देस-परदेस
नेहरू, माउंटबेटन के चीफ ऑफ स्टाफ हेस्टिंग इज़्मे, माउंटबेटन और जिन्ना
कश्मीर की पहेली-2
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कैसे और कब होगी पाकिस्तानी कब्जे से
ज़मीन की वापसी?
अविभाजित भारत में 562 देशी रजवाड़े थे. कश्मीर
भी अंग्रेजी राज के अधीन था, पर उसकी स्थिति एक प्रत्यक्ष उपनिवेश
जैसी थी और 15 अगस्त 1947 को वह भी स्वतंत्र हो गया. देशी रजवाड़ों के सामने
विकल्प था कि वे भारत को चुनें या पाकिस्तान को.
देश को जिस भारत अधिनियम के तहत स्वतंत्रता
मिली थी, उसकी मंशा थी कि कोई भी रियासत स्वतंत्र देश के
रूप में न रहे. पर कश्मीर राज के मन में असमंजस था. इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947
के तहत 15 अगस्त 1947 को जम्मू कश्मीर पर भी अंग्रेज सरकार का आधिपत्य (सुज़रेंटी)
समाप्त हो गया.
पाकिस्तान ने कश्मीर के महाराजा को कई तरह से
मनाने का प्रयास किया कि वे पकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लें. स्वतंत्रता के
ठीक पहले जुलाई 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने महाराजा को पत्र लिखकर कहा कि
उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाएगी.
स्टैंडस्टिल समझौता
महाराजा ने भारत और पाकिस्तान के साथ
‘स्टैंडस्टिल समझौते’ की पेशकश की. यानी यथास्थिति बनी रहे. भारत ने इस पेशकश पर
कोई फैसला नहीं किया, पर पाकिस्तान ने महाराजा की सरकार के
साथ ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ कर लिया. इसके बावजूद उसने समझौते का अनुपालन किया नहीं,
बल्कि आगे जाकर कश्मीर की नाकेबंदी कर दी और वहाँ पाकिस्तान की ओर से
जाने वाली रसद की आपूर्ति रुक गई.
अक्तूबर 1947 में पाकिस्तान सेना की छत्रछाया
में कबायली हमलों के बाद 26 अक्तूबर को महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर दस्तखत
कर दिए. एक दिन बाद दिन भारत के गवर्नर जनरल ने उसे मंजूर भी कर लिया. भारतीय सेना
कश्मीर भेजी गई और करीब एक साल तक कश्मीर की लड़ाई चली. भारतीय सेना के हस्तक्षेप
के बाद नवम्बर में पाकिस्तानी सेना भी आधिकारिक रूप से बाकायदा इस लड़ाई में शामिल
हो गई.
इस सिलसिले में कुछ और बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. 1.पुंछ में मुस्लिम आबादी ने बगावत की. 2.गिलगित-बल्तिस्तान में महाराजा की सेना ने बगावत की. सेना में ज्यादातर सैनिक मुसलमान थे और कमांडर अंग्रेज. 3.जम्मू में सांप्रदायिक हिंसा हुई और 4.कश्मीर के अलावा हैदराबाद और जूनागढ़ पर पाकिस्तान की नजरें थी.