Saturday, December 28, 2019

अपने जन्मदिन पर असमंजस में कांग्रेस


आज 28 दिसंबर को कांग्रेस पार्टी अपना 135 वाँ जन्मदिन मना रही है। जो पार्टी को देश के राष्ट्रीय आंदोलन के संचालन का श्रेय दिया जाता है, वह आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है। हालांकि झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी का उत्साह बढ़ा दिया है, पर सच यह है कि वहाँ वह झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी के रूप में खड़ी है। बहरहाल इस सफलता से उत्साहित पार्टी के नेता कई तरह के दावे कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का पराभव शुरू हो गया है और कांग्रेस की वापसी में ज्यादा देर नहीं है। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के अंदेशों से पैदा हुए प्रतिरोधी स्वरों ने पार्टी के उत्साह को और बढ़ाया है। 
हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम पार्टी के आत्मविश्वास का आधार बने हैं। ऐसे में पार्टी के एक तबके ने फिर से माँग शुरू कर दी है कि राहुल गांधी को वापस लाओ। यहीं से इस पार्टी के अंतर्विरोधों की कहानी शुरू होती है। पार्टी का सबसे बड़ा एजेंडा आज भी यही है कि किसी तरह से राहुल गांधी को लाओ। पिछले हफ्ते पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक इंटरव्यू में कहा कि यह हमारे लिए संकट की घड़ी है। कोई जादू की छड़ी हमारी पार्टी का उद्धार करने वाली नहीं है।

Wednesday, December 25, 2019

चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ से जुड़ी चुनौतियाँ


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में रक्षा-व्यवस्था को लेकर एक बड़ी घोषणा की थी. उन्होंने कहा कि देश के पहले ‘चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस)’ की जल्द नियुक्ति की जाएगी. यह भी कहा कि सीडीएस थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच तालमेल सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देगा. नियुक्ति की वह घड़ी नजदीक आ गई है. मंगलवार को कैबिनेट ने इस पद को अपनी स्वीकृति भी दे दी. इस महीने के अंत में 31 दिसंबर को भारतीय सेना के वर्तमान सह-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत से कार्यभार संभालेंगे, जो उस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
इस नियुक्ति के बाद देखना होगा कि तीनों सेनाओं के लिए घोषित शिखर पद सीडीएस के रूप में किसकी नियुक्ति होगी. आमतौर पर इस पद के लिए निवृत्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का नाम लिया जा रहा है. सीडीएस के रूप में उपयुक्त पात्र का चयन करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक क्रियान्वयन समिति का गठन किया था. इस समिति ने अपनी सिफारिशें रक्षा मामलों से संबद्ध कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) को सौंप दी हैं.

Monday, December 23, 2019

नागरिकता कानून ने भारत की वैश्विक छवि बिगाड़ी


मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई इलाकों में रोष व्यक्त किया जा रहा है। सामाजिक जीवन में कड़वाहट पैदा हो रही है और कई तरह के अंतर्विरोध जन्म ले रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को लेकर सवाल हैं। इन सबके साथ वैश्विक स्तर पर देश की छवि का सवाल भी जन्म ले रहा है। भारत और भारतीय समाज की उदार, सहिष्णु और बहुलता की संरक्षक छवि को ठेस लगी है। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे की यात्रा स्थगित होने के बड़े राजनयिक निहितार्थ भले ही न हों, बांग्लादेश और पाकिस्तान की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और पश्चिमी देशों के मीडिया की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। भारत की उदार और प्रबुद्ध लोकतंत्र की छवि को बनाने में इनकी प्रमुख भूमिका है।
नागरिकता कानून में संशोधन के बाद कुछ अमेरिकी सांसदों ने काफी कड़वी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राज्यसभा से कानून पास होने के कुछ समय बाद ही अमेरिकी सांसद आंद्रे कार्सन ने बयान जारी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और इस कानून को ड्रैकोनियन बताया और कहा कि इसके कारण भारत में मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट और अल जज़ीरा ने आलोचनात्मक टिप्पणियाँ कीं हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता ने कहा कि भारत के इस कानून पर संयुक्त राष्ट्र की निगाहें भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के कुछ बुनियादी आदर्श हैं और हम मानते हैं कि मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र से प्रतिपादित उद्देश्यों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

Sunday, December 22, 2019

क्यों डरा रहे हैं मुसलमानों को?


तीन तरह की ताकतें मुसलमानों को डरा रहीं हैं। एक, सत्ता की राजनीति। इसमें दोनों तरह के राजनीतिक दल शामिल हैं। जो सत्ता में हैं और जो सत्ता हासिल करना चाहते हैं। दूसरे, मुसलमानों के बीच अपने नेतृत्व को कायम करने की कोशिश करने वाले लोग। और तीसरे कुछ न्यस्त स्वार्थी तत्व, जिनका हित अराजकता पैदा करने से सधता है। समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के बाद ये लोग अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन अचानक शुरू हुआ। और अब दिल्ली और उत्तर प्रदेश में एक लहर सी उठी है, जिसमें आधिकारिक रूप से 6 और गैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई है। असम और पूर्वोत्तर के आंदोलनों के पीछे के कारण वही नहीं हैं, जो दिल्ली, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में नजर आ रहे हैं। यह आंदोलन मुसलमानों के मन में भय बैठाकर खड़ा किया गया है। उन्हें भरोसा दिलाने की जरूरत है कि उनका अहित नहीं होगा। पर उन्हें डराया गया है। कहीं न कहीं राजनीतिक ताकतें सक्रिय हैं। क्या वजह है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्य प्रदेश में आंदोलन खड़े नहीं हुए?
भारत के मुसलमानों की हिफाजत की जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की है। उनके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए, पर यह भी देखना होगा कि कोई ताकत है, जो हमें भीतर से कमजोर करना चाहती है। क्या वजह है कि जो आंदोलनकारी नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता रजिस्टर के बारे में कुछ नहीं जानते, वे रटी-रटाई बातें बोल रहे हैं कि सीएए+एनआरसी से मुसलमानों को खतरा है। शुक्रवार को दिन में जब मीडिया प्रतिनिधि दिल्ली में जामा मस्जिद के पास जमा भीड़ से बात कर रहे थे, तब लोग कह रहे थे कि 370 हटाया गया, हमसे तीन तलाक छीन लिया गया और बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया गया। अब हमें निकालने की साजिश की जा रही है।

Saturday, December 21, 2019

सार्वजनिक उद्योगों के पास खाली क्यों पड़ी है इतनी जमीन?


अर्थव्यवस्था को ठीक बनाए रखने और औद्योगिक संवृद्धि को तेज करने के इरादे से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के विनिवेश  में तेजी लाने का फैसला किया है। इसके साथ-साथ सरकार ने नौ सार्वजनिक उद्योगों की जमीन और भवनों को बेचने का कार्यक्रम भी बनाया है। देश के सार्वजनिक उद्योगों के पास काफी जमीन पड़ी है, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सरकार के पास भी शायद इस बात की पूरी जानकारी भी नहीं है कि कितनी जमीन इन उद्योगों के पास है। अब इस संपदा को बेचने के लिए सरकार वैश्विक कंपनियों की सलाह ले रही है।
कानपुर को औद्योगिक कब्रिस्तान कहा जाता है। आप शहर से गुजरें तो जगह-जगह बंद पड़े परिसर नजर आएंगे। यह जगह कभी गुलज़ार रहा करती थी। शहर के बंद पड़े सार्वजनिक उद्योगों, मुम्बई के वस्त्र उद्योग और बेंगलुरु के एचएमटी इलाके में ऐसी खाली जमीन को देखा जा सकता है। देश के अनेक शहरों में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। अक्तूबर 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के पास 13,505 वर्ग किलोमीटर जमीन है। भूमि का यह परिमाण दिल्ली के क्षेत्रफल (1.483 वर्ग किलोमीटर) का नौगुना है। देश के 51 केंद्रीय मंत्रालयों में से 41 और 300 से ऊपर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में से 22 से प्राप्त विवरणों पर यह जानकारी आधारित थी।