प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले गुरुवार को चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ ‘कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता’ विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही। इस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया। बैठक में यह भी कहा गया कि ‘अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी।’ पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।
मोदी ने कहा, महामारी
के दौरान देखी गई क्षेत्रीय एकजुटता की भावना ने साबित कर दिया है कि इस तरह का
एकीकरण संभव है। कई विशेषज्ञों ने घनी आबादी वाले एशियाई क्षेत्र और इसकी आबादी पर
महामारी के प्रभाव के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की थी, लेकिन हम एक समन्वित
प्रतिक्रिया के साथ इस चुनौती सामना कर रहे हैं। इस बैठक और इस बयान के साथ
पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर गौर करना बहुत जरूरी है। कोविड-19 का सामना करने के लिए
भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी इन दिनों खासतौर से चर्चा का विषय है।
वैक्सीन राजनय
पाकिस्तान को छोड़कर, सभी पड़ोसी देशों को भारत ने वैक्सीन दी है। पाकिस्तान को चीन से पाँच लाख खुराकें मिली हैं, पर वहाँ इन दिनों कहा जा रहा है कि हमें भारत से वैक्सीन माँगनी चाहिए। पाकिस्तान के औषधि नियामक ने सबसे पहले भारत के सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को स्वीकृति दी है। इसका मतलब क्या है? भारत की हर पहल, हर प्रस्ताव पर सिर्फ विरोध करने की अपनी आदत में क्या पाकिस्तान बदलाव ला रहा है? क्या हम दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की उम्मीद करें? क्या हम दक्षेस को फिर से सक्रिय कर सकते हैं?