मोदी सरकार ने चुनाव के ठीक पहले ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के लिए आरक्षण का प्रस्ताव पास करके राजनीतिक धमाका
किया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि सवर्ण हिन्दू जातियों के बीच पार्टी का
जनाधार हाल में कमजोर हो रहा था। पिछले दिनों अजा-जजा एक्ट में संशोधन के कारण यह
वर्ग पार्टी से नाराज था। मध्य प्रदेश में इसका असर खासतौर से देखने को मिला। एक
नया दल सपाक्स खड़ा हो गया। ‘वोट फॉर नोटा’ का नारा दिया गया। आंदोलन
की गूँज उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में भी सुनी गई। सवाल है कि क्या सरकार का यह
फैसला इसी रोष को कम करने लिए है या कुछ और है? सरकार इस बहाने क्या आरक्षण
पर बहस को शुरू करना चाहती है? लाख टके का सवाल यह है कि क्या इससे भाजपा के पक्ष में लहरें
पैदा होंगी?
Friday, January 11, 2019
Monday, January 7, 2019
राफेल से जुड़े वाजिब सवाल
दुनिया में रक्षा-उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक भारत है.
हमारी साठ फीसदी से ज्यादा रक्षा-सामग्री विदेशी है. स्वदेशी रक्षा-उद्योग के पिछड़ने
की जिम्मेदारी राजनीति पर भी है. सार्वजनिक रक्षा-उद्योगों ने निजी क्षेत्र को
दबाकर रखा. सरकारी नीतियों ने इस इजारेदारी को बढ़ावा दिया. सन 1962 में चीनी हमले
के बाद से देश का रक्षा-व्यय बढ़ा और आयात भी. नौसेना ने स्वदेशी तकनीक का रास्ता
पकड़ा, पर वायुसेना ने विदेशी विमानों को पसंद किया. इस वजह से एचएफ-24 मरुत विमान
का कार्यक्रम फेल हुआ. हम इंजन के विकास पर निवेश नहीं कर पाए.
राजनीतिक शोर नहीं होता, तो शायद हम राफेल पर भी बात
नहीं करते. चुनाव करीब हैं, इसलिए यह शोर है. अरुण जेटली ने कहा है कि कांग्रेस उस घोटाले को गढ़ रही है, जो हुआ ही नहीं. शायद
कांग्रेस को
लगता है कि जितना मामले को उछालेंगे, लोगों को लगेगा कि कुछ न कुछ बात जरूर है. जरूरी
है कि इसकी राजनीति से बाहर निकलकर इसे समझा जाए.
Sunday, January 6, 2019
राजनीतिक फुटबॉल बना राफेल
कांग्रेस
पार्टी कह रही है कि राफेल मामले में घोटाला हुआ है और सरकार कह रही है कि
कांग्रेस ‘घोटाले को गढ़ने का काम’ कर रही है। ऐसा घोटाला, जो
हुआ ही नहीं। यह मामला रोचक हो गया है। शायद राफेल प्रकरण पर कांग्रेस की काफी
उम्मीदें टिकी हैं। पर क्या उसे सफलता मिलेगी?
शुक्रवार को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने गोपनीयता का हवाला देते
हुए कुछ बातों की सफाई भी दी है। फिर भी लगता नहीं कि कांग्रेस इन स्पष्टीकरणों से
संतुष्ट है या होगी। संदेह जितना घना होगा, उतना उसे लाभ मिलेगा। उधर निर्मला सीतारमण ने कहा कि बोफोर्स के कारण
कांग्रेस सरकार चुनाव हारी थी और देशहित में हुए राफेल सौदे के कारण बीजेपी फिर से
जीत कर आएगी। क्या यह मामला केवल चुनाव जीतने या हारने का है? देश की सुरक्षा पर भी राजनीति!
राहुल
गांधी का कहना है कि इस मसले का ‘की पॉइंट’ है एचएएल के बजाय अम्बानी की फर्म को
ऑफसेट ठेका मिलना। उन्हें बताना चाहिए कि यह ‘की पॉइंट’ क्यों है? क्या
एचएएल ऑफसेट की लाइन में था? या अम्बानी को विमान बनाने का लाइसेंस मिल गया
है? क्या दोनों के बीच प्रतियोगिता थी? सवाल यह भी है कि रिलायंस को क्या मिला? 30,000
करोड़ का या छह-सात सौ करोड़ का ऑफसेट ठेका?
जैसा कि बुधवार को वित्तमंत्री अरुण
जेटली ने संसद में बताया था। मिला भी तो किसने दिया? सरकार ने या विमान कम्पनी दासो ने?
Saturday, January 5, 2019
कांग्रेस के इम्तिहान का साल
इस
हफ्ते संसद में और संसद के बाहर राहुल गांधी के तीखे तेवरों को देखने से लगता है
कि कांग्रेस पार्टी का आत्मविश्वास लौट रहा है। उसके समर्थकों और कार्यकर्ताओं के
भीतर आशा का संचार हुआ है। इसे आत्मविश्वास कह सकते हैं या आत्मविश्वास प्रकट करने
की रणनीति भी कह सकते हैं, क्योंकि पार्टी को वोटर के समर्थन के पहले
पार्टी-कार्यकर्ता के विश्वास की जरूरत भी है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश
में सत्ता पर वापसी ने न केवल आत्मविश्वास बढ़ाया है, बल्कि संसाधनों का रास्ता भी
खोला है। पर लोकसभा-चुनाव केवल सत्ता में वापसी के लिहाज से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय
राजनीति को परिभाषित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सवाल है कि कांग्रेस के पास दीर्घकालीन राजनीति की कोई समझ है या
केवल राजकुमार को सिंहासन पर बैठाने की मनोकामना लेकर वह आगे बढ़ रही है?
इस
साल लोकसभा के अलावा आठ विधानसभाओं के चुनाव भी होने वाले हैं। इनमें आंध्र,
जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में खासतौर से कांग्रेस की दिलचस्पी
है। पार्टी चाहती है कि सन 2019 का वर्ष उसकी राजनीति को निर्णायक मोड़ दे। यह
असम्भव भी नहीं है, तमाम किन्तु-परन्तुओं के बावजूद।
Wednesday, January 2, 2019
सेमी-फाइनल साल के सियासी-पेचोख़म
भारतीय
राजनीति के नज़रिए से 2018 सेमी-फाइनल वर्ष था। फाइनल के पहले का साल। पाँच साल की
जिस चक्रीय-व्यवस्था से हमारा लोकतंत्र चलता है, उसमें हर साल और हर दिन का अपना
महत्व है। पूरे साल का आकलन करें, तो पाएंगे कि यह कांग्रेस के उभार और बीजेपी के
बढ़ते पराभव का साल था। फिर भी न तो यह कांग्रेस को पूरी विजय देकर गया और न
बीजेपी को निर्णायक पराजय। काफी संशय बाकी हैं। गारंटी नहीं कि फाइनल वर्ष कैसा
होगा। कौन अर्श पर होगा और कौन फर्श पर।
इस
साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए और कुछ महत्वपूर्ण उपचुनाव हुए, जिनसे 2019
के राजनीतिक फॉर्मूलों की तस्वीर साफ हुई। राज्यसभा के चुनावों ने उच्च सदन में
कांग्रेस के बचे-खुचे वर्चस्व को खत्म कर दिया। सदन के उप-सभापति के चुनाव में
विरोधी दलों की एकता को एक बड़े झटके का सामना करना पड़ा। राजनीतिक गतिविधियों के
बीच न्यायपालिका के कुछ प्रसंगों ने इस साल ध्यान खींचा। हाईकोर्ट जजों की
नियुक्ति, ट्रिपल तलाक, आधार की अनिवार्यता, समलैंगिकता को अपराध के बाहर करना, जज लोया, अयोध्या में
मंदिर और राफेल विमान सौदे से जुड़े मामलों के कारण न्यायपालिका पूरे साल खबरों
में रही। असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर अदालत में और उसके
बाहर भी गहमागहमी रही और अभी चलेगी।
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