करेंट सा झटका
इस
साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड एच
थेलर को दिया गया है. उनका ज्यादातर काम सामान्य लोगों के आर्थिक फैसलों को लेकर
है. अक्सर लोगों के फैसले आर्थिक सिद्धांत पर खरे नहीं होते. उन्हें रास्ता बताना
पड़ता है. इसे अंग्रेजी में ‘नज’ कहते हैं. इंगित या आश्वस्त करना. पिछले साल
जब नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की, तब प्रो थेलर ने इस कदम का स्वागत किया
था. जब उन्हें पता लगा कि 2000 रुपये का नोट शुरू किया जा रहा है, तो उन्होंने
कहा, यह गलत है. नोटबंदी को सही या गलत साबित करने वाले लोग इस बात के दोनों मतलब
निकाल रहे हैं.
सौ
साल पहले हुई ‘बोल्शेविक क्रांति’ को लेकर आज भी अपने-अपने निष्कर्ष हैं.
वैसे ही निष्कर्ष नोटबंदी को लेकर हैं. वैश्विक
इतिहास का यह अपने किस्म का सबसे बड़ा और जोखिमों के कारण सबसे ‘बोल्ड’ फैसला था. अरुण शौरी कहते हैं कि ‘बोल्ड’ फैसला आत्महत्या का भी होता है. पर यह आत्महत्या नहीं थी. हमारी अर्थव्यवस्था
जीवित है. पचास दिन में हालात काबू में नहीं आए, पर आए.