सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म हमेशा निरंकुश-निर्द्वंद नहीं रह सकते थे। जिस तरह उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में प्रिंट मीडिया के नियमन ने शक्ल ली, उसी तरह नब्बे के दशक में आकाश मीडिया के नियमन की शुरुआत हुई। पहले उसने केबल के रास्ते आकाश मार्ग से प्रवेश किया, फिर उसका नियमन हुआ, उसी तरह नए डिजिटल माध्यमों के विनियमन की जरूरत होगी। इनकी अंतर्विरोधी भूमिका पर भारत में ही नहीं दुनियाभर में चर्चा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ओटीटी प्लेटफॉर्मों की सामग्री का नियमन होता है और उल्लंघन होने पर सजा देने की व्यवस्था भी है। पर इस विनियमन को युक्तिसंगत भी होना चाहिए। इस मामले में विवेकशीलता नहीं बरती गई, तो लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति का गला घुट सकता है।
पिछले गुरुवार को
सरकार ने जो सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और
डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किए हैं, उन्हें आना
ही था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस आशय के निर्देश दिए थे और हालात खुद कह रहे
हैं कि कुछ करना चाहिए। हाल में अमेरिकी संसद और लालकिले पर हुए हमलों से इसकी
जरूरत और पुख्ता हुई है।
मर्यादा रेखाएं
इंटरनेट और डिजिटल मीडिया ने सामाजिक-शक्तियों और राजशक्ति के बीच भी मर्यादा रेखा खींचने जरूरत को रेखांकित किया है। सामान्यतः माना जाता है कि सार्वजनिक हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य की है। पर जैसे-जैसे तकनीक का दायरा हमें राज्य की राजनीतिक सीमाओं से भौगोलिक रूप से बाहर ले जा रहा है, नए सवाल उठ रहे हैं। नियामक संस्थाओं की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर तक होती है, पर भविष्य में अंतरराष्ट्रीय नियमन की जरूरत भी होगी।