मल्लिकार्जुन खड़गे आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष बन गए हैं। अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा है कि उदयपुर-घोषणा के अनुसार अब पार्टी में 50 फीसदी पद 50 साल से कम उम्र के लोगों को देंगे। यह घोषणा जितनी आसान लगती है, उसे लागू करना उतना ही मुश्किल होगा। सोनिया गांधी के नेतृत्व में शीर्ष पर पार्टी के जो नेता हैं, उनमें कोई भी पचास से नीचे का नहीं है। सबसे कम उम्र की हैं प्रियंका गांधी जो 50 साल से कुछ ऊपर हैं। शेष नेता इससे ज्यादा उम्र के हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे स्वयं 80 के हैं।
उनका नेतृत्व मंडल अभी गठित नहीं हुआ है, पर
जैसी उन्होंने घोषणा की है, उसे लागू करने का मतलब है कि अब कम से कम आधे नेता
एकदम नए होंगे। यह नई ऊर्जा होगी। उसे पुरानों के साथ मिलकर काम करना होगा। खड़गे
को दोनों के बीच पटरी बैठानी होगी। खड़गे ने मुश्किल समय में पार्टी की कमान
संभाली है। इस समय केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें
हैं। इसके अलावा झारखंड और तमिलनाडु में पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल है,
लेकिन मुख्यमंत्री दूसरे दलों के हैं।
बुधवार 26 अक्तूबर को जब उन्होंने कार्यभार
संभाला, तब सोनिया गांधी के अलावा राहुल गांधी भी उपस्थित थे, जो अपनी ‘भारत
जोड़ो यात्रा’ को कुछ समय के लिए छोड़कर इस कार्यक्रम में
हिस्सा लेने दिल्ली आए। कांग्रेस शासित दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
और भूपेश बघेल भी कार्यक्रम में मौजूद थे। प्रियंका गांधी भी।
खड़गे के पास समय भी कम है। 2024 के लोकसभा
चुनाव को अब सिर पर ही मानिए। लोकसभा चुनाव के पहले 11 राज्यों के और उसके फौरन
बाद के चुनावों को भी जोड़ लें, तो कुल 18 विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इनमें हिमाचल
प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक,
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़,
तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा,
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। हिमाचल
और गुजरात के चुनाव तो सामने खड़े हैं और फिर 2023 में उनके गृह राज्य कर्नाटक के
चुनाव हैं। अगले साल फरवरी-मार्च में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनाव हैं,
मई में कर्नाटक के और नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम
और तेलंगाना के।
उत्तर में कांग्रेस की दशा खराब है। वहाँ के लिए सफल रणनीति तैयार करने की चुनौती सबसे बड़ी है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में उन्हें किसी न किसी पार्टी के साथ गठबंधन करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर भी विरोधी दलों के गठबंधन की बात चल रही है। इससे जुड़ी रणनीति भी एक बड़ी चुनौती होगी।