Wednesday, April 7, 2021

क्या था मुशर्रफ का चार-सूत्री समझौता फॉर्मूला?

 


।।एक।।
भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर जमी बर्फ के पिघलने की सम्भावनाओं को लेकर जब हाल में हलचल थी, तब पिछले पाँच दशक में इस दिशा में हुए प्रयासों को लेकर कुछ बातें सामने आई थीं। इनमें शिमला समझौते का जिक्र भी होता है। यह समझौता विफल होने के कगार पर था कि अचानक ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के बीच कुछ बात हुई और समझौते के आसार बन गए देश के अनेक पर्यवेक्षकों का मत है कि भारत ने शिमला समझौता करके गलती की।

भारत-पाकिस्तान के समझौता-प्रयासों की पृष्ठभूमि पर नजर डालने की जरूरत है। कश्मीर के विवाद को लेकर हमें 1947 में वापस जाना पड़ेगा, पर कुछ बातें शिमला समझौते से भी समझी जा सकती हैं। इन बातों के लिए कई लेख लिखने होंगे। पर सबसे पहले मैं चार-सूत्री समझौते की पेशकश और फिर उसके खटाई में पड़ जाने की पृष्ठभूमि पर कुछ लिखूँगा।

पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी किताब ‘नीदर ए हॉक नॉर ए डव’ में लिखा है कि परवेज़ मुशर्रफ और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच कश्मीर पर चार-सूत्री समझौता होने जा रहा था, जिससे इस समस्या का स्थायी समाधान हो जाता। इस समझौते की पृष्ठभूमि अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज़ मुशर्रफ के आगरा शिखर सम्मेलन में ही तैयार हो गई थी। कहा तो यह भी जाता है कि आगरा में ही दस्तखत हो जाते, पर वह समझौता हुआ नहीं।

बताया जाता है कि मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला था, तब मनमोहन सिंह ने एक फाइल उन्हें सौंपी थी, जिसमें उस चार-सूत्री समझौते से जुड़े विवरण थे। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने हाल में कसूरी का लिखा इस आशय का एक लेख भी प्रकाशित किया है। कसूरी के अनुसार इस चार-सूत्री समझौते की पेशकश की थी। इस समझौते के 11 या 12 महत्वपूर्ण कारक थे, जिनकी शुरुआत कश्मीर के प्रमुख शहरों के विसैन्यीकरण और नियंत्रण रेखा पर न्यूनतम सैनिक उपस्थिति से होती।

Tuesday, April 6, 2021

क्वाड के जवाब में रूसी-चीनी गठबंधन नहीं


रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने आज दिल्ली में कहा कि चीन के साथ रूस कोई सैन्य समझौता नहीं होने जा रहा है। भारत की यात्रा पर आए विदेशमंत्री से सवाल पूछा गया था कि क्या रूस चीन के साथ कोई सैन्य समझौता करने की योजना बना रहा है? इसके जवाब में सर्गेई लावरोव ने कहा, नहीं।

हाल में इस आशय की खबरें थीं कि रूस और चीन ने क्वाड के जवाब में सैनिक गठबंधन बनाने का प्रस्ताव किया है। इसे 'क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद मंच' कहा गया था। यह प्रस्ताव दक्षिणी चीन के शहर गुइलिन में चीन के विदेश मंत्री वांग यी और सर्गेई लावरोव के बीच हुई बैठक के बाद आया। लावरोव ने पिछले दिनों भारत के क्वाड में शामिल होने पर आपत्ति भी व्यक्त की थी।

भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव के बीच नाभिकीय, अंतरिक्ष और रक्षा-क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही भागीदारी सहित तमाम विषयों और भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारियों को लेकर विस्तृत बातचीत हुई। लावरोव सोमवार की शाम को दिल्ली पहुँचे थे।

मंगलवार को दोनों विदेशमंत्रियों के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में एस जयशंकर ने कहा,‘बातचीत व्यापक और सार्थक रही।’ उन्होंने कहा कि हमारी  ज्यादातर बातचीत इस साल के आखिर में होने जा रहे भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के बारे में हुई। गौरतलब है कि भारत और रूस का वार्षिक शिखर सम्मेलन पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी के कारण नहीं हो सका था।

भारत-अमेरिका और रूस के रिश्ते कसौटी पर


भारत के अमेरिका के साथ रिश्तों के अलावा रूस के साथ रिश्ते भी इस समय कसौटी पर हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दो दिवसीय यात्रा पर सोमवार रात दिल्ली पहुंच गए। उनकी यह यात्रा तब हो रही है जब दोनों देशों के रिश्तों में तनाव के संकेत हैं। लावरोव के कुछ तीखे बयान भी हाल में सुनाई पड़े हैं। लावरोव की आज मंगलवार को विदेशमंत्री एस जयशंकर से मुलाकात हो रही है। इसमें तमाम द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी (रूस, भारत, चीन) जैसे संगठनों की भावी बैठकों को लेकर भी चर्चा होगी। एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 को लेकर भी चर्चा होगी।

सोमवार को ही अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी दिल्ली आए हैं। वे भारत सरकार, प्राइवेट सेक्टर व एनजीओ  के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे। कैरी 1 से 9 अप्रैल के बीच अबू धाबी, नई दिल्ली और ढाका की यात्रा पर निकले हैं। आगामी 22-23 अप्रैल के बीच जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका द्वारा आयोजित 'नेताओं के शिखर सम्मेलन' और इस वर्ष के अंत में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी26) से पहले कैरी  विचार विमर्श के लिए इन देशों के दौरे पर हैं। 

इन दोनों विदेश मंत्रियों के दौरों के कारण आज दिल्ली में काफी गहमा-गहमी रहेगी। भारत की कोशिश होगी कि अफगानिस्तान में चल रही शांति समझौते की प्रक्रिया को लेकर रूस के पक्ष को समझा जाए। पिछले महीने मॉस्को में हुई बैठक में रूस ने भारत को नहीं बुलाया था। भारत की यात्रा के बाद लावरोव सीधे इस्लामाबाद जाएंगे। वर्ष 2012 के बाद रूस का कोई विदेश मंत्री पाकिस्तान की यात्रा पर जाएगा, लेकिन यह पहली बार है कि रूस का कोई बड़ा नेता भारत आने के बाद पाकिस्तान की यात्रा पर जा रहा है। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने लावरोव की यात्रा का जो एजेंडा सोमवार को जारी किया, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात का जिक्र नहीं है। ऐसा हुआ, तो यह बात हैरत वाली होगी, क्योंकि ज्यादातर देशओं के विदेशमंत्री दिल्ली आते हैं, तो प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं।

Monday, April 5, 2021

बांग्लादेश पर चीनी-प्रभाव को रोकने की चुनौती

 


बांग्लादेश की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोह के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने बांग्लादेश के महत्व पर रोशनी डाली है। मैत्री के तमाम ऐतिहासिक विवरणों के बावजूद पिछले कुछ समय से इन रिश्तों में दरार नजर आ रही थी। इसके पीछे भारतीय राजनीति के आंतरिक कारण हैं और चीनी डिप्लोमेसी की सक्रियता। भारत में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ, नागरिकता कानून में संशोधन, रोहिंग्या और तीस्ता के पानी जैसे कुछ पुराने विवादों को सुलझाने में हो रही देरी की वजह से दोनों के बीच दूरी बढ़ी है।

पिछले कुछ समय से भारतीय विदेश-नीति में दक्षिण एशिया के देशों से रिश्तों को सुधारने के काम को महत्व दिया जा रहा है। म्यांमार में फौजी सत्ता-पलट के बाद भारत की संतुलित प्रतिक्रिया और संरा मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के समय भारत की अनुपस्थिति से इस बात की पुष्टि होती है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर जो चुप्पी साधी है, वह भी विदेश-नीति का असर लगता है।  

भारत-बांग्‍लादेश सीमा चार हजार 96 किलोमीटर लंबी है। दोनों देश 54 नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल करते हैं। दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार-सहयोगी बांग्लादेश है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था प्रगतिशील है और सामाजिक-सांस्कृतिक लिहाज से हमारे बहुत करीब है। हम बहुत से मामलों में बेहतर स्थिति में हैं, पर ऐतिहासिक कारणों से दोनों देशों के अंतर्विरोध भी हैं। उन्हें सुलझाने की जरूरत है। 

Sunday, April 4, 2021

औद्योगिक विनिवेश क्यों और कैसे?


चार दिन पहले नया वित्तवर्ष शुरू हो गया है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की गतिविधियों ने तेजी पकड़ी है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने इसपर पलीता लगाने का इशारा भी किया है। विश्व बैंक का ताजा अनुमान है कि 2021-22 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 से 12.5 फीसदी रह सकती है। बैंक भी भ्रम की स्थिति में है, इसीलिए 7.5 फीसदी से लेकर 12.5 फीसदी की रेंज दी गई है।

अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए सामाजिक कल्याण और इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश की जरूरत है। ये संसाधन केवल कर-राजस्व से पूरे नहीं होंगे। यों भी आमतौर पर बजट के कर-राजस्व अनुमान सही साबित नहीं होते। इस साल के बजट में 22.17 लाख करोड़ रुपये के कर-राजस्व का लक्ष्य रखा गया है, जबकि इसके पिछले साल के यह लक्ष्य 24.23 लाख करोड़ का था। महामारी के कारण उस लक्ष्य में 22 फीसदी की कमी करके उसे 19 लाख करोड़ करना पड़ा। वास्तव में कर संकलन कितना हुआ, उसकी जानकारी आने दीजिए।

संसाधन कहाँ से आएंगे?

संसाधन जुटाने का दूसरा तरीका सार्वजनिक सम्पत्तियों के विनिवेश का है। इसबार के बजट में सरकार ने 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। यह विशाल लक्ष्य है। क्या सरकार इसे पूरा कर पाएगी? पिछले साल का लक्ष्य इससे भी बड़ा 2.1 लाख करोड़ का था। महामारी के कारण सरकार ने हाथ खींच लिए और लक्ष्य बदल कर 32 हजार करोड़ कर दिया गया। बहरहाल 31 मार्च तक सरकार ने इस मद में 32,835 करोड़ रुपये जुटाए।

नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद सार्वजनिक उद्योगों के विनिवेश की बहस निर्णायक दौर में है। सरकारें निजीकरण शब्द का इस्तेमाल करने से घबराती रही हैं। इसके लिए विनिवेश शब्द गढ़ा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने कहा था, सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। सन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल में भी उन्होंने यही बात कही थी। दूसरी तरफ कमांड-अर्थव्यवस्था के समर्थक इसका विरोध कर रहे हैं। हाल में बैंक कर्मचारियों ने दो दिन का आंदोलन करके आंदोलन का बिगुल बजा दिया है।