परिघटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि खतरनाक भी। इसे ऐसे दिन अंजाम दिया गया, जो 2001 के संसद पर हुए हमले की तारीख है। इस दृष्टि से यह देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था के आँगन सुरक्षा में हुई चूक से ज्यादा राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा का प्रश्न है। इसका सांकेतिक महत्व है। लगता है कि यह गतिरोध नए साल में बजट सत्र में भी चलेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी, जिसे हटाए जाने का फैसला पूरी तरह संवैधानिक है। इस निर्णय ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के 5 अगस्त, 2019 के फैसले पर कानूनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्द दिया जाना चाहिए और अगले साल सितंबर के महीने तक राज्य में चुनाव कराए जाने चाहिए। अब 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा-चुनाव होने की उम्मीद भी जागी है।

Wednesday, December 27, 2023

बाइडेन-यात्रा जैसा ही महत्वपूर्ण है, मैक्रों का गणतंत्र-सम्मान


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा रद्द होने के बाद देश के गणतंत्र-दिवस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के आगमन की घोषणा के भी राजनयिक-निहितार्थ हैं. वहाँ की आंतरिक-राजनीति में भारत के प्रति नकारात्मक भावनाएं वैसी नहीं हैं, जैसी अमेरिका में हैं.

बाइडेन का कार्यक्रम रद्द होने में जहाँ अमेरिका के राजनीतिक-अंतर्विरोधों की भूमिका है, वहीं मैक्रों के दौरे का मतलब है भारत-फ्रांस रिश्तों का एक और पायदान पर पहुँचना. मैक्रों के दौरे की इस त्वरित-स्वीकृति से भारत के डिप्लोमैटिक  कौशल की पुष्टि भी हुई है.

त्वरित-स्वीकृति

फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने जिस तेजी से समय के रुख को पहचानते हुए मैक्रों के दौरे की पुष्टि कराने में सफलता प्राप्त की है, वह उल्लेखनीय है. मैक्रों की इस यात्रा से नरेंद्र मोदी को बास्तील-दिवस परेड की प्रतिध्वनि आ रही है.

राष्ट्रपति मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले छठे फ्रांसीसी नेता होंगे. फ्रांस एकमात्र देश है, जिसके नेताओं को इतनी बार गणतंत्र दिवस परेड का मुख्‍य अतिथि बनाया गया है.

गणतंत्र दिवस की आगामी परेड इसलिए विशेष है, क्योंकि उसमें केवल महिलाएं शामिल होंगी. भारत सरकार ने इस अवसर पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने असमर्थता जताई. संभवतः बाइडेन अगले साल के ‘स्टेट ऑफ द यूनियन' संबोधन में हमस-इजराइल संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.

रिश्तों की गहराई

फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दौरे से यह बात स्पष्ट होगी कि भारत और फ्रांस के रिश्तों की गहराई क्रमशः बढ़ती जा रही है और यूरोप में वह हमारा सबसे बड़ा मित्र देश है. यह दूसरा मौका होगा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा रद्द होने पर उनका स्थान फ्रांस के नेता लेंगे.

1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने अपनी भारत यात्रा स्थगित कर दी थी. पश्चिम में भारत के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद जनवरी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री याक शिराक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर आए.

शिराक के बाद निकोलस सरकोज़ी, फ्रांस्वा होलां से लेकर इमैनुएल मैक्रों तक सभी राष्ट्रनेताओं ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे है. भारत के गणतंत्र समारोह में फ्रांस के छह राष्ट्रनेता भाग ले चुके हैं. किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्षों की यह सबसे बड़ी संख्या है.