सोशल
मीडिया सेल की जिम्मेदारी रम्या उर्फ दिव्य स्पंदना को मिल जाने के बाद से
कांग्रेस के प्रचार में जान पड़ गई है। हाल में ट्विटर पर प्रचारित एक वीडियो
देखने को मिला, जिसमें गब्बर सिंह हाथ में दो तलवारें लिए ठाकुर के दोनों हाथ काट
रहा है। दोनों तलवारों में एक जीएसटी की है और दूसरी नोटबंदी की। कहा जा रहा है कि
गुजरात में दोनों बातें बीजेपी को हराने में मददगार होंगी। कांग्रेस पार्टी इसी
उम्मीद में 8 नवम्बर को काला दिन मनाने जा रही है। उसी दिन भारतीय जनता पार्टी ने
काला धन विरोधी दिवस के रूप में जश्न मनाने की योजना भी बनाई है।
नोटबंदी
और जीएसटी पर यदि गुजरात में बीजेपी को धक्का लगा तो उसके बाद के चुनावों को बचाना
आसान नहीं होगा। इसलिए यह चुनाव काफी रोचक हो गया है। कांग्रेस पार्टी के नज़रिए
से देखें तो उसकी उम्मीदें बीजेपी की नकारात्मकता पर टिकी हैं। यानी लोग सरकार से
नाराज हैं, 22 साल की इनकम्बैंसी है और जातीय समीकरण भी उसके खिलाफ जा रहा है।
लोगों को यह भी बताना होगा कि इन बातों से निजात दिलाने के लिए कांग्रेस क्या करने
जा रही है। राष्ट्रीय राजनीति में उसकी स्थिति क्या है और आर्थिक नीतियों में वह
ऐसा क्या करेगी, जो बीजेपी सरकार की नीतियों से बेहतर होगा। केवल नोटबंदी से
उम्मीदें बाँध लेना काफी नहीं होगा।
यह
सच है कि नोटबंदी को शुरू में जनता का समर्थन मिला था। उत्तर प्रदेश के चुनाव में
मिली भारी विजय से बीजेपी का उत्साह काफी बढ़ा, पर हाल में आर्थिक मोर्चे पर मंदी
की खबरें आने से जनता के दिलो-दिमाग में सवाल खड़े होने लगे हैं। बीजेपी यह बताने
की कोशिश कर रही है कि परेशानी अस्थायी है और लम्बी बीमारी के इलाज में तकलीफें भी
होती हैं। फिर भी जनता संशय में है और इस संशय का लाभ गुजरात में कांग्रेस को मिल
भी सकता है। पर कितना? क्या यह लाभ इतना बड़ा होगा कि वह
गुजरात में सरकार बना सके? उसे निर्णायक जीत मिले?