हाल
में मंदसौर में हुए गोलीकांड के बाद ऐसा लग रहा है कि देश का किसान असंतुष्ट ही
नहीं, बुरी तरह नाराज है। मंदसौर में जली हुई बसों की टीवी फुटेज को देखकर लगता है
कि हाल में ऐसा कुछ हुआ है, जिसके कारण उसकी नाराजगी बढ़ी है। हाल में दो साल
लगातार मॉनसून फेल होने के बावजूद किसान हिंसक नहीं हुआ। अब लगातार दो साल बेहतर
अन्न उत्पादन के बावजूद वह इतना नाराज क्यों हो गया कि हिंसा की नौबत आ गई? किसानों की समस्याओं से इंकार नहीं किया जा
सकता। पर कम से कम मंदसौर में किसान आंदोलन की राजनीतिक प्रकृति भी उजागर हुई है।
इसमें
दो राय नहीं कि खेती-किसानी घाटे का सौदा बन चुकी है। उन्हें अपने उत्पाद का सही
मूल्य नहीं मिल पाता। खेती से जुड़ी सामग्री खाद, कीटनाशक, सिंचाई और उपकरण महंगे
हो गए हैं। कृषि ऋणों का बोझ बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हुई खेती का
न तो बीमा है और न सरकारी मुआवजे की बेहतर व्यवस्था। पर ये समस्याएं अलग-अलग वर्ग
के किसानों की अलग-अलग हैं। इनपर राजनीतिक रंग चढ़ जाने के बाद समाधान मुश्किल हो
जाएगा।