Sunday, October 31, 2021

परीक्षा 'वोकल फॉर लोकल' की


दीवाली का समय है, जो उत्सवों-पर्वों के अलावा अर्थव्यवस्था की सेहत और पारम्परिक कारोबार के नए खातों का समय होता है। महामारी के कारण बिगड़ी आर्थिक गतिविधियाँ पटरी पर वापस आ रही हैं। साथ ही सरकार और कारोबार की परीक्षा का यह समय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 22 अक्तूबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से भारत में बने उत्पाद खरीदने और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियान 'वोकल फॉर लोकल' को सफल बनाने का आग्रह किया।

कोविड-19 के बचाव में एक अरब टीकों के लगने से देश भर में विश्वास का माहौल बना है। त्योहारी सीजन की वजह से भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। विशेषज्ञ और एजेंसियां अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साहित हैं। दूसरी तरफ माँग में तेजी और वैश्विक मुद्रास्फीति के कारण भारत में कीमतें बढ़ने का अंदेशा है। खनिज तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल, खाद्य तेलों की महंगाई, धातुओं की कमी और कोयले की सप्लाई में दिक्कतों के कारण अर्थव्यवस्था में अड़ंगे पैदा लगेंगे।   

साख और शक्ति

सवाल कई हैं। मेक इन इंडिया और आत्म निर्भर भारत जैसे सरकारी कार्यक्रम क्या वैश्वीकरण के इस दौर में सफल होंगे? क्या हम अपने उत्पाद वैश्विक बाजार में बेचने में सफल होंगे? यों तो हमारा आंतरिक बाजार बहुत बड़ा है, पर क्या हमारे उपभोक्ता की क्रय-शक्ति इतनी है कि वह अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने में मददगार हो? अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के इस महीने जारी अनुमानों के मुताबिक, भारत इस वित्तवर्ष में 9.5 फीसदी और अगले वित्तवर्ष में 8.5 फीसदी की संवृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। मूडीज़ ने भारत की साख को बेहतर करते हुए नकारात्मक से स्थिर श्रेणी में कर दिया। उसका कहना है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में पुनरुद्धार जारी है और चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि दर महामारी से पहले के मुकाबले बेहतर होगी।

भरोसा बढ़ा

मोदी ने कहा कि एक अरब टीके दिए जाने से छोटे कारोबारों, फेरीवालों और पटरी वाले विक्रेताओं के लिए उम्मीद की किरण जगी है। एक ज़माने में विदेशों में बने सामान में लोगों की दिलचस्पी होती थी, लेकिन आज 'मेक इन इंडिया' की ताकत बढ़ रही है। पिछले साल दीवाली के समय लोगों के दिलो-दिमाग में तनाव था लेकिन अब टीकाकरण अभियान की वजह से भरोसा है। उन्होंने कहा, मेरे देश में बने टीके मुझे सुरक्षा दे सकते हैं तो देश में बनाए गए सामान भी मेरी दीवाली को और भव्य बना सकते हैं।

इस साल मार्च के बाद से निर्यात में भी वृद्धि हुई है। वैश्विक व्यापार में सुधार के कारण इंजीनियरिंग माल, कपड़ों, रासायनिक उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है। माल और सेवा के संयुक्त निर्यात में सितंबर में पिछले साल की इसी अवधि में हुए निर्यात के मुकाबले 22 फीसदी की वृद्धि हुई। निर्यात ने महामारी शुरू होने से पहले के आंकड़े को पार कर लिया है।

राजकोषीय घाटे में कमी

एक और सकारात्मक खबर है। राजकोषीय घाटा अप्रैल-सितंबर अवधि के दौरान घटकर बजट अनुमान का 35 प्रतिशत रह गया है, जो पिछले साल की इसी अवधि में बजट अनुमान का 115 प्रतिशत था। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा चार साल के निम्नतम स्तर 5.26 लाख करोड़ रुपये रह सकता है। दूसरी तरफ कुल व्यय बजट अनुमान से ज्यादा हो सकता है। उत्साह का मुख्य कारण है सितंबर में राजस्व में हुई 50 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि। अग्रिम कर और अप्रत्यक्ष कर में तेज बढ़ोतरी हुई है। महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार को सितंबर तक 10.8 लाख करोड़ रुपये (2021-22 की कुल प्राप्तियों के बजट अनुमान की तुलना में 27.3 प्रतिशत) मिले हैं। इसमें 9.2 लाख करोड़ रुपये कर राजस्व, 1.6 लाख करोड़ रुपये गैर कर राजस्व और 18,118 करोड़ रुपये गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां हैं।

Thursday, October 28, 2021

फिलहाल बीजेपी को हिला पाना कांग्रेस के बस की बात नहीं: प्रशांत किशोर


प्रशांत किशोर का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी अभी दशकों तक ताकतवर बनी रहेगी। राहुल गांधी को यदि लगता है कि मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है, तो वे गलत सोच रहे हैं। प्रशांत किशोर की कंसल्टेंसी संस्था इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपीएसी) इन दिनों तृणमूल कांग्रेस के साथ है और उन्होंने यह बात गोवा में कही है।

इसके पहले प्रशांत किशोर ने इस महीने के शुरू में कहा था कि कांग्रेस पार्टी यदि समझती है कि लखीमपुर खीरी के घटनाक्रम के बाद राहुल और प्रियंका गांधी की आक्रामक मुद्रा से पार्टी का पुनरुद्धार हो जाएगा, तो यह गलत सोच है। प्रशांत किशोर के ताजा बयान बता रहे हैं कि उनकी कांग्रेस पार्टी से दूसरी बन चुकी है, जबकि पिछले महीने तक ऐसा लग रहा था कि शायद वे कांग्रेस पार्टी में बाकायदा शामिल हो जाएं।

जुलाई के महीने में खबरें थीं कि प्रशांत किशोर के साथ राहुलसोनिया और प्रियंका गांधी की एक साथ हुई मुलाक़ात काफ़ी सुर्खियाँ बटोर रही है। समाचार पत्रों से लेकर तमाम न्यूज़ चैनल में सूत्र बता रहे थे कि 'कुछ बड़ाहोने वाला है। यह 'बड़ाक्या हैइसके बारे खुल कर कोई कुछ नहीं बता रहा था। चारों की मुलाक़ात की आधिकारिक पुष्टि भी अंततः हो गई। और लगने लगा कि यह बड़ा प्रशांत किशोर हैं, जो कांग्रेस में बाकायदा शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस में उनके शामिल होने की खबर इतने जोरदार तरीके से सुनाई पड़ी है कि राहुल गांधी की करीबी मानी जाने वाली एक नेता ने ट्वीट करके इस खबर का स्वागत भी कर दिया। इसके फौरन बाद यह ट्वीट डिलीट कर दिया गया। पार्टी सूत्रों ने बताया कि इस मुलाकात का अनुरोध प्रशांत किशोर ने किया था। यह मुलाकात चार घंटे तक चली थी।  

इस साल के शुरू में पश्चिम बंगाल में हुए विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की सफलता के बाद से प्रशांत किशोर का महत्व बढ़ा है। इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ बढ़ा दी हैं। गोवा में गतिविधियाँ भी पार्टी के बढ़ते कदमों की ओर इशारा कर रही है।

प्रशांत किशोर का कहना है कि बीजेपी अब भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बनी रहेगी। वह जीते या हारे उसका वैसा ही महत्व बना रहेगा, जैसा स्वतंत्रता के बाद के पहले 40 वर्षों तक था। जैसे ही कोई पार्टी 30 फीसदी या ज्यादा वोट जीतने लग जाती है, तब उसका मतलब होता है कि जल्द ही उसका महत्व खत्म होने वाला नहीं है।  

Wednesday, October 27, 2021

पाकिस्तान के हाथों भारत की क्रिकेट में हार, एक साधारण सी घटना के असाधारण निहितार्थ


भारतीय टीम की हार मुझे भी अच्छी नहीं लगी। मैं भी चाहता हूँ कि हमारी टीम जीते। खेल के साथ राष्ट्रीय भावना भी जुड़ती है, पर मैं अच्छा खेलने वालों का भी प्रशंसक हूँ, भले ही वे हमारी टीम के खिलाड़ी हों या किसी और टीम के। खराब खेलकर हमारी टीम जीते, ऐसा मैं नहीं चाहता। पर टी-20 विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में रविवार 24 अक्तूबर को भारत की हार के बाद मिली प्रतिक्रियाओं को देखने-सुनने के बाद चिंता हो रही है कि खेल को अब हम खेल के बजाय किसी और नजरिए से देखने लगे हैं।

यह विषयांतर है, पर मैं उसे यहाँ उठाना चाहूँगा। बहुत से लोगों के मन में सवाल आता है कि भारत में भारतीय जनता पार्टी के उभार के पीछे वजह क्या है? क्या वजह है कि हम जिस गंगा-जमुनी संस्कृति और समरसता की बातें सुनते थे, वह लापता होती जा रही है? जो बीजेपी के राजनीतिक उभार को पसंद नहीं करते उनके जवाब घूम-फिरकर हिन्दू-साम्प्रदायिकता पर केन्द्रित होते हैं। उस साम्प्रदायिकता को पुष्टाहार कहाँ से मिलता है, इसपर वे ज्यादा ध्यान नहीं देते। वे भारतीय इतिहास, मुस्लिम और अंग्रेजी राज तथा राष्ट्रीय आंदोलन वगैरह को लेकर लगभग एक जैसी बातें बोलते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी-समर्थकों के तर्क हैं, जो घूम-फिरकर दोहराए जाते हैं, पर नई घटनाएं उनके क्षेपक बनकर जुड़ी जाती हैं।

मुझे तमाम बातें अर्ध-सत्य लगती हैं। खेल के मैदान, साहित्य, संस्कृति, संगीत समेत जीवन के हर क्षेत्र में निष्कर्ष एकतरफा हैं। इतिहास के पन्ने खुल भी रहे हैं, तो इन एकतरफा निष्कर्षों को समर्थन मिल रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की विजय और उसके बाद भारत सरकार की नीतियों, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के फैसले, नागरिकता कानून, शाहीनबाग आंदोलन, किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी की हिंसा, डाबर का विज्ञापन और शाहरुख खान के बेटे की गिरफ्तारी सब कुछ इसी नजर से देखा जा रहा है। मीडिया की कवरेज और उनमें होने वाली बहसों की भाषा और तथ्यों की तोड़मरोड़ से बातें कहीं से कहीं पहुँच जाती हैं। टी-20 क्रिकेट भी इसी नजरिए का शिकार हो रहा है।

बहरहाल आप क्रिकेट देखें और इस घटनाक्रम पर विचार करें। सम्भव हुआ, तो इस चर्चा को आगे बढ़ाने का प्रयास करूँगा। फिलहाल क्रिकेट के इस घटनाक्रम पर मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा:

1.हमारी टीम एक मैच हारी है, टूर्नामेंट से बाहर नहीं हुई है। हो सकता है कि हमें पाकिस्तान के साथ फिर खेलने का मौका मिले। हो सकता है कि दोनों देश फाइनल में हों। हम यह प्रतियोगिता नहीं भी जीते, तब भी भविष्य की प्रतियोगिताएं जीतने का मौका है। इस हार से टीम ने कुछ सीखा हो, तभी अच्छा है।

2.टीम के कप्तान या किसी भी खिलाड़ी को कोसना गलत है। टीम जीत जाए, तो जमीन-आसमान एक करना और हार जाए, तो रोना नासमझी है। खासतौर से उनका विलाप कोई मायने नहीं रखता, जिन्हें खेल की समझ नहीं है।

3.इसके विपरीत जो लोग भारतीय टीम को भारतीय जनता पार्टी की टीम मानकर चल रहे हैं, वे भी गलत हैं। यह दृष्टि-दोष है। मीडिया की अतिशय कवरेज और कुछ खेल के साथ जुड़े देश-प्रेम के कारण ऐसा हुआ है। पर इस हार पर खुशी मनाने का भी कोई मतलब नहीं है।

4.हो सकता है लोग कहें, हम खुशी नहीं मना रहे हैं, केवल भक्तों का मजाक बना रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी मुझे समझ में नहीं आती। ऐसे वीडियो सोशल मीडिया में आए हैं, खासतौर से कश्मीर और पंजाब के शिक्षा-संस्थानों के जिनमें पाकिस्तानी टीम की विजय के क्षणों पर खुशी का माहौल नजर आता है। पर क्या यह राजद्रोह है? इस किस्म की प्रतिक्रियाओं की विपरीत प्रतिक्रिया होती है, जो अतिशय या आक्रामक-राष्ट्रवाद को जन्म देती हैं।

5.इस परिणाम पर हर्ष या विषाद के बजाय जिस तरह से साम्प्रदायिक टिप्पणियाँ हुईं, वे चिंताजनक हैं। मोहम्मद शमी को निशाना बनाने वाले ट्रोल नहीं जानते कि वे इतनी गलत बात क्यों बोल रहे हैं। अच्छा हुआ कि शमी के पीछे देश के तकरीबन ज्यादातर सीनियर खिलाड़ियों ने ट्वीट जारी किए।

6.क्या वास्तव में शमी को ट्रोल किया गया?  चर्चा इस बात की भी है कि सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे हैंडलों ने इस ट्रोलिंग को शुरू किया, जो पाकिस्तान से संचालित होते हैं। ऐसा क्यों किया होगा? ताकि भारत में हिन्दू-मुस्लिम विभाजन बढ़े।

बरखा दत्त ने 25 अक्तूबर को 9.46 पर यह ट्वीट किया। क्या इसके पहले या इसके बाद शमी को ट्रोल करते हुए आपने ट्वीट देखे थे?

Tuesday, October 26, 2021

हंगर इंडेक्स पर भारत की चिंताजनक फिसलन

हाल में स्वास्थ्य और कुपोषण को लेकर जारी हुए हंगर इंडेक्स को लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और भारत सरकार के बीच जो मतभेद उभरे हैं, वे गम्भीर प्रकृति के हैं। गिरावट पिछले चार-पाँच वर्षों से देखी जा रही है। इस वर्ष के वैश्विक क्षुधा (भूख) सूचकांक (जीएचआई-2021) के अनुसार भारत का रैंक 94 से गिरकर 101 हो गया है। भारत के लिए इसमें अपमानजनक दो बातें हैं। एक, यह सूचकांक 116 देशों का है, जिसका मतलब यह हुआ कि भारत दुनिया के निम्नतम स्तर पर है। दूसरे हमारे पड़ोसी देश, खासतौर से पाकिस्तान और बांग्लादेश भी इसमें हमसे ऊपर हैं। पिछले साल यह रैंक 94 जरूर था, पर 2017 के बाद से यह रैंक 100 से 103 के बीच रहता है। 

‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक', भुखमरी की समीक्षा करने वाली वार्षिक रिपोर्ट को आयरलैंड स्थित एक एजेंसी ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ और जर्मनी के एक संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है। इसका उद्देश्य वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर भुखमरी की समीक्षा करना है। जीएचआई स्कोर चार संकेतकों के आधार पर निकाला जाता है: 1.अल्पपोषण, 2.चाइल्ड वेस्टिंग, 3.चाइल्ड स्टंटिंग और 4.बाल मृत्यु दर।

इन चार संकेतकों का मान 0 से 100 तक के पैमाने पर भुखमरी को निर्धारित करता है। जहाँ ‘0’ सबसे अच्छा स्कोर (भुखमरी नहीं) है और ‘100’ सबसे खराब। इन संकेतकों से संबंधित आँकड़ों के लिए विश्व खाद्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग किया गया है। ये अंतर्राष्ट्रीय संगठन राष्ट्रीय डेटा का उपयोग करते हैं। भारत के संदर्भ में, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा का उपयोग किया जाता है।

भारत का विरोध

भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि भारत के रैंक को कम करना जमीनी वास्तविकता और तथ्यों से रहित है। रिपोर्ट का प्रकाशन करने वाली एजेंसियों ने उचित अध्ययन नहीं किया और रैंकिंग के लिए इस्तेमाल की गई पद्धति ‘अवैज्ञानिक’ है। सरकार के अनुसार उन्होंने ‘चार प्रश्न’ के एक जनमत सर्वेक्षण के परिणामों पर अपना मूल्यांकन किया है, जो गैलप द्वारा टेलीफोन पर किया गया था।

Sunday, October 24, 2021

कोयला-संकट के दूरगामी निहितार्थ


कोरोना के संकट से उबर रहे देश को अचानक ऊर्जा-संकट ने घेर लिया है। इससे अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। मध्य जुलाई से पैदा हुई कोयले की कमी के कारण उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के 135 ताप-बिजलीघरों के सामने संकट की स्थिति पैदा हो गई है। इन बिजलीघरों में 11.4 गीगावॉट (एक गीगावॉट यानी एक हजार मेगावॉट) उत्पादन की क्षमता है। देश में कुल 388 गीगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इनमें से कोयले पर चलने वाले ताप-बिजलीघरों की क्षमता 208.8 गीगावॉट (करीब 54 फीसदी) है। चूंकि औद्योगिक गतिविधियों में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसलिए इस खतरे को गम्भीरता से लेने की जरूरत है।

राजनीति की गंध

आर्थिक-संकट के अलावा कोयला-संकट के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में चुनाव होने वाले हैं। बिजली की कटौती होगी, तो वोटर का ध्यान इस तरफ जाएगा। पहली नजर में लगा कि यह बात वैसे ही राजनीतिक-विवाद का विषय बनेगी, जैसा इस साल अप्रेल-मई में मेडिकल-ऑक्सीजन की किल्लत के कारण पैदा हुआ था। इसकी खुशबू आते ही दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द कर दी। मनीष सिसौदिया ने ऑक्सीजन का ही हवाला दिया।

इन आशंकाओं को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने 'निराधार' करार दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले की तरह कोयले का 17 दिन का स्टॉक नहीं है लेकिन 4 दिन का स्टॉक है। कोयले की यह स्थिति इसलिए है क्योंकि हमारी माँग बढ़ी है और हमने आयात कम किया है। फिर भी बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है। कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 4.3 करोड़ टन का पर्याप्त कोयले का स्टॉक है वगैरह-वगैरह।

सच इन दोनों बातों के बीच में कहीं है। संकट तो है, शायद उतना गम्भीर नहीं, जितना समझा जा रहा है। शायद स्थिति पर जल्द नियंत्रण हो जाएगा। पर ऐसा करने के लिए बहुत से गैर-बिजली उपभोक्ताओं की कोयला-आपूर्ति रुकेगी। इसका असर दूसरे क्षेत्रों पर पड़ेगा। कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना है कि बिजलीघरों तक कोयला पहुँचाने की गति बढ़ाई जा रही है, ताकि उनके पास पर्याप्त स्टॉक बना रहे।

क्यों पैदा हुआ संकट?

सामान्यतः मॉनसून के महीनों में कोयलों खदानों में उत्पादन प्रभावित होता है। ग्रिड प्रबन्धन के लिहाज से अक्तूबर का महीना मुश्किल होता है। इस साल मॉनसून देर तक रहा है, इसका असर भी उत्पादन पर है। इसके विपरीत इस साल बिजली की माँग भी पहले से ज्यादा रही है। सामान्यतः अप्रेल-मई के महीनों में कोयले का भंडार जमा कर लिया जाता है, ताकि वर्षा के दौरान कमी न होने पाए, पर इस साल अप्रेल-मई में कोविड-19 की दूसरी लहर अपने सबसे रुद्र रूप में चल रही थी, इसलिए भंडारण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा।

दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत बढ़ने के कारण भारत ने कोयले का आयात कम कर दिया। ऐसा ही गैस के साथ हुआ। इस समय चीन से लेकर यूरोप तक दुनिया भर में कोयले और गैस की किल्लत है।

विदेशी कोयला आएगा

बहरहाल केंद्र सरकार ने ताप बिजलीघरों को 15 फीसद तक विदेशी कोयले की अनुमति देने का फैसला किया है। इससे बिजली महंगी होगी और फिर उसके दूरगामी परिणाम होंगे। विदेशी कोयले का मूल्य हाल ही में 60 से 200 डॉलर प्रति टन तक बढ़ा है। चूंकि अभी तक ज्यादातर बिजली घरों में विदेशी कोयले का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए वर्तमान संकट का बिजली की दर पर असर नहीं पड़ा था, पर अब विदेशी कोयले के इस्तेमाल की अनुमति के बाद उसमें वृद्धि हो सकती है।