Saturday, August 26, 2023

घातक है संसदीय-विमर्श की गुणवत्ता का ह्रास

संसद के मॉनसून-सत्र के समापन के आखिरी दिन गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023 पेश करके देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में बुनियादी बदलाव लाने का दावा किया है। गृहमंत्री ने इस सिलसिले में तीन बिल पेश किए, जिनसे भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में बड़े बदलाव होंगे। इन कानूनों का श्रेय अंग्रेजी राज को, खासतौर से टॉमस बैबिंगटन मैकॉले को दिया जाता है। मामूली हेरफेर के साथ ये कानून आजतक चले आ रहे हैं। सरकार का दावा है कि ये विधेयक औपनिवेशिक कानूनों की जगह पर राष्ट्रीय-दृष्टिकोण की स्थापना करेंगे। हालांकि इन्हें तैयार करने के पहले विमर्श की लंबी प्रक्रिया चली है, फिर भी इनके न्यायिक, सामाजिक और सामाजिक प्रभावों पर व्यापक विचार-विमर्श की ज़रूरत होगी। इन्हें पेश करने के बाद संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। संसदीय समिति में इसके विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से विचार होगा। उसके बाद इन्हें विधि आयोग के पास विचारार्थ भी भेजा जाएगा।

यह विमर्श घूम-फिरकर संसद में आएगा, इसलिए राजनीतिक दलों के बीच सबसे पहले इस विषय पर ईमानदार चर्चा की ज़रूरत है। पंचायत राज, सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, खाद्यान्न सुरक्षा से जुड़े कानूनों पर इस तरह की बहस हुई भी थी। ऐसी बहसों को यथासंभव राजनीति से बचाने की ज़रूरत होती है। किसी खास सामुदायिक वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करते समय उसकी ज़रूरत भी होगी। सरकार को भी आलोचना से भागने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कानूनों में रह गई छोटी सी त्रुटि को दूर करने के लिए फिर से एक लंबी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। पर सवाल दूसरे हैं। इन कानूनों पर विचार कब और कैसे होगा?

Wednesday, August 23, 2023

पाकिस्तान में राजनीतिक-संशय और बढ़ता कट्टरपंथ


पाकिस्तानी राजनीति चुनाव की ओर बढ़ चली है. चुनाव-संचालन के लिए नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति हो गई है और तैयारियाँ चल रही हैं. अब सवाल है कि क्या वहाँ स्थिर असैनिक-सरकार और लोकतंत्र सफलता के साथ चलेगा?  कार्यवाहक सरकार बनते ही जो सबसे पहली घटना हुई है, उससे अंदेशा कम होने के बजाय बढ़ा है.

गत 9 अगस्त को भंग होने के पहले संसद ने कई कानूनों, उनमें संशोधनों और निर्णयों को पास किया था. इनमें आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और आर्मी एक्ट (संशोधन) भी था. ये दोनों कानून लागू हो चुके हैं और अब अचानक राष्ट्रपति डॉ आरिफ़ अल्वी ने कहा है कि मैंने इन दोनों पर दस्तख़त ही नहीं किए हैं.

कानून बने

दूसरी तरफ कार्यवाहक क़ानून मंत्री ने कहा है कि ये दोनों बिल अब क़ानून की शक्ल ले चुके हैं और इनको नोटिफाई भी कर दिया गया है. इतनी बड़ी विसंगति कैसे संभव है?  सोशल मीडिया जारी बयान में आरिफ़ अल्वी ने कहा है, मैं अल्लाह को गवाह मानकर कहता हूं कि मैंने दोनों पर दस्तख़त नहीं किए. मैं इन क़ानूनों से सहमत नहीं था.

हैरत इस बात की है कि देश के राष्ट्रपति को नहीं पता कि इन कानूनों को नोटिफाई कर दिया गया है. और अब वे ट्विटर के माध्यम से बता रहे हैं कि मैंने दस्तखत नहीं किए हैं. ऐसा लगता है कि कोई शक्ति पूरी व्यवस्था को अपारदर्शी बनाकर रखना चाहती है. अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा है कि डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा है कि जब भी हमने राष्ट्रपति कार्यालय से पता करने का प्रयास किया, किसी ने स्पष्ट नहीं किया कि कितने विधेयकों पर दस्तखत कर दिए गए हैं.  

Tuesday, August 22, 2023

आपराधिक-न्याय पर गंभीर विमर्श का मौका

मॉनसून सत्र के आखिरी दिन गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023 पेश करके आपराधिक न्याय प्रणाली में बुनियादी बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने का दावा जरूर किया है, पर इस दावे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। गृहमंत्री ने तीन बिल पेश किए, जिनसे भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में बड़े बदलावों की बात कही गई है। इन कानूनों का श्रेय अंग्रेजी राज को, खासतौर से टॉमस बैबिंगटन मैकॉले को जाता है। उनकी व्यापक और दूरदृष्टि की काफी तारीफ की जाती है।

सरकार का दावा है कि ये विधेयक औपनिवेशिक कानूनों की जगह पर राष्ट्रीय-दृष्टिकोण की स्थापना करेंगे। इसीलिए इनके नाम अंग्रेजी में नहीं, हिंदी में हैं। नए नाम हैं भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023। इस दृष्टि से देखें, तो संकल्प सिद्धांततः अच्छा है, फिर भी इन्हें पास करने में जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए।

Sunday, August 20, 2023

न्याय-प्रणाली पर व्यापक विचार का मौका


मॉनसून सत्र के आखिरी दिन 11 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023 पेश करके देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में बुनियादी बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। एक महत्वपूर्ण और स्मरणीय सुधार माना जा रहा है। गृहमंत्री ने इस सिलसिले में तीन बिल पेश किए, जिनसे भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में बड़े बदलाव होंगे। इन कानूनों का श्रेय अंग्रेजी राज को, खासतौर से टॉमस बैबिंगटन मैकॉले को दिया जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने बहुत दूरदृष्टि के साथ यह काम किया था। सरकार का दावा है कि ये विधेयक औपनिवेशिक कानूनों की जगह पर राष्ट्रीय-दृष्टिकोण की स्थापना करेंगे। इसीलिए इनके नाम अंग्रेजी में नहीं, हिंदी में हैं। नए नाम हैं भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023। 

इस दृष्टि से देखें, तो संकल्प सिद्धांततः अच्छा है, फिर भी इन्हें पास करने में जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए। इनका हमारे जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। हालांकि इन्हें तैयार करने के पहले विमर्श की लंबी प्रक्रिया चली है, फिर भी इनके न्यायिक, सामाजिक और सामाजिक प्रभावों पर व्यापक विचार-विमर्श की ज़रूरत होगी। इन्हें पेश करने के बाद संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। संसदीय समिति में इसके विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से विचार होगा। उसके बाद इन्हें विधि आयोग के पास विचारार्थ भी भेजा जाएगा।

बुनियादी सवाल

यह समझने की जरूरत है कि इन विधेयकों को लाने का उद्देश्य क्या है? क्या कोई अघोषित उद्देश्य भी है? यह व्यवस्था क्या आपराधिक-न्याय प्रणाली के दोषों को दूर करके उसका ओवरहॉल कर सकती है? क्या केवल कानूनी बदलाव से यह ओवरहॉल संभव है? मतलब न्याय-प्रणाली और पुलिस-व्यवस्था में सुधार किए बगैर यह ओवरहॉल हो पाएगा? न्याय-प्रणाली और पुलिस-व्यवस्था में सुधार कौन और कैसे करेगा? अभी तक वह क्यों नहीं हो पाया है? ऐसे तमाम सवाल अब खड़े होंगे। सरसरी निगाह से भी देखें, तो ये तीनों विधेयक वर्तमान व्यवस्था में कुछ बदलावों का सुझाव दे रहे हैं, बुनियादी व्यवस्था-परिवर्तन इनसे भले न हो, फिर भी यह साहसिक-निर्णय है। इन कानूनों को अपनी तार्किक-परिणति तक पहुँचने के लिए देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना से होकर भी गुजरना होगा। विरोधी-राजनीति ने कुछ दूसरे सवाल उठाने के अलावा यह भी कहा है कि इन कानूनों को गुपचुपतरीके से लाया गया है वगैरह। क्या ऐसा है? सबसे पहले इस आरोप की जाँच करें।

तैयारी और पृष्ठभूमि

विधेयक पेश करते समय गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछले चार साल में इस विषय पर काफी विचार-विमर्श किया है। सरकार ने 2019 में राज्यपालों, उप राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के साथ इस विषय पर बातचीत की थी। 2020 में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों, बार कौंसिलों और विधि विश्वविद्यालयों को इस विमर्श में शामिल किया गया। 2021 में सांसदों और आईपीएस अधिकारियों को पत्र भेजे गए। हमें 18 राज्यों, छह केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट और 16 हाईकोर्टों, पाँच ज्यूडीशियल अकादमियों, 142 सांसदों, 270 विधायकों और नागरिकों के सुझाव प्राप्त भी हुए हैं। ब्यूरो ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरडी) को राज्यों तथा केंद्र के सुरक्षा बलों में नियुक्त आईपीएस अधिकारियों के सुझाव मिले हैं। इसके बाद नेशनल लॉ युनिवर्सिटी के कुलपति की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने विचार किया, जिसकी 58 औपचारिक और 100 अनौपचारिक बैठकें इस विषय पर हुईं। इसके पहले भी विधि आयोग देश की आपराधिक न्याय-व्यवस्था में सुधार के बारे में विचार करता रहा और सुझाव देता रहा है। 

इसके अलावा बेज़बरुआ समिति, विश्वनाथन समिति, मलिमथ समिति, माधव मेनन समिति ने भी सुझाव दिए हैं। संसद की स्थायी समिति ने 2005 में अपनी 111वीं, 2006 में 128वीं और 2010 में 146वीं रिपोर्टों में भी इस आशय के सुझाव दिए हैं। मई 2020 में महामारी के दौरान इस विषय पर सुझाव देने के लिए नेशनल लॉ युनिवर्सिटी के कुलपति की अध्यक्षता में बनी विशेषज्ञ समिति ने भी सुझाव दिए। इन सबको शामिल करते हुए भारत दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1898, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को समाप्त करते हुए उनके स्थान पर तीन नए कानूनों का प्रस्ताव किया है।

Thursday, August 17, 2023

चंद्रयान और उसके बहाने कुछ यादें

 


चंद्रयान-3 को लेकर एक पोस्ट मैंने फेसबुक पर बुधवार 16 अगस्त को लगाई तो मेरे मित्र संजय श्रीवास्तव ने लिखा कि चंद्रयान-1 ने चंद्रयान-3 के मुकाबले कम समय लगाया, ऐसा क्यों?  साइंस का मेरा ज्ञान सीमित है, जिज्ञासा ज्यादा है। इधर-उधर से पढ़कर मैं जो जान पाता हूँ, उसे ही शेयर करता हूँ। चंद्रयान पर आने से पहले मैं एक निजी अनुभव से शुरुआत करूँगा।

सत्तर के दशक में जब मैंने सबसे पहले लखनऊ के स्वतंत्र भारत में काम करना शुरू किया, तब पहले दिन ही मुझे चीफ सब एडिटर वीरेंद्र सिंह के साथ लगा दिया गया। मेरी राय में वीरेंद्र सिंह निश्चित रूप से अपने दौर के सबसे काबिल पत्रकारों में से एक थे। कई कारणों से उनकी प्रतिभा को सामने आने का मौका मिला नहीं। अलबत्ता जो लोग पुराने जमाने की नवनीत में पुस्तक सार पढ़ते रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि बड़ी संख्या में पुस्तक सार वीरेंद्र सिंह ने लिखे थे।

मुझे सबसे पहले मिड शिफ्ट में काम करने का मौका मिला, जिसमें तीन से रात के नौ बजे तक काम होता था। वीरेंद्र सिंह ने मुझे स्पेस से जुड़ी पीटीआई की एक खबर पकड़ा दी। खबर काफी लंबी थी और मैंने पूरी खबर बना दी। वह खबर अखबार के आखिरी पेज पर टॉप बॉक्स के रूप में छपी। अपने लिखे अक्षर पहली बार खबर के रूप में देखकर जो खुशी मिलती है, वह खासतौर से पत्रकार दोस्तों को बताने की जरूरत नहीं।

बहरहाल अंतरिक्ष से मेरी दोस्ती की वह शुरुआत थी। मुझे पहली बार यह भी समझ में आया कि हिंदी की पत्रकारिता, मुकाबले अंग्रेजी की पत्रकारिता के, ज्यादा चुनौती भरी क्यों है। नीचे इस आलेख में आप एपोजी और पेरिजी कक्षाओं का जिक्र पढ़ेंगे। मैं अंग्रेजी का पत्रकार होता, तो कॉपी को अपर लोअर (अंग्रेजी के पत्रकार जानते हैं कि यह क्या है) करके छुट्टी कर लेता, पर मुझे एपोजी और पेरिजी को समझना पड़ा। और वह इंटरनेट का ज़माना नहीं था। बहरहाल।

हल्का और भारी पेलोड

संजय के सवाल के सिलसिले में जो जानकारी मैं हासिल कर पाया हूँ, उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि ऐसा कई कारणों से हो सकता है। चंद्रयान-1 का पेलोड बहुत हल्का था। वह इंपैक्टर था। उसे तो चंद्रमा से टकराना भर था। चंद्रयान-2 उसकी तुलना में काफी भारी थी और चंद्रयान-3 और ज्यादा भारी है। ऐसे में पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा में दायरा बढ़ाने और घटाने की प्रक्रिया चलती है, जिसमें काफी सावधानी बरतनी होती है। चंद्रयान-1 को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद दायरा छोटा करने में समय लगा। चंद्रयान-2 अंतिम कुछ सेकंडों में अपनी स्पीड को काबू में नहीं रख पाया।