पिछले हफ्ते यूक्रेन में मलेशिया एयरलाइंस के
विमान को मार गिराया न गया होता तो फलस्तीन की ग़ज़ा पट्टी पर इसरायली हमले ज्यादा
बड़ी खबर थी। संयोग से जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन
में भाग लेने गए थे, उसी समय दोनों घटनाएं चर्चा में आईं। इस दौरान संसद का बजट
अधिवेशन चल रहा है। स्वाभाविक रूप से विपक्ष सरकार को अर्दब में लेना चाहेगा।
इसरायली कार्रवाई पर सरकार की चुप्पी से विपक्ष को एक मौका मिला भी है। विदेश
मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा के सभापति से अनुरोध किया था कि वे इस विषय पर
चर्चा न कराएं क्योंकि हमारे दोनों पक्षों के साथ अच्छे रिश्ते हैं और इस सिलसिले
में की गई कोई भी असंतुलित टिप्पणी रिश्तों पर असर डाल सकती है। बहरहाल सभापति को
विपक्ष की माँग में कोई दोष नज़र नहीं आया और अंततः सरकार ने इस पर चर्चा को
स्वीकार कर लिया, जो सोमवार को होगी। यह चर्चा नियम 176 के तहत होगी, जिसमें
वोटिंग नहीं होगी, इसलिए इसका राजनीतिक निहितार्थ नहीं है। अलबत्ता यह देखना रोचक
होगा कि कांग्रेस पार्टी का रुख इस मामले पर क्या होगा। उसका उद्देश्य केवल भाजपा
पर हमले करना है या वह इसरायल के बाबत भी कुछ कहेगी?
भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार का पहला बजट कमोबेश सकारात्मक रहा.
हालांकि सरकार ने रक्षा और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत करने के सिवाय अन्य कोई बड़े नीतिगत फ़ैसले नहीं किए.
सरकार ने आम करदाताओं को थोड़ी राहत ज़रूर दी है. वहीं युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने पर भी सरकार का ज़ोर रहा.
चुनावी वादे के अनुरूप सरकार ने गंगा की सफ़ाई के लिए भी अच्छा ख़ासा बजट आबंटित किया है.
पढ़िए प्रमोद जोशी का विश्लेषण विस्तार से
मोदी सरकार ने अपने उस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है, जिसकी घोषणा संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी.
लगातार दो साल से पाँच फीसदी के नीचे चली गई अर्थव्यवस्था को इस साल पाँच फीसदी के ऊपर जाने का मौका मिलने जा रहा है.
वित्त मंत्री का यह बजट भाषण सामान्य भाषणों से ज्यादा लंबा था और इसमें सपनों की बातें हैं.
सरकार को अभी यह बताना होगा कि वह राजस्व प्राप्तियों के लक्ष्यों को किस प्रकार हासिल करेगी.
उससे बड़ी चुनौती है कि वह जीडीपी की तुलना में राजकोषीय घाटे को 4.1 प्रतिशत के भीतर कैसे रखेगी, जिसे वह खुद मुश्किल काम मानती है.