आगामी मंगलवार
यानी 14 अप्रैल को तीन हफ्ते के लॉकडाउन की अवधि
समाप्त हो जाएगी। ओडिशा और पंजाब समेत कुछ राज्यों ने इसे बढ़ाने की घोषणा पहले ही
कर दी है। शनिवार को प्रधानमंत्री के साथ हुई वार्ता
में इस बारे में करीब-करीब आम सहमति थी कि लॉकडाउन कम से कम दो हफ्ते के लिए
बढ़ाना चाहिए। बड़ी संख्या में राज्यों ने,
बल्कि लगभग सभी ने
इसे आगे बढ़ाने की सलाह दी है। दूसरी तरफ एक सोशल मीडिया सर्वे में 63 फीसदी लोगों की राय थी कि कुछ प्रतिबंधों को कायम रखते हुए
लॉकडाउन को खत्म करना चाहिए। इस सर्वे में तकरीबन 26,000 लोगों ने ऑनलाइन
हिस्सा लिया। लॉकडाउन को ख़त्म करने की बात अर्थशास्त्री कह रहे हैं, जबकि चिकित्सकों की सलाह है कि इसे आगे बढ़ाना चाहिए। बहरहाल
केंद्र सरकार की औपचारिक घोषणा का इंतजार करना चाहिए। यह तो स्पष्ट लग रहा है कि
लॉकडाउन बढ़ेगा, पर किसी न किसी स्तर पर ढील भी दी जाएगी।
Sunday, April 12, 2020
Thursday, April 9, 2020
अभी तक सफल है भारतीय रणनीति
हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी
होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने
दिया है. आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए हमारे देश को लेकर जो
अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हुआ है. पर क्या पिछले एक हफ्ते की तेजी के
बावजूद आने वाले समय में भी गलत साबित होगा? यकीनन हमें सफलता मिल
रही है. तथ्य इस बात की गवाही दे रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन तैयार नहीं है, पर
जिन लोगों ने इस बीमारी पर विजय पाई है, अब उनके शरीर में जो एंटीबॉडी तैयार हो गई
हैं, वे मरीजों के इलाज में काम आएंगी.
गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75,
इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130. एक महीने बाद 1
अप्रेल को भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः
2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी. भारत में लॉकडाउन
शुरू होने के बाद यह संख्या स्थिर होती नजर आ रही थी, पर पिछले एक हफ्ते में यह
संख्या तेजी से बढ़ी है और अब पाँच हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी. पिछले
तीन-चार दिन की संख्या का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह तेजी थमी है.
Monday, April 6, 2020
इस संकट का सूत्रधार चीन
पिछले तीन महीनों में दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक और
आर्थिक व्यवस्था में भारी फेरबदल हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कोविड-19
नाम की बीमारी है, जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी। अमेरिका, इटली और यूरोप के तमाम
देशों के साथ भारत और तमाम विकासशील देशों में लॉकआउट चल रहा है। अर्थव्यवस्था
रसातल में पहुँच रही है, गरीबों का जीवन प्रभावित हो रहा है। हजारों लोग मौत के
मुँह में जा चुके हैं और लाखों बीमार हैं। कौन है इसका जिम्मेदार? किसे इसका दोष दें? पहली नजर में
चीन।
हालांकि दावा किया जा रहा है कि चीन से यह बीमारी अब खत्म
हो चुकी है, पर इस बीमारी की वजह से उसकी साख मिट्टी में मिल गई है। सवाल यह है कि
क्या इस बीमारी का प्रभाव उसकी औद्योगिक बुनियाद पर पड़ेगा? दुनिया का नेतृत्व करने के उसके हौसलों को धक्का लगेगा? पहली नजर में उसकी
छवि एक गैर-जिम्मेदार देश के रूप में बनकर उभरी है। पर क्या इसकी कीमत उससे वसूली
जा सकेगी? शायद भौतिक रूप में इसकी
भरपाई न हो पाए, पर चीन के वैश्विक प्रभाव में अब भारी गिरावट देखने को मिलेगा।
चीन ने सुरक्षा परिषद से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक अपने रसूख का इस्तेमाल
करके जो दबदबा बना लिया है उसकी हवा निकलना जरूर सुनिश्चित लगता है।
Sunday, April 5, 2020
कोरोना ‘इंफोडेमिक’ उर्फ नए ज़माने की जंग
दुनियाभर में
दहशत का कारण बनी कोविड-19 बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी में एक
नए सूचना प्लेटफॉर्म ‘डब्लूएचओ इनफॉर्मेशन
नेटवर्क फॉर एपिडेमिक्स (एपी-विन)’ का उद्घाटन किया। इस मौके पर डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस गैब्रेसस ने
कहा, बीमारी के साथ-साथ दुनिया में गलत सूचनाओं की महामारी भी फैल रही है। हम केवल
‘पैंडेमिक’ (महामारी) से नहीं ‘इंफोडेमिक’ से भी लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया के उदय
के बाद दुनिया के हर विषय पर सूचना की बाढ़ है। इस बाढ़ में सच्ची-झूठी हर तरह की
जानकारियाँ हैं। इसी बाढ़ में उतरा रही है अगले कुछ महीनों में उपस्थित होने वाली
वैश्विक राजनीति की झलकियाँ। इंफोडेमिक से लड़ने का दावा करने वाले टेड्रॉस महाशय
खुद विवाद का विषय बने हुए हैं।
ठान लेंगे तो कामयाब भी होंगे ‘हम’
संयुक्त राष्ट्र और
उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21
दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्त’
बताते हुए उसकी तारीफ
की है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख
टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना
की है। भारत के इन कदमों से प्रेरित होकर विश्व बैंक ने एक अरब डॉलर की विशेष
सहायता की घोषणा की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने देश में
जारी लॉकडाउन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों
ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम
हुआ। भारत में गर्म मौसम और मलेरिया के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है
और उम्मीद है कि वे कोरोना को हरा देंगे।
हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी
होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने
दिया है। इस देश की आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए जो अंदेशा
था, वह काफी हद तक गलत साबित हो रहा है। यह बात तथ्यों से साबित हो रही है। गत 1
मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में
170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130। एक महीने बाद भारत में यह
संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574,
1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी। भारत में पिछले एक हफ्ते में यह संख्या
तेजी से बढ़ी है और अब तीन हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी।
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