Sunday, July 20, 2014

फलस्तीन पर असमंजस

पिछले हफ्ते यूक्रेन में मलेशिया एयरलाइंस के विमान को मार गिराया न गया होता तो फलस्तीन की ग़ज़ा पट्टी पर इसरायली हमले ज्यादा बड़ी खबर थी। संयोग से जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने गए थे, उसी समय दोनों घटनाएं चर्चा में आईं। इस दौरान संसद का बजट अधिवेशन चल रहा है। स्वाभाविक रूप से विपक्ष सरकार को अर्दब में लेना चाहेगा। इसरायली कार्रवाई पर सरकार की चुप्पी से विपक्ष को एक मौका मिला भी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा के सभापति से अनुरोध किया था कि वे इस विषय पर चर्चा न कराएं क्योंकि हमारे दोनों पक्षों के साथ अच्छे रिश्ते हैं और इस सिलसिले में की गई कोई भी असंतुलित टिप्पणी रिश्तों पर असर डाल सकती है। बहरहाल सभापति को विपक्ष की माँग में कोई दोष नज़र नहीं आया और अंततः सरकार ने इस पर चर्चा को स्वीकार कर लिया, जो सोमवार को होगी। यह चर्चा नियम 176 के तहत होगी, जिसमें वोटिंग नहीं होगी, इसलिए इसका राजनीतिक निहितार्थ नहीं है। अलबत्ता यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस पार्टी का रुख इस मामले पर क्या होगा। उसका उद्देश्य केवल भाजपा पर हमले करना है या वह इसरायल के बाबत भी कुछ कहेगी?

Thursday, July 17, 2014

अब अति हो रही है मिस्टर अर्णब गोस्वामी

अपने तेवरों पर ध्यान दीजिए मिस्टर अर्णब गोस्वामी!

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
लोकसभा चुनाव के पहले अमेरिकी कॉमेडी शो ‘लास्टवीक टुनाइट विद जॉन ओलीवर’ में होस्ट जॉन ओलीवर ने कई बार अर्णब गोस्वामी को अपना निशाना बनाया। अर्णब के शो की शोर और निरर्थक शोर से जुड़ी क्लिपिंग उस शो में दिखाई गईं। खासतौर से मीनाक्षी लेखी के साथ चला लम्बा संवाद जिसमें अर्णब लगातार ‘हाउ डेयर यू से आय टेक मनी’ दोहराते चले गए। अर्णब के शो में हर तीसरे-चौथे दिन ‘शट-अप’ होता रहता है।
सबसे ताज़ा प्रकरण है वेद प्रताप वैदिक प्रकरण जिसमें सारी बातचीत विमर्श के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई। वैदिक जी की पाकिस्तान यात्रा का विवाद, उनकी पत्रकारिता को लेकर हमारी राय इस प्रकरण से जुड़े नैतिक और राजनीतिक मसले अपनी जगह हैं। सार्वजनिक विमर्श के स्वर, भाषा और तौर-तरीकों की कोई सीमा तो तय होनी चाहिए। क्या कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विमर्श मछली बाज़ार में तबदील हो गया है? क्या कारण है कि एंकरों के स्वर सड़क पर मजमा लगाने वालों और पुराने बादशाहों की मुनादी लगाने वालों से भी ज्यादा कर्कश हो गए हैं? क्या कारण है कि इस विमर्श में से विचार गायब हो गए हैं?

Tuesday, July 15, 2014

बंगाल की खाड़ी में उम्मीदों के मेघदूत

मार्च 2010 में बंगाल की खाड़ी में एक छोटा सा द्वीप समुद्र में डूब गया। ऐसा जलवायु परिवर्तन और समुद्र की सतह में बदलाव के कारण हुआ. यह द्वीप सन 1971 में हरियाभंगा नदी के मुहाने पर उभर कर आया था. यह नदी दोनों देशों की सीमा बनाती है, इसलिए इस द्वीप के स्वामित्व को लेकर विवाद खड़ा हो गया. यह विवाद अपनी जगह था, पर इसके प्रकटन और लोपन से इस बात पर रोशनी पड़ती है कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री सीमा को लेकर कई तरह के विवाद खड़े हो सकते हैं. नदियों की जलधारा अपना रास्ता बदलती रहती है. ऐसे में हमें पहले से ऐसी व्यवस्थाएं करनी होंगी कि मार्ग बदलने पर क्या करें.

Thursday, July 10, 2014

आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी है ऐसा बजट

 गुरुवार, 10 जुलाई, 2014 को 17:54 IST तक के समाचार
अरुण जेटली, वित्त मंत्री, भारत
भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार का पहला बजट कमोबेश सकारात्मक रहा.
हालांकि सरकार ने रक्षा और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत करने के सिवाय अन्य कोई बड़े नीतिगत फ़ैसले नहीं किए.
सरकार ने आम करदाताओं को थोड़ी राहत ज़रूर दी है. वहीं युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने पर भी सरकार का ज़ोर रहा.
चुनावी वादे के अनुरूप सरकार ने गंगा की सफ़ाई के लिए भी अच्छा ख़ासा बजट आबंटित किया है.

पढ़िए प्रमोद जोशी का विश्लेषण विस्तार से

मोदी सरकार ने अपने उस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है, जिसकी घोषणा संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी.
लगातार दो साल से पाँच फीसदी के नीचे चली गई अर्थव्यवस्था को इस साल पाँच फीसदी के ऊपर जाने का मौका मिलने जा रहा है.
वित्त मंत्री का यह बजट भाषण सामान्य भाषणों से ज्यादा लंबा था और इसमें सपनों की बातें हैं.
सरकार को अभी यह बताना होगा कि वह राजस्व प्राप्तियों के लक्ष्यों को किस प्रकार हासिल करेगी.
उससे बड़ी चुनौती है कि वह जीडीपी की तुलना में राजकोषीय घाटे को 4.1 प्रतिशत के भीतर कैसे रखेगी, जिसे वह खुद मुश्किल काम मानती है.

रफ्ता-रफ्ता अच्छे दिन भी आएंगे

नरेंद्र मोदी की सरकार का बजट पेश होने की सुबह कोई पूछे कि अच्छे दिन कितनी दूर हैं तो कहा जा सकता है कि हालात बड़े मुश्किल हैं, पर दुःख भरे दिन बीत चुके हैं। वित्तीय स्वास्थ्य अच्छा होने के संकेत साफ हैं। रफ्ता-रफ्ता अच्छे दिन आ रहे हैं। सरकार का कहना है कि कीमतों का बढ़ना रुक रहा है। विदेशी निवेशकों के रुख में नाटकीय बदलाव आ रहा है। खराब मॉनसून के बावजूद मुद्रास्फीति को रोका जा सका तो यकीन मानिए कि निवेशकों का विश्वास भारतीय सिस्टम पर बढ़ेगा। आर्थिक सर्वेक्षण राहत के संकेत दे रहा है, पर आज किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद मत कीजिए। हाँ यह सम्भव है कि सरकार उत्पादन और आयात कर में कुछ राहतों की घोषणा करे, जिससे कुछ उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती हो सकती हैं। पर पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने से नहीं रोकी जा सकेंगी। इसके बाद सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में ला सकेगी। भोजन और उर्वरकों पर सब्सिडी भी कम होने की सम्भावना है। इसके अलावा सब्सिडी देने के तरीके में बायोमीट्रिक्स के इस्तेमाल के बाबत भी कोई घोषणा बजट में हो सकती है। सर्वे में इस बात का उल्लेख है कि देश के सबसे धनी दस फीसदी लोग गरीबों के मुकाबले सात गुना ज्यादा सब्सिडी ले रहे हैं। हम समझते हैं कि यह योजना गरीबों के नाम पर बनी है, पर उसका फायदा अमीर उठाते हैं।