इसबार का सालाना बजट बड़े निर्णायक दौर का बजट होगा। हर साल बजट से पहले कई तरह की उम्मीदें लगाई जाती हैं। ये उम्मीदें, उद्योगपतियों, कारोबारियों, किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, गृहणियों, उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, निम्न वर्ग यानी कि भिखारियों को छोड़ हरेक वर्ग की होती हैं। सरकार के सामने कीवर्ड है संवृद्धि। उसके लिए जरूरी है आर्थिक सुधार। मुद्रास्फीति और बाजार के मौजूदा हालात को देखते हुए बजट में बड़े लोकलुभावन घोषणाओं उम्मीद नहीं है, अलबत्ता एक वर्ग कुछ बड़े सुधारों की उम्मीद कर रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने हाल में एक रिपोर्ट कहा है कि अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में बजट में सरकार पूंजीगत व्यय 8.5 से नौ लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा सकती है जो मौजूदा वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये है। खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कमी के जरिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रख सकती है। रेलवे के बजट में काफी इजाफा होगा। 500 वंदे भारत और 35 हाइड्रोजन ट्रेनों की घोषणा हो सकती है। इनके अलावा 5000 एलएचबी कोच और 58000 वैगन हासिल करने की घोषणा भी की जा सकती है। रेल योजना-2030 का विस्तार भी इस बजट में हो सकता है। 7,000 किलो मीटर ब्रॉड गेज लाइन के विद्युतीकरण की भी घोषणा हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को छूट की घोषणा भी हो सकती है।
मध्यवर्ग की मनोकामना
मध्यवर्ग की दिलचस्पी जीवन निर्वाह, आवास और
आयकर से जुड़ी होती है। सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक
नहीं की है, जो 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली
ने उस सरकार के पहले बजट में तय की थी। 2019 से मानक कटौती 50,000 रुपये बनी हुई
है। वेतनभोगी मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर छूट सीमा और मानक कटौती बढ़ाने
की जरूरत है। बजट पूर्व मंत्रणा बैठकों में टैक्स स्लैब में बदलाव और करों में छूट
का दायरा बढ़ाने की सरकार से अपील की गई है। इन बैठकों में पीपीएफ के दायरे को
डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख करने की माँग की गई। 80सी के तहत मिलने वाली छूट के
दायरे को बढ़ाया जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान पर भी विचार
किया जा रहा है। वित्तमंत्री के हाल के एक बयान ने मध्यम वर्ग में उम्मीद बढ़ा दी है
कि आगामी बजट में उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। वित्त मंत्री ने कहा था, ”मैं भी मध्यम वर्ग से हूं इसलिए मैं इस वर्ग पर दबाव को समझती हूं।”
राजकोषीय घाटा
महामारी के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज और दूसरे कई तरीके से मदद पहुँचाने की कोशिश की। अब उसका हिसाब देना है। सब्सिडी में कमी और बजट का आकार बढ़ाने की जरूरत होगी। राजकोषीय घाटे को कम करने की भी। पिछले साल के बजट में सब्सिडी करीब 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी। लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक इसे 4.5 फीसदी तक होना चाहिए। 2015 से 2018 के बीच अंतरराष्ट्रीय खनिज तेल की कीमतों में गिरावट आने से राजस्व घाटा 2013-14 के स्तर 4.5 प्रतिशत से नीचे आ गया था। 2016-17 में यह 3.5 प्रतिशत हो गया। इसके बाद सरकार ने इसे 3 पर लाने का लक्ष्य रखा। महामारी ने राजस्व घाटे के सारे गणित को बिगाड़ कर रख दिया है। मार्च 2014 में केंद्र सरकार पर सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 52.2 प्रतिशत था, जो मार्च 2019 में 48.7 प्रतिशत पर आ गया था। पर महामारी के दो वर्षों ने इसे चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसे 59 प्रतिशत पर पहुँचा दिया है। केंद्र और राज्य सरकारों का सकल कर्ज 84 फीसदी है। बढ़ते ब्याज बिल (जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक) को देखते हुए, मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती न केवल व्यापक स्तर की स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि इसके बिना निजी निवेश में सुधार भी संभव नहीं है जो अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि की कुंजी है। कर्ज का मतलब है, ज्यादा ब्याज। जो धनराशि विकास और सामाजिक कल्याण पर लगनी चाहिए, वह ब्याज में चली जाती है। सरकार के पास संसाधन बढ़ाने का एक रास्ता विनिवेश का है, जिसका लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता।