'English Skills तेज़ करें और BPO में नौकरी पाएं', इस शीर्षक का विज्ञापन आपको इंटरनेट की साइटों पर मिलेगा। टाटास्काई खोलें तो सबसे पहले अंग्रेजी सिखाने वाली उनकी सेवा का विज्ञापन आता है। हर छोटे-बड़े शहर में आपको अमेरिकन इंग्लिश सिखाने वाले इंस्टीट्यूट मिल जाएंगे। ऐसी कोई जगह नहीं मिलेगी, जहाँ हिन्दी सिखाई जाती है।
हाल में मेरे पास एक सुझाव आया कि आप हिन्दी सिखाने का काम क्यों नहीं करते। मुझे लगा, भला आज के ज़माने में हिन्दी का क्या काम ? ऐसा नहीं है, किसी कोरियन कम्पनी को, ऐसे लोगों की ज़रूरत थी, जो उनके अधिकारियों को कामकाज़ी हिन्दी सिखा सकें। सीनियर अधिकारी को कोई सानियर व्यक्ति ही सिखाए, ऐसा आग्रह भी था। कोई अमेरिकन महिला टॉप एक्ज़िक्यूटिव भारत आ रहीं हैं। क्या आप एक-दो रोज़ के लिए अपना समय दे सकेंगे? वे हिन्दी के अलावा भारत के बारे में जानना चाहतीं हैं। भारत के बारे में प्रकाशित गाइडों में वैसी जानकारी नहीं है, जो व्यावहारिक हो। आपने सोचा वह जानकारी क्या हो सकती है? यहाँ की राजनीति के बारे में राजनेताओं के बारे में। एकदम बुनियादी खानपान के बारे में। लोगों के शौक क्या हैं, वे पढ़ते क्या हैं, सोचते क्या हैं वगैरह।
हिन्दी पत्रकार से उम्मीद की जाती है कि वह ज़मीनी जानकारी रखता है। मैनेजमेंट के टॉप लीडर भारत के बारे में जानना नहीं चाहते। अमेरिकन जानना चाहते हैं। गाँव-कस्बों के हमारे बच्चे हागड़-बिल्लू अंग्रेजी सीख कर बहुत सस्ते में बीपीओ की नौकरी करने को राज़ी हैं। अंग्रेजी इसलिए नहीं सीखनी कि उसमें ज्ञान है। आज भी पूरे विश्वास से लूली-लँगड़ी अंग्रेजी बोलकर आप भारत के काले अंग्रेजों को जितना प्रभावित कर सकते हैं, उतना अपनी भाषा बोलकर नहींकर सकते, भले ही आपका ज्ञान उच्चस्तरीय हो।
कुछ साल पहले चीन यात्रा करके आए एक सज्जन बता रहे थे कि चीन में सॉफ्टवेयर अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए ज्यादा बनता है। चूंकि घरेलू काम चीनी भाषा में होता है, इसलिए सॉफटवेयर के काम में चीनी भाषा का इस्तेमाल खूब होता है। आज भी इंटरनेट पर अंग्रेजी के बाद दूसरे नम्बर की भाषा चीनी है। उच्च स्तरीय साइंस, मेडिसन, टेक्नॉलजी, अर्थ शास्त्र और अन्य विषयों पर चीनी भाषा में सामग्री उपलब्ध है। हाँ वे लोग अंग्रेजी में हमसे पीछे हैं। इसपर हमें गर्व है। हाल में खबर थी कि चीन में अंग्रेजी शब्दों के निरर्थक इस्तेमाल पर सजा दी जाती है। बात अलोकतांत्रिक है, पर विचारणीय भी।
भला चीनी अपनी भाषा के माध्यम से आधुनिक कैसे होंगे? उससे बड़ा सवाल यह है कि आधुनिक हो गए तो क्या होगा? तब अंग्रेजी की ज़रूरत कम हो जाएगी। शायद चीनी की ज़रूरत बढ़ जाएगी। तब हम क्या करंगे? हम तो अपनी भाषा का श्राद्ध कर चुके होंगे। शायद तब हम चीनी भाषा सीखना शुरू करेंगे। तब बीपीओ चीनी में काम करने लगेंगे। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं। और होगा भी तो कब होगा, अपुन लोग ज्यादा सोचते नहीं। जैसा होगा देखा जाएगा।