बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस की परेड का मुख्य अतिथि बनाने
का कोई गहरा मतलब है? एक ओर सुरक्षा व्यवस्था का दबाव पहले से था,
ओबामा की यात्रा ने उसमें नाटकीयता पैदा कर दी. मीडिया की धुआँधार कवरेज ने इसे
विशिष्ट बना दिया है. यात्रा के ठीक पहले दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील के पेचीदा मसलों का हल होना भी सकारात्मक है. कई लिहाज से यह ‘गणतांत्रिक डिप्लोमेसी’ इतिहास के पन्नों में देर तक याद की जाएगी.
दोनों के रिश्तों में दोस्ताना बयार सन 2005 से बह रही है,
पर पिछले दो साल में कुछ गलतफहमियाँ भी पैदा हुईं. इस यात्रा ने कई गफलतों-गलतफहमियों
को दूर किया है और आने वाले दिनों की गर्मजोशी का इशारा किया है. पिछले 65 साल में
अमेरिका को कोई राजनेता इस परेड का मुख्य अतिथि कभी नहीं बना तो यह सिर्फ संयोग
नहीं था. और आज बना है तो यह भी संयोग नहीं है. वह भी भारत का एक नजरिया था तो यह
भी हमारी विश्व-दृष्टि है. ओबामा की यह यात्रा एक बड़ा राजनीतिक वक्तव्य है.