Friday, February 12, 2021

निजीकरण की खुलकर तरफदारी


आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में निजी क्षेत्र का बचाव शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार के निजीकरण के एजेंडे का बचाव करते हुए जिस प्रकार निजी क्षेत्र का मजबूती से पक्ष लिया उससे एक बात एकदम साफ हो गई कि आर्थिक सुधारों को चोरी छिपे अंजाम देने का समय अब समाप्त हो चुका है। यह एक सुखद बदलाव है जो 'सूट-बूट की सरकार' जैसा ताना मारे जाने के बाद की हिचक टूटने को दर्शाता है। बुधवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद ज्ञापन का उत्तर देते हुए मोदी ने जोर देकर कहा कि वोट जुटाने के मकसद से संपत्ति तैयार करने वालों को गाली देना अब स्वीकार्य नहीं रहा और कारखानों तथा कारोबार संचालन के मामले में अब अफसरशाही को पीछे हट जाना चाहिए। ये टिप्पणियां अहम हैं और सरकार के व्यापक रुख का निर्देशन इन्हीं के जरिए होना चाहिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश को संपत्ति तैयार करने वालों की आवश्यकता है। केवल उसी स्थिति में निजी क्षेत्र फल-फूल सकेगा, रोजगार तैयार हो सकेंगे और सरकार के पास अपने दायित्व निभाने के संसाधन रहेंगे। बिना संपत्ति तैयार किए पुनर्वितरण नहीं हो सकता।

आजादी के बाद कई दशकों तक सरकारी क्षेत्र के दबदबे और अत्यधिक सरकारी नियंत्रण वाला मॉडल अपनाया गया, लेकिन इससे वांछित परिणाम नहीं हासिल हुए। भारत को उच्च वृद्धि दर तभी हासिल हुई जब सन 1990 के दशक में अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया और प्रतिस्पर्धा बढ़ी। प्रधानमंत्री के वक्तव्य को सरकारी उपक्रमों से संबंधित नई नीति के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए, जिसकी घोषणा आम बजट में की गई। इसके तहत सरकार केवल सामरिक क्षेत्र के चुनिंदा सरकारी उपक्रमों को अपने पास रखेगी और शेष का या तो निजीकरण किया जाएगा या उन्हें बंद कर दिया जाएगा। सरकार अगले वित्त वर्ष में दो सरकारी बैंकों का भी निजीकरण करेगी। अतीत को देखें तो ये बेहतर कदम हैं और दीर्घावधि में ये देश के हित में साबित होंगे। आंकड़े बताते हैं कि बेहतर प्रदर्शन करने वाले अधिकांश सरकारी उपक्रम उन क्षेत्रों में हैं जहां प्रतिस्पर्धा सीमित है। दूसरी तरह से देखें तो सरकारी उपक्रम प्रतिस्पर्धा के सामने बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। इससे यह संकेत निकलता है कि संसाधनों का प्रभावी इस्तेमाल नहीं हो रहा। इतना ही नहीं सरकारी क्षेत्र की मौजूदगी से बाजार में विसंगति आने का खतरा रहता है।

Thursday, February 11, 2021

मंगल ग्रह पर तीन देशों के यान


बुधवार 10 फरवरी को चीन ने दावा किया कि उसके अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ने शाम 7.52 बजे (बीजिंग के समयानुसार) मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर लिया। करीब साढे़ छह महीने का सफर पूरा करने के बाद मंगल की कक्षा में पहुँचा 240 किलोग्राम वजन का यह यान चीन का पहला स्वतंत्र अभियान है, जिसे मंगल पर रोवर लैंड कराने और वहां के भूजल व पुरातन समय में जिंदगी के संभावित चिन्हों का डेटा एकत्र करने के अभियान पर भेजा गया है। अभी इस अभियान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम बाकी है। वह है मंगल ग्रह पर रोवर को उतारना। मंगल पर यान उतारना खासा मुश्किल काम है। चीनी यान को उतारने के लिए पैराशूट, बैकफायरिंग रॉकेट और एयरबैग का इस्तेमाल किया जाएगा। अगले सप्ताह अमेरिकी यान पर्ज़वरेंस मंगल ग्रह पर उतरने वाला है, जिसे लेकर काफी उत्सुकता है।

इससे पहले 2011 में रूस के साथ मिलकर किया गया उसका संयुक्त प्रयास विफल हो गया था। तियानवेन-1 यान मई या जून में मंगल ग्रह पर रोवर का कैप्सूल उतारने का प्रयास करेगा। इसके बाद यह रोवर 90 दिन तक मंगल की सतह का अध्ययन करेगा। यदि चीनी रोवर मंगल पर उतरने में कामयाब हुआ, तो वह दुनिया का दूसरा ऐसा देश होगा। अब तक केवल अमेरिका ही आठ बार अपने रोवर मंगल पर उतारने में कामयाब हुआ है। मंगल ग्रह हरेक दो साल बाद पृथ्वी के करीब आता है। धरती से अभियान भेजने के लिए यह उपयुक्त समय होता है।

चीनी अंतरिक्ष यान से पहले मंगलवार को संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर मंगल की कक्षा में पहुंचा था। अगले सप्ताह 18 फरवरी को अमेरिका भी अपने पर्ज़वरेंस रोवर को मंगल ग्रह की सतह पर उतारने का प्रयास करेगा। तीनों मंगल अभियान पिछले साल जुलाई में भेजे गए थे। रूस की तरफ से 19 अक्तूबर, 1960 को भेजे गए पहले मंगलयान के बाद पिछले 61 साल में अब तक 8 देश 58 बार इस लाल ग्रह के अध्ययन के लिए यान भेज चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 29 बार अमेरिका ने और 22 बार रूस (पूर्व सोवियत संघ) और तीसरे नंबर पर ईयू ने 4 मिशन भेजे हैं। भारत, जापान, चीन और यूएई ने एक-एक मिशन भेजा है।

Wednesday, February 10, 2021

क्वांटम कंप्यूटिंग में अमेरिकी वर्चस्व को चीनी चुनौती


खबर है कि चीन के एक स्टार्टअप ने क्वांटम कंप्यूटर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है। इस खबर के दो मायने हैं। एक तो यह अमेरिका के तकनीकी वर्चस्व को चुनौती है और दूसरे इस प्रकार दुनिया में अगली पीढ़ी की तकनीक के विस्तार का दरवाजा खुल रहा है। इसके पहले दिसंबर 2020 में चीन ने क्वांटम कंप्यूटर की तकनीक के विकास और एक प्रोटोटाइप तैयार करने का दावा किया था। पर पिछले सोमवार 8 फरवरी को चीन के एनहुई प्रांत के स्टार्टअप ओरिजिन क्वांटम ने अपने इस ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रदर्शन किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि चीन ने क्वांटम सुप्रीमेसी के पहले चरण में प्रवेश कर लिया है।

पहले इस बात को समझें कि क्वांटम सुप्रीमेसी होती क्या है। यह कंप्यूटर विज्ञान का नया शब्द है। मोटे तौर पर समझें कि आज के सुपर कंप्यूटरों से भी लाखों गुना ज्यादा तेज कंप्यूटर। नवंबर 2019 में गूगल ने घोषणा की थी कि कंप्यूटिंग में क्वांटम सुप्रीमेसी हासिल कर ली गई है। साइंटिफिक जर्नल 'नेचर' में इस आशय से संबंधित एक लेख भी प्रकाशित हुआ। परंपरागत कंप्यूटर भौतिक शास्त्र के परंपरागत सिद्धांतों पर काम करते हुए वे विद्युत प्रवाह का इस्तेमाल करते हैं। क्वांटम कंप्यूटर उन नियमों के आधार पर काम करेगा, जो परमाणुओं और सबएटॉमिक पार्टिकल्स के व्यवहार को दर्शाते हैं। इतने महीन स्तर पर क्वांटम फिजिक्स के नियम काम करते हैं। ऐसे कंप्यूटर के विकास पर वैज्ञानिक पिछले चार दशक से लगे हुए हैं। सन 1981 में भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन ने लिखा, ‘प्रकृति की नकल करते हुए हमें क्वांटम मिकेनिक्स का विकास करना होगा, जो सरल नहीं है।’ परंपरागत कम्प्यूटर, सूचना को बाइनरी यानी 1 और 0 के तरीके से प्रोसेस करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर ‘क्यूबिट्स’ (क्वांटम बिट्स) में काम करेगा। इसमें प्रोसेसर 1और 0 दोनों को साथ-साथ प्रोसेस करेगा। ऐसा एटॉमिक स्केल में होता है। इस स्थिति को क्वांटम सुपरपोजीशन कहते हैं।

Tuesday, February 9, 2021

बाइडेन-मोदी वार्ता में चीनी दादागिरी रोकने पर सहमति


अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालने के बाद पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर जो बात की, उसमें केंद्रीय विषय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्‍वतंत्र और मुक्‍त आवागमन और चीनी दादागिरी था। दोनों नेताओं ने कहा कि क्वॉड के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय अखंडता और मजबूत क्षेत्रीय ढांचे को समर्थन दिया जाएगा। 

विश्‍लेषकों का मानना है कि भारतीय प्रधानमंत्री के साथ पहली ही बातचीत में क्‍वॉड पर जोर देकर अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। क्‍वॉड एक ऐसा समूह है जिसे लेकर चीन परेशान है। वह कई बार भारत को इससे दूर रहने के लिए धमका चुका है। 

द क्वॉड्रिलैटरल सिक्‍यॉरिटी डायलॉग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं और इसमें ब्रिटेन के भी शामिल होने की बात चल रही है। कनाडा ने भी इस संगठन की ओर सकारात्‍मक रुख दिखाया है। वहीं चीन की आक्रामकता झेल रहे कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देश जैसे वियतनाम भी इस संगठन में जुड़ सकते हैं। 

Monday, February 8, 2021

नाज़ुक दौर में म्यांमार का तख्ता-पलट


म्यांमार की फौज ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का तख्ता-पलट करके दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग के हाथों में है और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची तथा राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत अनेक राजनेता नेता हिरासत में हैं। सत्ताधारी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं या घरों में नजरबंद हैं। दूसरी तरफ सिविल नाफरमानी जैसे आंदोलन की आहट सुनाई पड़ने लगी है।

एक साल का आपातकाल घोषित करने के बाद सेना ने कहा है कि साल भर  सत्ता हमारे पास रहेगी। फिर चुनाव कराएंगे। विदेश-नीति से जुड़े अमेरिकी थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर जोशुआ कर्लांज़िक ने लिखा है कि सेना एक साल की बात कह तो रही है, पर अतीत का अनुभव है कि यह अवधि कई साल तक खिंच सकती है। सेना ने अपने लिखे संविधान में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता-पलट करके सैनिक शासन लागू करने की व्यवस्था कर रखी है।

सेना का अंदेशा

शायद सेना को डर था कि आंग सान सू ची के नेतृत्व में एनएलडी इतनी ताकतवर हो जाएगी कि हमारी ताकत को सांविधानिक तरीके से खत्म कर देगी। विडंबना है कि सू ची ने भी शक्तिशाली नेता होने के बावजूद सेना को हाशिए पर लाने और लोकतांत्रिक सुधारों को तार्किक परिणति तक पहुँचाने का काम नहीं किया। उन्होंने अपनी जगह तो मजबूत की, पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का तिरस्कार किया। रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार करने वाली सेना की तरफदारी की।