Tuesday, November 24, 2020

वैक्सीन-प्रभावोत्पादकता की बहस में अभी पड़ना उचित नहीं


भारत में बन रही एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता को लेकर आज एक खबर दो तरह से पढ़ने को मिली। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है कि यह वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावोत्पादक है। टाइम्स के हिंदी संस्करण नवभारत टाइम्स ने भी यह बात लिखी है, जबकि उसी प्रकाशन समूह के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि यह वैक्सीन 90 फीसदी के ऊपर प्रभावोत्पादक है। खबरों को विस्तार से पढ़ें, तो यह बात भी समझ में आती है कि एस्ट्राजेनेका की दो खुराकें लेने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता 90 फीसदी के ऊपर है। केवल एक डोज की प्रभावोत्पादकता 70 फीसदी है। तमाम टीके एक से ज्यादा खुराकों में लगाए जाते हैं। छोटे बच्चों को चार पाँच साल तक टीके और उनकी बूस्टर डोज लगती है। इसकी डोज कितनी होगी, इसके बारे में इंतजार करें। इसमें दो राय नहीं कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन पर्याप्त कारगर होगी। अभी उसके पूरे विवरण तो आने दें। इस वैक्सीन का निष्कर्ष है कि यह छोटी डोज़ में दो बार देने पर बेहतर असरदार है। जो परिणाम मिले हैं, उनसे पता लगा है कि जिन लोगों को पहली डोज कम और दूसरी डोज पूरा दी गई उनके परिणाम 90 फीसदी के आसपास हैं और जिन्हें दोनों डोज पूरी दी गईं उनका असर 62 फीसदी के आसापास है। इसके पीछे के कारणों का पता तब लगेगा, जब इसके पूरे निष्कर्ष विस्तार से प्रकाशित होंगे। भारत में तो अभी तीसरे चरण के परीक्षण चल ही रहे हैं। 
बहरहाल महत्वपूर्ण खबर यह है कि भारत में वैक्सीन की पहली खुराक एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों को दी जाएगी। मुझे इन खबरों के पीछे हालांकि साजिश कोई नहीं लगती, पर कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा होता है कि फायज़र की वैक्सीन तो 95 फीसदी और मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है, तो यह कम असरदार क्यों हो? पहले तो यह समझना चाहिए कि यह दवा के असर से जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि उस डेटा का विश्लेषण है, जो टीके के दूसरे और तीसरे चरण के बाद जारी हुआ है। इसमें देखा यह जाता है कि कुल जितने हजार लोगों को टीके लगे, उनमें से कितनों को कोरोना का संक्रमण हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार टीका यदि 50 फीसदी या उससे ज्यादा लोगों को बीमारी से रोकता है, तो उसे मंजूरी मिल जानी चाहिए।

Monday, November 23, 2020

नेतन्याहू ने सऊदी शाह से मुलाकात की


वैश्विक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। इसका संकेत पश्चिम एशिया की घटनाओं से मिल रहा है। इसरायली मीडिया के अनुसार इसरायली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने रविवार को सऊदी अरब जाकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो से ख़ुफ़िया मुलाक़ात की है। इसरायली प्रधानमंत्री का सऊदी अरब जाना अपने आप में महत्वपूर्ण परिघटना है। इसराइली मीडिया ने हवाई जहाज़ की उड़ानों को ट्रैक करने वाले डेटा के आधार पर दावा किया है कि नेतन्याहू जिस हवाई जहाज का इस्तेमाल करते हैं, वह सऊदी अरब के शहर नियोम गया था जहां क्राउन प्रिंस और पॉम्पियो पहले से मौजूद थे। इन खबरों के प्रकाशन के बाद सऊदी अरब के विदेशमंत्री शहज़ादा फैज़ल बिन फरहान ने ट्वीट किया कि ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई। जो मुलाकात हुई भी, उसमें केवल अमेरिकी और सऊदी अधिकारी उपस्थित थे। अलबत्ता यह सवाल जरूर उठेगा कि फिर इसरायल से आए उस विमान में कौन था? सवाल यह भी है कि ट्रंप प्रशासन अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में यह सब क्या कर रहा है?

ट्रंपोत्तर दुनिया में कैसा होगा बिडेन का अमेरिका?

अमेरिका में चुनाव के बाद पहली बार डोनाल्ड ट्रंप कुछ भाषणों और ट्वीटों से संकेत मिला है कि उन्होंने अपनी हार भले ही न स्वीकार की हो, पर यह मान लिया है कि अगली सरकार उनकी नहीं होगी। अलबत्ता उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि अगली सरकार किसकी होगी। बहरहाल उन्होंने जो बिडेन का नाम नहीं लिया। ट्रंप की पराजय क्यों हुई और वे हार नहीं मान रहे हैं, तो इसके पीछे कारण क्या हैं, ऐसे विषयों को छोड़कर हमें आगे बढ़ना चाहिए।

अब यह देखने का वक्त है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन की नीतियाँ क्या होंगी। और यह भी कि वे भारतीय नजरिए से कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे। साबित होंगे या नहीं, यह बाद में पता लगेगा, पर वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं। बराक ओबामा के कार्यकाल में जो बिडेन उपराष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उपराष्ट्रपति के रूप में भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’ यह सपना अब पूरा हो रहा है।

Sunday, November 22, 2020

‘लव जिहाद’ प्रेम नहीं, राजनीति

देश में भाजपा-शासित कम से कम पाँच राज्यों ने धर्मांतरण के लिए किए जा रहे अंतर-धर्म विवाहों यानी लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर ली है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और असम ने इसमें पहल की है और संभव है कि कुछ और राज्यों के नाम सामने आएं। इन कानूनों की परिणति क्या होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है, पर इतना साफ लगता है कि अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा।

सिद्धांततः अंतर-धर्म विवाहों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है, पर यह बहस विवाह की नहीं धर्मांतरण की है। अंतर-धर्म विवाहों का यह झगड़ा आज का नहीं है। यह उन्नीसवीं सदी से चला आ रहा है। यह मामला केवल भाजपा-शासित राज्य उठा रहे हैं, दूसरी तरफ राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने इस किस्म के कानून की संभावनाओं को अनुचित ठहराया है। देखना होगा कि राजनीतिक दल जनता तक इसका संदेश किस रूप में ले जाते हैं।

Saturday, November 21, 2020

भारतीय नेवीगेशन सिस्टम को वैश्विक मान्यता


गत 11 नवंबर को इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) ने भारत के इंडिपेंडेंट रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) को वर्ल्ड वाइड रेडियो नेवीगेशन सिस्टम (डब्लूडब्लूआरएनएस) के अंग के रूप में मान्यता देकर भारत को इस क्षमता वाले चौथे देश के रूप में मान्यता दे दी। अब हमारी नेवीगेशन देश की सीमा के बाहर 1500 किलोमीटर तक जीपीएस का स्थान ले सकती है। भारत को यह मान्यता मिलने में करीब दो साल का समय लगा। भारत के जहाजरानी महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल, शिपिंग) अमिताभ कुमार के अनुसार अब भारतीय समुद्र के आसपास से गुजरने वाले पोत ज्यादा आधुनिक और ज्यादा सही नेवीगेशन प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं।
आईआरएनएसएस भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित स्‍वतंत्र क्षेत्रीय मार्ग निर्देशन तंत्र है। इसे न केवल भारतीय प्रयोक्ताओं बल्कि अपनी सीमा के बाहर 1500 किमी के दायरे, में आनेवाले सभी क्षेत्रों में सटीक स्थिति संबंधित सूचनाएं उपलब्‍ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है। यह इसका मूल सेवा क्षेत्र है। इसका विस्तारित क्षेत्र मूल सेवा क्षेत्र तथा 30 डिग्री दाक्षिण से 50 डिग्री उत्तरी अक्षांश  तथा 30 डिग्री पूर्व से 130 डिग्री पूर्व देशांतर में अवरत चतुर्भुज के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।