बीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत कोरोना वायरस जैसी दुखद
घटना के साथ हुई है। जिस देश से इसकी शुरुआत हुई थी, उसने हालांकि बहुत जल्दी इससे
छुटकारा पा लिया, पर उसके सामने दो परीक्षाएं हैं। पहली महामारी के आर्थिक
परिणामों से जुड़ी है और दूसरी है राजनीतिक नेतृत्व की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने
इस वायरस को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ‘बड़ी परीक्षा’ बताया है। वहाँ उद्योग-व्यापार
फिर से चालू हो गए हैं, पर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है, जिसपर
चीनी अर्थव्यवस्था टिकी है। सवाल है कि चीनी माल की वैश्विक माँग क्या अब भी वैसी
ही रहेगी, जैसी इस संकट के पहले थी?
Monday, April 13, 2020
Sunday, April 12, 2020
‘विश्व-बंधु’ भारत
वेदवाक्य है, ‘यत्र
विश्वं भवत्येक नीडम। ’यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘ग्लोबल विलेज’ जैसे रूपकों से कहीं
व्यापक है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त या ‘पृथ्वी सूक्त’ से पता लगता है कि हमारी
विश्व-दृष्टि कितनी विषद और विस्तृत है। आज पृथ्वी कोरोना संकट से घिरी है। ऐसे
में एक तरफ वैश्विक नेतृत्व और सहयोग की परीक्षा है। यह घड़ी भारतीय जन-मन और उसके
नेतृत्व के धैर्य, संतुलन और विश्व बंधुत्व से आबद्ध हमारे सनातन मूल्यों की
परीक्षा भी है। हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के प्रवर्तक और समर्थ हैं। यह बात
कोरोना के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष से सिद्ध हो रही है।
हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर आत्मबल असीमित है, जो किसी भी युद्ध में विजय
पाने की अनिवार्य शर्त है। पिछले कुछ समय ने भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर
पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। कोरोना पर विजय के लिए अलग-अलग मोर्चे
हैं। एक मोर्चा है ‘निवारण’ या निषेध का। अर्थात वायरस के
लपेटे में आने से लोगों को बचाना। दूसरा मोर्चा है चिकित्सा का, तीसरा मोर्चा है
उपयुक्त औषधि तथा उपकरणों की खोज का और इस त्रासदी के कारण आर्थिक रूप से संकट में
फँसे बड़ी संख्या में लोगों को संरक्षण देने का चौथा मोर्चा है। इनके अलावा भी
अनेक मोर्चों पर हमें इस युद्ध को लड़ना है। इसपर विजय के बाद वैश्विक पुनर्वास की
अगली लड़ाई शुरू होगी। उसमें भी हमारी बड़ी भूमिका होगी।
एक परीक्षा, एक अवसर
यह भारत की परीक्षा है, साथ ही अपनी सामर्थ्य दिखाने का एक अवसर भी। गत 13
मार्च को जब नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई के लिए दक्षेस देशों को सम्मेलन का
आह्वान किया था, तबतक विश्व के किसी भी नेता के दिमाग में यह बात नहीं थी इस
सिलसिले में क्षेत्रीय या वैश्विक सहयोग भी सम्भव है। ज्यादातर देश इसे अपने देश
की लड़ाई मानकर चल रहे थे। इस हफ्ते प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ में माइकल कुगलमैन ने अपने आलेख में इस बात को
रेखांकित किया है कि नरेंद्र मोदी एक तरफ अपने देश में इस लड़ाई को जीतने में
अग्रणी साबित होना चाहते हैं, साथ ही भारत को एक नई ऊँचाई पर स्थापित करना चाहते
हैं।
लॉकडाउन के किन्तु-परन्तु
आगामी मंगलवार
यानी 14 अप्रैल को तीन हफ्ते के लॉकडाउन की अवधि
समाप्त हो जाएगी। ओडिशा और पंजाब समेत कुछ राज्यों ने इसे बढ़ाने की घोषणा पहले ही
कर दी है। शनिवार को प्रधानमंत्री के साथ हुई वार्ता
में इस बारे में करीब-करीब आम सहमति थी कि लॉकडाउन कम से कम दो हफ्ते के लिए
बढ़ाना चाहिए। बड़ी संख्या में राज्यों ने,
बल्कि लगभग सभी ने
इसे आगे बढ़ाने की सलाह दी है। दूसरी तरफ एक सोशल मीडिया सर्वे में 63 फीसदी लोगों की राय थी कि कुछ प्रतिबंधों को कायम रखते हुए
लॉकडाउन को खत्म करना चाहिए। इस सर्वे में तकरीबन 26,000 लोगों ने ऑनलाइन
हिस्सा लिया। लॉकडाउन को ख़त्म करने की बात अर्थशास्त्री कह रहे हैं, जबकि चिकित्सकों की सलाह है कि इसे आगे बढ़ाना चाहिए। बहरहाल
केंद्र सरकार की औपचारिक घोषणा का इंतजार करना चाहिए। यह तो स्पष्ट लग रहा है कि
लॉकडाउन बढ़ेगा, पर किसी न किसी स्तर पर ढील भी दी जाएगी।
Thursday, April 9, 2020
अभी तक सफल है भारतीय रणनीति
हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी
होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने
दिया है. आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए हमारे देश को लेकर जो
अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हुआ है. पर क्या पिछले एक हफ्ते की तेजी के
बावजूद आने वाले समय में भी गलत साबित होगा? यकीनन हमें सफलता मिल
रही है. तथ्य इस बात की गवाही दे रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन तैयार नहीं है, पर
जिन लोगों ने इस बीमारी पर विजय पाई है, अब उनके शरीर में जो एंटीबॉडी तैयार हो गई
हैं, वे मरीजों के इलाज में काम आएंगी.
गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75,
इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130. एक महीने बाद 1
अप्रेल को भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः
2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी. भारत में लॉकडाउन
शुरू होने के बाद यह संख्या स्थिर होती नजर आ रही थी, पर पिछले एक हफ्ते में यह
संख्या तेजी से बढ़ी है और अब पाँच हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी. पिछले
तीन-चार दिन की संख्या का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह तेजी थमी है.
Monday, April 6, 2020
इस संकट का सूत्रधार चीन
पिछले तीन महीनों में दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक और
आर्थिक व्यवस्था में भारी फेरबदल हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कोविड-19
नाम की बीमारी है, जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी। अमेरिका, इटली और यूरोप के तमाम
देशों के साथ भारत और तमाम विकासशील देशों में लॉकआउट चल रहा है। अर्थव्यवस्था
रसातल में पहुँच रही है, गरीबों का जीवन प्रभावित हो रहा है। हजारों लोग मौत के
मुँह में जा चुके हैं और लाखों बीमार हैं। कौन है इसका जिम्मेदार? किसे इसका दोष दें? पहली नजर में
चीन।
हालांकि दावा किया जा रहा है कि चीन से यह बीमारी अब खत्म
हो चुकी है, पर इस बीमारी की वजह से उसकी साख मिट्टी में मिल गई है। सवाल यह है कि
क्या इस बीमारी का प्रभाव उसकी औद्योगिक बुनियाद पर पड़ेगा? दुनिया का नेतृत्व करने के उसके हौसलों को धक्का लगेगा? पहली नजर में उसकी
छवि एक गैर-जिम्मेदार देश के रूप में बनकर उभरी है। पर क्या इसकी कीमत उससे वसूली
जा सकेगी? शायद भौतिक रूप में इसकी
भरपाई न हो पाए, पर चीन के वैश्विक प्रभाव में अब भारी गिरावट देखने को मिलेगा।
चीन ने सुरक्षा परिषद से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक अपने रसूख का इस्तेमाल
करके जो दबदबा बना लिया है उसकी हवा निकलना जरूर सुनिश्चित लगता है।
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