कोलकाता में बीजेपी रैली के दौरान हुए उत्पात और ईश्वर चंद्र विद्यासागर कॉलेज में हुई हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार है और प्रतिमा किसने तोड़ी, ऐसे सवालों पर बहस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचने वाली है। इस प्रकरण से दो बातें स्पष्ट हुई हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस का काफी कुछ दाँव पर लगा है। दूसरे यह कि पिछले कुछ वर्षों से राज्य में चल रही तृणमूल की बाहुबली राजनीति का जवाब बीजेपी ही दे सकती है। यों मोदी विरोधी मानते हैं कि बीजेपी को रोकने की सामर्थ्य ममता बनर्जी में ही है। किसमें कितनी सामर्थ्य है, इसका पता 23 मई को लगेगा। पर ममता को भी अपने व्यक्तित्व को लेकर आत्ममंथन करना चाहिए।
ममता बनर्जी पिछले दो वर्षों से राष्ट्रीय क्षितिज पर आगे आने का प्रयत्न कर रही हैं। सन 2016 में उन्होंने ही सबसे पहले नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था। कांग्रेस ने उनका अनुगमन ही किया। राष्ट्रीय परिघटनाओं पर सबसे पहले उनकी प्रतिक्रिया आती है। दिल्ली की रैलियों में वे शामिल होती हैं, पर सावधानी के साथ। व्यक्तिगत रूप से वे उन आंदोलनों में शामिल होती है, जिनका नेतृत्व उनके पास होता है। कांग्रेसी नेतृत्व वाले आंदोलनों में खुद जाने के बजाय अपने किसी सहयोगी को भेजती हैं।
ममता बनर्जी पिछले दो वर्षों से राष्ट्रीय क्षितिज पर आगे आने का प्रयत्न कर रही हैं। सन 2016 में उन्होंने ही सबसे पहले नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था। कांग्रेस ने उनका अनुगमन ही किया। राष्ट्रीय परिघटनाओं पर सबसे पहले उनकी प्रतिक्रिया आती है। दिल्ली की रैलियों में वे शामिल होती हैं, पर सावधानी के साथ। व्यक्तिगत रूप से वे उन आंदोलनों में शामिल होती है, जिनका नेतृत्व उनके पास होता है। कांग्रेसी नेतृत्व वाले आंदोलनों में खुद जाने के बजाय अपने किसी सहयोगी को भेजती हैं।