देश की राजनीति में
बीजेपी के विकल्प की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व
में कांग्रेस उस विकल्प को देने की दिशा में उत्सुक भी लगती है। कांग्रेस का यह
उत्साह 2019 के चुनाव तक बना भी रहेगा या नहीं, अभी यह कहना मुश्किल है। पार्टी ने
अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है, जिससे लगे कि अब उसकी बारी है। संसद के
शीतसत्र में ऐसा नया कुछ नहीं हुआ, जिससे लगे कि यह बदली हुई कांग्रेस पार्टी है।
पार्टी ने शीत सत्र देर से बुलाने को लेकर सत्तारूढ़ पक्ष पर जोरदार प्रहार किए
थे। यदि यह सत्र एक महीने पहले भी हो जाता तो कांग्रेस किन बातों को उठाती?
कांग्रेस ने गुजरात चुनाव
के दौरान नरेन्द्र मोदी के एक बयान को लेकर संसद में जो गतिरोध पैदा किया, उससे लगता
नहीं कि कांग्रेस की किसी ‘चमकदार राजनीति’ का राष्ट्रीय मंच पर उदय
होने वाला है। शीत सत्र में संसद के दोनों सदनों का काफी समय नष्ट हुआ। पीआरएस
रसर्च के अनुसार इसबार के शीत सत्र में लोकसभा के लिए निर्धारित समय में से 60.9
फीसदी और राज्यसभा में 40.9 फीसदी समय में काम हुआ। इस वक्त भी राज्यसभा में
कांग्रेस और विपक्ष का दबदबा है। समय का सदुपयोग नहीं हो पाने का मतलब है कि
ज्यादातर समय विरोध व्यक्त करने में खर्च हुआ। दोनों सदनों की उत्पादकता क्रमशः 78
और 54 फीसदी रही।