पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव एक तरह से मध्यावधि जनादेश का काम करेंगे। सरकार के लिए ही नहीं
विपक्ष के लिए भी। चूंकि सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ती जा रही है, इसलिए इन चुनावों
में ‘आभासी माहौल’ की भूमिका कहीं ज्यादा होगी। कहना मुश्किल है
कि छोटी से छोटी घटना का किस वक्त क्या असर हो जाए। दूसरे राजनीति उत्तर प्रदेश की
हो या मणिपुर की सोशल मीडिया पर वह वैश्विक राजनीति जैसी महत्वपूर्ण बनकर उभरेगी।
इसलिए छोटी सी भी जीत या हार भारी-भरकम नजर आने लगेगी।
बहरहाल इस बार स्थानीय सवालों पर राष्ट्रीय प्रश्न हावी
हैं। ये राष्ट्रीय सवाल दो तरह के हैं। एक, राजनीतिक गठबंधन के स्तर पर और दूसरा
मुद्दों को लेकर। सबसे बड़ा सवाल है कि नरेंद्र
मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ क्या कहता है? लोकप्रियता बढ़ी है या घटी? दूसरा सवाल है कि
कांग्रेस का क्या होने वाला है? उसकी गिरावट रुकेगी या
बढ़ेगी? नई ताकत के रूप में आम आदमी पार्टी की भी परीक्षा
है। क्या वह गोवा और पंजाब में नई ताकत बनकर उभरेगी? और जनता
परिवार का संगीत मद्धम रहेगा या तीव्र?