पिछले साल का राजनीतिक समापन राज्यसभा में लोकपाल बिल को लेकर पैदा हुए गतिरोध के साथ हुआ था। वह गतिरोध जारी है। यूपीए के महत्वपूर्ण सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के साथ शुरू हुआ टकराव अनायास नहीं था। और यह टकराव लगातार बढ़ रहा है। आने वाले वक्त की राजनीति और नए बनते-बिगड़ते समीकरणों की आहट सुनाई पड़ने लगी थी। पाँच राज्यों के चुनाव के शोर में ये आहटें नेपथ्य में चली गईं है। पर लगता है कि इस साल राष्ट्रीय राजनीति में कुछ बड़े फेरबदल होंगे, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरने वाले गठबंधनों को नई शक्ल देंगे।
इस साल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव होंगे, उसके बाद जून में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। भाजपा अध्यक्ष पद पर नितिन गडकरी का कार्यकाल भी इस साल के अंत में पूरा हो जाएगा। और यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में किसी नए नेतृत्व के साथ उतरना चाहती है तो शायद प्रधानमंत्री पद पर बदलाव भी हो। इन सारे बदलावों का एक-दूसरे से कोई रिश्ता नहीं, पर इनका मिला-जुला असर देश की राजनीति और व्यवस्था पर पड़े बगैर नहीं रहेगा।