Sunday, May 25, 2014

कैसा होगा मोदी का ‘ब्रांड इंडिया’

नरेंद्र मोदी की सरकार के बारे में माना जा रहा है कि यह काम करने वाली और साफ बोलने वाली सरकार होगी। चुनाव प्रचार के दौरान वे कई बार ब्रांड इंडिया को चमकाने की बात करते रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि यह सदी भारत के नाम है। दुर्भाग्य है कि हम इस दशक की शुरुआत य़ानी सन 2010 से पराभव का दौर देख रहे हैं। सन 2010 में हमने कॉमनवैल्थ गेम्स का आयोजन किया। उसका उद्देश्य भारत की प्रगति को शोकेस करना था। पर हुआ उल्टा। कॉमनवैल्थ गेम्स हमारे लिए कलंक साबित हुआ। टू-जी हमारी तकनीकी प्रगति का संकेतक था। सन 1991 के बाद शुरू हुई आर्थिक क्रांति का पहला पड़ाव था टेलीकम्युनिकेशन की क्रांति। पर यह क्रांति हमारे माथे पर कलंक का टीका लगा गई। जरूरी है कि भारत अपनी उद्यमिता और मेधा को साबित करे। पिछले साल हमारे वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की ओर एक यान भेजा है। इस साल सितम्बर में यह यान मंगलग्रह की कक्षा में प्रवेश करेगा। हमें मानकर चलना चाहिए कि ऊँचे आसमान से प्रकाशमान होकर यह भारत का नाम इस साल जगमग करेगा।  

Saturday, May 24, 2014

लालू-नीतीश एकता का प्रहसन

बिहार की राजनीति निराली है। वहाँ जो सामने होता है, वह होता नहीं और जो होता है वह दिखाई नहीं देता। जीतनराम मांझी की सरकार को सदन का विश्वास यों भी मिल जाना चाहिए था, क्योंकि सरकार को कांग्रेस का समर्थन हासिल था। ऐसे में लालू यादव के बिन माँगे समर्थन के माने क्या हैं? फिरकापरस्त ताकतों से बिहार को बचाने की कोशिश? राजद की ओर से कहा गया है कि राष्ट्रीय जनता दल की ओर से कहा गया है कि यह एक ऐसा वक़्त है जब फिरकापरस्त ताकतों को रोकने के लिए धर्मनिरपेक्ष ताकतों को छोटे-मोटे मतभेदों को भुलाकर एकजुट हो जाना चाहिए। क्या वास्तव में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच छोटे-मोटे मतभेद थे? सच यह है कि दोनों नेताओं के सामने इस वक्त अस्तित्व रक्षा का सवाल है। दोनों की राजनीति व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे के खिलाफ है। इसमें सैद्धांतिक एकता खोजने की कोशिश रेगिस्तान में सूई ढूँढने जैसी है। जो है नहीं उसे साबित करना।
प्राण बचाने की कोशिश
हाँ यह समझ में आता है कि फौरी तौर पर दोनों नेता प्राण बचाने की कोशिश कर रहे हैं। भला बिन माँगे समर्थन की जरूरत क्या थी? इसे किसी सैद्धांतिक चश्मे से देखने की कोशिश मत कीजिए। यह सद्यःस्थापित एकता अगले कुछ दिन के भीतर दरक जाए तो विस्मय नहीं होना चाहिए। राजद ने साफ कहा है कि मांझी-सरकार को यह समर्थन तात्कालिक है, दीर्घकालिक नहीं। ऐसी तात्कालिक एकता कैसी है? मोदी का खतरा तो चुनाव के पहले ही पैदा हो चुका था। कहा जा रहा है कि बीस साल बाद जनता परिवार की एकता फिर से स्थापित हो गई है। पर यह एकता भंग ही क्यों हुई थी? वे क्या हालात थे, जिनमें जनता दल टूटा? क्या वजह थी कि जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी ने भाजपा के साथ जाने का फैसला किया?

Friday, May 23, 2014

सोनिया ने मोदी को बधाई दी और नेहरू की विरासत भी सौंपी

हिंदू में केशव का कार्टून : गिलास आधा खाली

दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के साथ कई और तरह के परिवर्तन दिखाई पड़ने लगे हैं। भले ही दबे स्वर में हों, पर कांग्रेस में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर आवाजों उठने लगी हैं। राहुल की कोर टीम के एक सदस्य ने हमलावरों पर जवाबी हमला भी बोला है। आज के अखबारों ने इस खबर को जगह दी है। मुम्बई के डीएनए में यह रोचक खबर है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर अपनी हार के लिए जापानी विज्ञापन एजेंसी देंत्सू की नाकामी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तैयारी और इस्रायली खुफिया एजेंसी मोसाद को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है। सारी दुनिया ने नरेंद्र मोदी को बधाई दे दी तो सोनिया गांधी को लगा कि अपुन भी बधाई दे दें। पर जिस खबर को आज कोलकाता के टेलीग्राफ ने प्रमुखता दी है वह है सोनिया गांधी का नेहरू संग्रहालय की अध्यक्षता से इस्तीफा। अब इस विरासत को नरेंद्र मोदी की सरकार सम्हालेगी। स्वाभाविक है कि नेहरू की विरासत राष्ट्रीय है। टेलीग्राफ की यह खबर भी रोचक है कि राष्ट्रपति भवन के शपथ ग्रहण समारोह के लिए तैयार किए गए तम्बू में जगह सिर्फ 1250 मेहमानों की है। इनमें 777 तो सांसद ही होंगे। बाकी के लिए जगह कितनी है? दैनिक भास्कर ने खबर दी है कि नरेंद्र मोदी आर्थिक नीति से जुड़े कुछ बड़े फैसलों के साथ-साथ गंगा की सफाई के लिए 25 हजार करोड़ की योजना की घोषणा भी करने वाले हैं। अखबारों में इस किस्म की खबरें हैं कि अगले 100 दिन में मोदी सरकार किस तरह से महंगाई पर रोक लगाएगी। नज़र डालें आज की कुछ खास खबरों पर
DNA

Telegraph




भास्कर



जागरण


Thursday, May 22, 2014

क्या यह भाजपा-गैर भाजपा दौर का आग़ाज़ है?

चुनाव में जीतने के बाद वाराणसी में नरेंद्र मोदी ने कहा, पहले सरकार चलाने के लिए गठबंधन करना पड़ता था। अब प्रतिपक्ष है नहीं। अब प्रतिपक्ष बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ेगा. इस चुनाव के बाद कम से कम दो सच्चाइयाँ उजागर हुई हैं. अभी तक देश की राजनीति के तीन कोने थे. एक कांग्रेस, दूसरा भाजपा और तीसरा गैर-कांग्रेस, गैर भाजपा विपक्ष. पर अब तीन नहीं दो कोने हो गए हैं. एक भाजपा और दूसरा गैर-भाजपा.

बिहार में नीतीश कुमार के इस्तीफे की गहमा-गहमी के बीच एक प्रस्ताव आया कि जेडीयू और राजद एक साथ आ जाएं. क्या व्यावहारिक रूप से यह संभव है. अभी तक बिहार में लालू को रोकने का श्रेय नीतीश कुमार को दिया जा रहा था. अब यह काम भाजपा ने सम्हाल लिया है. ऐसे में क्या जेडीयू और राजद एक साथ जा सकते हैं? सेक्युलरिज़्म की अवधारणा वास्तविक है तो फिर तमाम ताकतें एकसाथ क्यों नही आतीं? ऐसी पहेलियाँ दूसरे राज्यों में भी बूझी जाएंगी.

चुनाव परिणाम आने के बाद पहले जयललिता ने मोदी को और फिर मोदी ने जयललिता को बधाई देकर गर्मजोशी का माहौल बनाया है. जयललिता को एनडीए में शामिल करने की ज़रूरत मोदी को नहीं है, पर जयललिता को मोदी की ज़रूरत है. चुनाव के ठीक पहले मोदी और ममता के बीच कटु वक्तव्यों की बौछारों हुईं, पर ज़रूरत तो ममता को भी मोदी की होगी. उधर नवीन पटनायक ने केंद्र के प्रति अपने सकारात्मक रुख की घोषणा करके साफ कर दिया है कि वे भाजपा विरोधी कैम्प में नहीं हैं. तब विपक्ष में है कौन?

Wednesday, May 21, 2014

राहुल की हँसी और केजरीवाल की पहलकदमी


आज के अखबारों में स्वाभाविक रूप से नरेंद्र मोदी का भावुक भाषण छाया है। कल शाम सारे चैनलों में इस विषय पर ही विमर्श हो रहा था। सरकार के सामने क्या काम हैं और सरकार किस तरह की बन रही है, ये सवाल कल शाम तक पटल पर नहीं थे। एकाध दिन यह और चलेगा। इसके बाद गाड़ी देश के सामने खड़े महत्वपूर्ण सवालों पर आएगी। आज की खबरों में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की फिर से सरकार बनाने की पहलकदमी की खबर महत्वपूर्ण है। 'आप' के निहायत अपरिपक्व नेता अब अलोकप्रियता के शिखर पर जल्द से जल्द पहुँचने को आतुर हैं। उन्हें मान लेना चाहिए कि उनकी गाड़ी छूट चुकी है। जिस विधानसभा को भंग करने के लिए वे अदालत में जा चुकें हैं, उसे फिर से जगाने की कोशिश वे क्यों कर रहे हैं? यह सम्भव भी तभी है, जब कांग्रेस इसमें उनका साथ दे। क्या कांग्रेस उनका साथ देगी? आप अब रक्षात्मक मुद्रा में है। तीन महीने पहले उन्हें लगता था कि दुबारा चुनाव हुआ तो उन्हें पूर्ण बहुमत मिलेगा। पर अब उनका आत्मविश्वास डोल गया है। उन्होंने यों भी सिद्धांततः मान लिया है कि भ्रष्टाचार से ज्यादा बड़ी लड़ाई साम्प्रदायिकता के खिलाफ है। अब इस लड़ाई को तार्किक परिणति तक पहुँचाना चाहिए। बहरहाल देखिए क्या होता है। लखनऊ में सपा और बसपा ने चुनाव हारने के बाद कुछ लोगों को सज़ा देने का फैसला किया है। बसपा का यह फैसला रोचक है कि अब केवल मायावती जिन्दाबाद के अलावा किसी दूसरे नेता की जिन्दाबाद नहीं हो सकेगी। भारतीय लोकतंत्र प्रौढ़ होता जा रहा है। कुछ कतरनों पर गौर कीजिए।

पिताजी जीता कौन? हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून। इस कार्टून का संदर्भ नीचे की तस्वीर से समझा जा सकता है। 

कोलकाता के टेलीग्राफ ने मंगलवार को यह तस्वीर छापी जिसमें राहुल गांधी की दो मुद्राएं दिखाई गई हैं। पिछले शुक्रवार को कांग्रेस की पराजय की खबरें आने के बाद संक्षिप्त से संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी मुस्कराते हुए आए थे। इसके विपरीच सोमवार को कांग्रसे कार्यसमिति की बैठक में वे लगातार गुमसुम बैठे रहे। शायद अभी वे खुद को मौके के हिसाब से प्रतिक्रिया देने में सफल नहीं हो पाए हैं।