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Friday, May 21, 2021

आखिरकार लड़ाई रुकी

 

युद्ध-विराम की घोषणा करते हुए जो बाइडेन

इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथी हमस के बीच संघर्ष-विराम हो गया। दोनों पक्षों ने 11 दिन की लड़ाई के बाद आपसी सहमति से यह फ़ैसला किया। बताया जाता है कि इस संघर्ष-विराम के पीछे अमेरिका की भूमिका है, जिसने इसराइल पर युद्ध रोकने के लिए दबाव बनाया था। इसराइल की रक्षा-कैबिनेट ने गुरुवार 20 मई की रात 11 बजे हमले रोकने का फैसला किया, जिसके तीन घंटे बाद रात दो बजे युद्ध-विराम लागू हो गया। हमस के एक अधिकारी ने भी पुष्टि की कि यह संघर्ष-विराम आपसी रज़ामंदी से और एक साथ हुआ है, जो शुक्रवार तड़के स्थानीय समय के अनुसार दो बजे से लागू हो गया।

10 मई से शुरू हुई रॉकेट-वर्षा और जवाबी बमबारी में 240 से ज़्यादा लोग मारे गए जिनमें 12 इसराइली हैं और शेष ज़्यादातर मौतें गज़ा में हुईं। 7 मई को अल-अक़्सा मस्जिद के पास यहूदियों और अरबों में झड़प हुई। इसके बाद इस इलाके में प्रदर्शन हुए और इसराइली पुलिस ने अल अक़्सा मस्जिद में प्रवेश किया। इसके दो दिन बाद हमस ने इसराइल पर रॉकेट-वर्षा की जिसका जवाब इसराइली वायुसेना के हमले से हुआ।

गज़ा में कम-से-कम 232 लोगों की जान जा चुकी है। गज़ा पर नियंत्रण करने वाले हमस के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार मारे गए लोगों में लगभग 100 औरतें और बच्चे हैं। इसराइल का कहना है कि गज़ा में मारे गए लोगों में कम-से-कम 150 चरमपंथी हैं। हमस ने अपने लोगों की मौत के बारे में कोई आँकड़ा नहीं दिया है।

Thursday, May 20, 2021

अमेरिका ने लड़ाई रोकने के लिए इसराइल और हमस दोनों पर दबाव बनाया

 

इसराइली बमबारी के बाद गज़ा का एक शहरी इलाका

वॉल स्ट्रीट जरनल के अनुसार जो बाइडेन प्रशासन और पश्चिम एशिया में उसके सहयोगी देश इसराइल और फलस्तीनी उग्रवादी ग्रुप हमस पर संघर्ष रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस संघर्ष में नागरिकों की हो रही मौतें चिंता का सबसे बड़ा कारण है।

राष्ट्रपति बाइडेन ने बुधवार को इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से फोन पर बात की और इस बात की उम्मीद जाहिर की कि फौरन फौजी कार्रवाई कम की जाएगी, ताकि संघर्ष-विराम का रास्ता खुल सके। अमेरिका ने अपने सम्पर्कों के मार्फत हमस के पास भी यह संदेश भिजवाया है।

इसराइली मीडिया के अनुसार नेतन्याहू ने जवाब में कहा कि हम तब तक कार्रवाई जारी रखने के लिए कृत-संकल्प हैं जब तक कि इसराइली नागरिकों की शांति और सुरक्षा सुनिश्चित न हो जाए। नेतन्याहू ने इससे पहले दावा किया था कि इस बार उनकी कार्रवाई से हमस को ऐसे झटके मिले हैं, जिसकी उसे उम्मीद नहीं थी और वो वर्षों पीछे चले गए हैं।

Wednesday, May 19, 2021

पश्चिम एशिया में भारत किसके साथ है?

हिन्दू में वासिनी वर्धन का कार्टून

गज़ा पट्टी में चल रहे टकराव को रोकने के लिए संरा सुरक्षा परिषद की खुली बैठक में की जा रही कोशिशें अभी तक सफल नहीं हो पाई हैं, क्योंकि ऐसा कोई प्रस्ताव अभी तक सामने नहीं आया है, जिसपर आम-सहमति हो। नवीनतम समाचार यह है कि फ्रांस ने संघर्ष-विराम का एक प्रस्ताव आगे बढ़ाया है, जिसकी शब्दावली पर अमेरिका की राय अलग है। हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने औपचारिक रूप से जो बयान जारी किया है, उसमें दोनों पक्षों से संघर्ष-विराम की अपील की है, पर अमेरिका का सुझाव है कि इसपर सुरक्षा परिषद की खुली बैठक के बजाय बैकरूम बात की जाए। एक तरह से उसने सुप को बयान जारी करने से रोका है।

अब फ्रांस ने कहा है कि हम अब बयान नहीं एक प्रस्ताव लाएंगे, जो कानूनन लागू होगा। इसपर सदस्य मतदान भी करेंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह बात मिस्र और जॉर्डन के राष्ट्राध्यक्षों से बात करने के बाद कही है। अनुमान है कि इस प्रस्ताव में केवल संघर्ष-विराम की पेशकश ही नहीं है, बल्कि गज़ा में हालात का अध्ययन करने और मानवीय-सहायता पहुँचाने की पेशकश भी है। सम्भवतः अमेरिका को इसपर आपत्ति है। देखना होगा कि ऐसी स्थिति आई, तो अमेरिका उसे वीटो करेगा या नहीं।  

भारत किसके साथ?

उधर इस संघर्ष के दौरान भारत में बहस है कि हम संयुक्त राष्ट्र में किसका साथ दे रहे हैं, इसराइल का या फलस्तीनियों का? भारतीय प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने रविवार को सुरक्षा परिषद में जो बयान दिया था, उसे ठीक से पढ़ें, तो वह फलस्तीनियों के पक्ष में है, जिससे इसराइल को दिक्कत होगी। साथ ही भारत ने हमस के रॉकेट हमले की भी भर्त्सना की है।

Tuesday, May 18, 2021

हमस-इसराइल टकराव का निहितार्थ


इसराइल और हमस के बीच टकराव ऐन उस मौके पर हुआ है, जब लग रहा था कि पश्चिम एशिया में स्थायी शांति के आसार पैदा हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि अरब देशों का इसराइल के प्रति कठोर रुख बदलने लगा था। तीन देशों ने उसे मान्यता दे दी थी और सम्भावना इस बात की थी कि सऊदी अरब भी उसे स्वीकार कर लेगा। इस हिंसा से उस प्रक्रिया को धक्का लगेगा। अब उन अरब देशों को भी इसराइल से रिश्ते सुधारने में दिक्कत होगी, जिन्होंने हाल में इसराइल के साथ रिश्ते बनाए हैं। पर वैश्विक राजनीति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है। इस हिंसा के दौरान इसराइल के समर्थक देशों का रुख भी साफ हुआ है।

इस महीने के पहले हफ्ते में इसराइली सुरक्षा बलों ने यरूशलम के दमिश्क गेट पर फलस्तीनियों को जमा होने से रोका, जिसके कारण यह हिंसा भड़की है। इस घटना में काफी लोग घायल हुए थे। इसके बाद उग्रवादी संगठन हमस को आगे आने का मौका मिला। उन्होंने इसराइल पर रॉकेटों से हमला बोल दिया, जिसका जवाब इसराइल ने बहुत बड़े स्तर पर दिया है। इन दिनों इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू अपने देश में राजनीतिक संकट में थे। इस लड़ाई से उनकी स्थिति सुधरेगी। दूसरी तरफ हमस का प्रभाव अब और बढ़ेगा। जहाँ तक भारत का सवाल है, हमारी सरकार ने काफी संतुलित रुख अपनाया है। इस टकराव ने इस्लामिक देशों को इसराइल के बारे में किसी एक रणनीति को बनाने का मौका भी दिया है। एक तरफ मुस्लिम देशों का नया ब्लॉक बनाने की बातें हैं, वहीं सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्ते सुधारने के प्रयास भी हैं। तुर्की भी इस्लामिक देशों का नेतृत्व करने के लिए आगे आया है।  

हालांकि इस टकराव को युद्ध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें आसपास का कोई देश शामिल नहीं हैं पर इससे वैश्विक-राजनीति में आ रहे परिवर्तनों पर प्रभाव पड़ेगा। खासतौर से अरब देशों और इसराइल के रिश्तों में आ रहे सुधार को धक्का लगेगा। इस परिघटना का असर अरब देशों और ईरान के बीच सम्बंध बेहतर होने की प्रक्रिया पर भी पड़ेगा।

Wednesday, May 12, 2021

यरूशलम में क्या हो रहा है?



इसराइल और फ़लस्तीनी अरबों के बीच पिछले शुक्रवार से भड़का संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले सोमवार को इसराइली सेना ने अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश किया। इसके जवाब में हमस ने इसराइल पर दर्जनों रॉकेटों को छोड़ा। बीबीसी के अनुसार संघर्ष की ताज़ा घटना में फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमस ने कहा है कि उन्होंने इसराइल के शहर तेल अवीव पर 130 मिसाइलें दागी हैं। उन्होंने यह हमला गज़ा पट्टी में एक इमारत पर इसराइल के हवाई हमले का जवाब देने के लिए किया। भारत में इसराइल के राजदूत ने बताया है कि हमस के हमले में एक भारतीय महिला की भी मौत हो गई है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इसराइल ने गज़ा पट्टी में 13-मंज़िला एक अपार्टमेंट पर हमला किया। उन्होंने इससे डेढ़ घंटे पहले चेतावनी दी थी और लोगों को घरों से बाहर निकल जाने के लिए कहा था। इसराइली सेना का कहना है कि वे अपने इलाक़ों में रॉकेट हमलों के जवाब में गज़ा में चरमपंथियों को निशाना बना रहा है। 2017 के बाद से पश्चिम एशिया में दोनों पक्षों के बीच भड़की सबसे गंभीर हिंसा में अब तक कम-से-कम 31 लोगों की जान जा चुकी है। सैकड़ों लोग घायल हैं। इसराइली क्षेत्र में तीन लोगों की मौत हुई है. वहीं इसराइली हमले में अब तक कम-से-कम 28 फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं।

क्या है इसकी पृष्ठभूमि?

बीबीसी हिंदी की वैबसाइट में इस हमले की जो पृष्ठभूमि दी गई है, वह संक्षेप में इस प्रकार है: यह 100 साल से भी ज्यादा पुराना मुद्दा है। पहले विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद पश्चिम एशिया में फ़लस्तीन के नाम से पहचाने जाने वाले हिस्से को ब्रिटेन ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। इस ज़मीन पर अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब बसे हुए थे। दोनों के बीच तनाव तब शुरू हुआ जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को यहूदी लोगों के लिए फ़लस्तीन को एक 'राष्ट्रीय घर' के तौर पर स्थापित करने का काम सौंपा।

यहूदियों के लिए यह उनके पूर्वजों का घर है जबकि फ़लस्तीनी अरब भी इस पर दावा करते रहे हैं और इस क़दम का विरोध किया था। 1920 से 1940 के बीच यूरोप में उत्पीड़न और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान होलोकॉस्ट से बचकर भारी संख्या में यहूदी एक मातृभूमि की चाह में यहाँ पर पहुँचे थे। इसी दौरान अरबों और यहूदियों और ब्रिटिश शासन के बीच हिंसा भी शुरू हुई। 1947 में संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन को यहूदियों और अरबों के अलग-अलग राष्ट्र में बाँटने को लेकर मतदान हुआ और यरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया। इस योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार किया जबकि अरब पक्ष ने इसको ख़ारिज कर दिया और यह कभी लागू नहीं हो पाया।

Tuesday, May 11, 2021

एशिया में तेज गतिविधियाँ और भारतीय विदेश-नीति की चुनौतियाँ

 


पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अचानक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। एक तरफ अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी शुरू हो गई है, वहीं अमेरिका के हटने के बाद की स्थितियों को लेकर आपसी विमर्श तेज हो गया है। अफगानिस्तान में हाल में हुए एक आतंकी हमले में 80 के आसपास लोगों की मृत्यु हुई है, जिनमें ज्यादातर स्कूली लड़कियाँ हैं। ये लड़कियाँ शिया मूल के हज़ारा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह हमला दाएश यानी इस्लामिक स्टेट ने किया है। इस हमले के बाद अमेरिका ने कहा है कि अफगान सरकार और तालिबान को मिलकर इस गिरोह से लड़ना चाहिए। दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सऊदी अरब का दौरा करके आए हैं। इस दौरे के पीछे भी असली वजह अमेरिका के पश्चिम एशिया से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर जाना है।

सऊदी अरब का प्रयास है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव खत्म हो, ताकि अफगानिस्तान में हालात पर काबू पाया जा सके, साथ ही इस इलाके में आर्थिक सहयोग का माहौल बने। इस बीच सऊदी अरब और ईरान के बीच भी सम्पर्क स्थापित हुआ है। जानकारों के अनुसार अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन का ईरान के साथ परमाणु समझौते को दोबारा बहाल करने की कोशिश करना और चीन का ईरान में 400 अरब डॉलर के निवेश के फ़ैसले के कारण सऊदी अरब के रुख़ में बदलाव नज़र आ रहा है।

अमेरिका की कोशिश भी ईरान से रिश्तों को सुधारने में है। इतना ही नहीं सऊदी और तुर्की रिश्तों में भी बदलाव आने वाला है। इस प्रक्रिया में भारत की नई भूमिका भी उभर कर आएगी। भारत ने प्रायः सभी देशों के साथ रिश्तों को सुधारा है। पाकिस्तान के कारण या किसी और वजह से तुर्की के साथ खलिश बढ़ी है, पर उसमें भी बदलाव आएगा।

Tuesday, April 20, 2021

ईरान और सऊदी वार्ता से पश्चिम एशिया में माहौल सुधरने की सम्भावना

 


पश्चिम एशिया में दो परम्परागत प्रतिस्पर्धी सऊदी अरब और ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच करीब पाँच साल बाद पहली बार सीधी बात हुई है। बताया जा रहा है कि इराक की राजधानी बग़दाद में हुई इस बैठक में दोनों देशों के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने पर विमर्श हुआ। दोनों देशों ने करीब पाँच साल पहले अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिए थे।

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बग़दाद में इसी महीने हुई इस बैठक में लंबे अंतराल के बाद पहली बार गंभीर बातचीत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक़ सऊदी अरब की ओर से इस वार्ता का नेतृत्‍व खुफिया प्रमुख खालिद बिन अली अल हुमैदान ने किया। बातचीत की पहल इराक के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल क़दीमी ने की है। इस खुफिया बैठक के बारे में सऊदी अरब ने कोई टिप्पणी नहीं की है। ईरानी वैबसाइट पार्सटुडे ने फाइनेंशियल टाइम्स का हवाला देते हुए इस खबर को प्रकाशित जरूर किया है, पर ईरान सरकार ने फौरन कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी।

बाद में इसी वैबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में ईरान के विदेश विभाग के प्रवक्ता सईद ख़तीबज़ादे ने कहा कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य वार्ता दोनों देशों के लोगों के हित में है और वह क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा में मददगार बनेगी। उन्होंने इराक़ में ईरान और सऊदी अरब की वार्ता की रिपोर्टों के बारे में कहा कि हमने संचार माध्यमों में देखा कि इस बारे में विरोधाभासी ख़बरें प्रकाशित हुई हैं। सऊदी अरब के साथ वार्ता का ईरान स्वागत करता है और यह चीज़ दोनों देशों के लोगों के हित में है।

इराकी पहल

इराक़ी प्रधान मंत्री अल-काज़मी ने सऊदी शाह सलमान के निमंत्रण पर पिछले महीने रियाज़ का दौरा किया था, जहां इस वार्ता का ख़ाका तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट में एक इराक़ी अधिकारी के हवाले से उल्लेख किया गया है कि बग़दाद ने ईरान-मिस्र और ईरान-जॉर्डन के बीच संपर्क का एक चैनल स्थापित किया है। हाल में सऊदी विदेश मंत्री ने कहा था कि विश्वास बढ़ाने के लिए खाड़ी के अरब देशों से वार्ता हो सकती है। इस रिपोर्ट में एक इराक़ी अधिकारी के हवाले से उल्लेख किया गया है कि बग़दाद ने ईरान-मिस्र और ईरान-जॉर्डन के बीच संपर्क का एक चैनल स्थापित किया है।

Monday, December 21, 2020

जन. नरवणे की अरब-यात्रा की पृष्ठभूमि में है भावी आर्थिक-सहयोग

भारत के थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे मंगलवार 8 दिसंबर को एक हफ़्ते के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर जब रवाना हुए, तब कुछ पर्यवेक्षकों का माथा ठनका था। उन्हें यह बात अटपटी लगी। वे भारत और मुस्लिम देशों के रिश्तों को पाकिस्तान के संदर्भ में देखते हैं, जबकि यह नजरिया अधूरा और गलतियों से भरा है। कोविड-19 के कारण यह यात्रा प्रस्तावित समय के बाद हुई है। अन्यथा इसे पहले हो जाना था। इसलिए इसके पीछे किसी तात्कालिक घटना को जोड़कर देखना उचित नहीं होगा।

सच यह है कि पश्चिम एशिया में राजनीतिक-समीकरण बदल रहे हैं। खासतौर से इजरायल के साथ अरब देशों के रिश्तों में बदलाव नजर आ रहा है। हाल में ईरान के नाभिकीय वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के बाद से भी इस इलाके में तनाव है। हत्या के पीछे ईरान ने इजरायल का हाथ बताया है, पर तनाव की गर्म हवाएं सऊदी अरब तक भी पहुँची हैं। स्वाभाविक रूप से ये बातें भी पृष्ठभूमि में होंगी।

Monday, November 23, 2020

नेतन्याहू ने सऊदी शाह से मुलाकात की


वैश्विक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। इसका संकेत पश्चिम एशिया की घटनाओं से मिल रहा है। इसरायली मीडिया के अनुसार इसरायली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने रविवार को सऊदी अरब जाकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो से ख़ुफ़िया मुलाक़ात की है। इसरायली प्रधानमंत्री का सऊदी अरब जाना अपने आप में महत्वपूर्ण परिघटना है। इसराइली मीडिया ने हवाई जहाज़ की उड़ानों को ट्रैक करने वाले डेटा के आधार पर दावा किया है कि नेतन्याहू जिस हवाई जहाज का इस्तेमाल करते हैं, वह सऊदी अरब के शहर नियोम गया था जहां क्राउन प्रिंस और पॉम्पियो पहले से मौजूद थे। इन खबरों के प्रकाशन के बाद सऊदी अरब के विदेशमंत्री शहज़ादा फैज़ल बिन फरहान ने ट्वीट किया कि ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई। जो मुलाकात हुई भी, उसमें केवल अमेरिकी और सऊदी अधिकारी उपस्थित थे। अलबत्ता यह सवाल जरूर उठेगा कि फिर इसरायल से आए उस विमान में कौन था? सवाल यह भी है कि ट्रंप प्रशासन अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में यह सब क्या कर रहा है?

Sunday, June 22, 2014

इराक में गहराती घटाएं

इराक में पिछले कुछ महीनों से हलचल है। कुछ महीनों क्या कुछ साल से इराक और सीरिया की सीमा पर जबर्दस्त जद्दो-जेहद चल रही है। इस खूंरेजी में अमेरिका, इस्रायल, सऊदी अरब, तुर्की और इराक के साथ ईरान की भूमिका भी है। इसके अलावा अल-कायदा या उसके जैसी कट्टरपंथी ताकतों के उभरने का खतरा हो, जो अफ्रीका में बोको हराम या ऐसे ही कुछ दूसरे संगठनों की शक्ल में सामने आ रही है। इस पूरी समस्या के कई आयाम हैं। हमने इसकी ओर अभी तक ध्यान नहीं दिया तो इसकी वजह सिर्फ इतनी थी कि इसमें हम सीध् नहीं लिपटे थे। पर अब बड़ी संख्या में भारतीयों के वहाँ फँस जाने के कारण हम उधर निगाहें फेर रहे हैं। गौर से देखें तो हमारे लिए यह समस्या केवल अपने लोगों के फँसे होने की नहीं है।

Saturday, August 31, 2013

सीरियाः पश्चिम एशिया में एक और ‘इराक’?

 कई सवाल एक साथ हैं? अमेरिकी सेना अगले साल अफगानिस्तान से हटने जा रही है, पर उससे पहले ही सीरिया में अपने पैर फँसाकर क्या वह हाराकीरी करेगी? या वह शिया और सुन्नियों के बीच झगड़ा बढ़ाकर अपनी रोटी सेकना चाहता है? क्या उसने ईरान पर दबाव बनाने के लिए सलाफी इस्लाम के समर्थकों से हाथ मिला लिया है, जिनका गढ़ पाकिस्तान है और जिसे सऊदी अरब से पैसा मिलता है? उधर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सऊदी अरब को धमकी दी है कि सीरिया पर हमला हुआ तो हम सऊदी अरब पर हमला बोल देंगे?  यह धमकी सऊदी शाहजादे बंदर बिन सुल्तान अल-सऊद की इस बात से नाराज होकर दी है कि रूस यदि सीरिया की पराजय को स्वीकार नहीं करेगा तो अगले साल फरवरी में होने वाले विंटर ओलिम्पिक्स के दौरान चेचेन चरमपंथियों खूनी खेल खेलने से रोक नहीं पाएगा। पुतिन की सऊदी शाहजादे से इसी महीने मुलाकात हुई है। पर इसका मतलब क्या है? यह अमेरिका की लड़ाई है या सऊदी अरब की?  अमेरिका इस इलाके में लोकतंत्र का संदेश लेकर आया है तो वह सऊदी अरब के साथ मिलकर क्या कर रहा है?

Thursday, September 13, 2012

अमेरिका विरोध की हिंसक लहर

हमले के बाद बेनग़ाज़ी में अमेरिकी दूतावास के भीतर का दृश्य

कुछ साल पहले डेनमार्क के कार्टूनिस्ट को लेकर इस्लामी दुनिया में नाराज़गी फैली थी। तकरीबन वैसी ही नाराज़गी की शुरुआत अब हो गई लगती है। अमेरिका में शूट की गई एक साधारण सी फिल्म जून के महीने में हॉलीवुड के छोटे से सिनेमाघर में दिखाई गई। इसका नाम है 'इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स'। इसकी कुछ क्लिप्स जब अरबी में अनूदित करके यू ट्यूब पर लगाई गई, तब मिस्र और लीबिया वगैरह में आग भड़क उठी।

इस फिल्म के कई पहलू हैं। पहली बात यह कि यह एक सस्ती सी घटिया फिल्म है।फिल्म के कलाकारों का कहना है कि इसमें इस्लाम को लेकर कहे गए संवाद अलग से डब किए गए हैं। हमें नहीं पता था कि फिल्म में क्या चीज़ किस तरह दिखाई जा रही है। अभी फिल्म के निर्माता सैम बेसाइल का अता-पता नहीं लग पाया है। इतना ज़रूर है कि इसके पीछे इस्लाम विरोधी लोगों का हाथ है।

फिल्म के पीछे कौन है, क्या है से ज्यादा महत्वपूर्ण यह देखना है कि इसका असर क्या है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इसका समर्थन भी नहीं किया जाना चाहिए। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में दो-तीन कारणों से नहीं रखा जा सकता। 1.यह किसी ऐसे बिन्दु को नहीं उठाती, जो इनसानियत के ऊँचे मूल्यों से जुड़ा है। 2.इसके कारण दुनिया के मुसलमानों की भावनाओं को ठेस लगी है।3.इसका उद्देश्य सम्प्रदायों के बीच वैमनष्य बढ़ाना है। इस प्रकार की सामग्री दो वर्गों के बीच कटुता बढ़ाती है और इसका लक्ष्य कटुता बढ़ाना ही है।

पर इस फिल्म के कारण पश्चिम एशिया में अल कायदा से हमदर्दी रखने वाली प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि मिस्र में विरोध शांतिपूर्ण तरीके से हुआ है, पर लीबिया में बाकायदा हथियारों के साथ विरोध हुआ है। इसका मतलब है कि लीबिया में अमेरिका विरोधी तत्व मौज़ूद हैं। सन 2005 में डेनिश कार्टूनों के बाद हिंसा इंडोनेशिया से लेकर अफगानिस्तान और मोरक्को तक फैल गई थी। उसमें 200 से ज्यादा लोग मरे थे।

इस फिल्म को यू ट्यूब में डालने और अरबी अनुवाद करने के पीछे भी किसी की योजना हो सकती है या नहीं भी हो सकती है, पर सोशल साइट्स की भूमिका पर विचार करने की ज़रूरत भी है। मीडिया की भड़काऊ प्रवृत्ति लगातार किसी न किसी रूप में प्रकट हो रही है।  इस किस्म की फिल्मों के बनाने की निन्दा भी की जानी चाहिए।

अल जज़ीरा में पढ़ें

Friday, February 17, 2012

पश्चिम एशिया के क्रॉस फायर में भारत

बुधवार को ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेज़ाद ने तेहरान के रिसर्च रिएक्टर में अपने बनाए नाभिकीय ईंधन के रॉड्स के इस्तेमाल की शुरूआत करके अमेरिका और इस्रायल को एक साथ चुनौती दी है। इस्रायल कह रहा है कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है अब कोई कड़ी कारवाई करनी होगी। ईरान ने नाभिकीय अप्रसार संधि पर दस्तखत कर रखे हैं। उसका कहना है एटम बम बनाने का हमारा इरादा नहीं है, पर ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे एटमी कार्यक्रमों को रोका नहीं जा सकता। इसके साथ ही खबरें मिल रही हैं कि दिल्ली में इस्रायली दूतावास की कार पर हुए हमले का सम्बन्ध बैंकॉक की घटनाओं से जोड़ा जा सकता है।

दिल्ली में इस्रायली दूतावास की गाड़ी में हुआ विस्फोट क्या किसी बड़े वैश्विक महाविस्फोट की भूमिका है? क्या भारतीय विदेश नीति का चक्का पश्चिम एशिया की दलदल में जाकर फँस गया है? एक साथ कई देशों को साधने की हमारी नीति में कोई बुनियादी खोट है? इसके साथ यह सवाल भी है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर क्यों है? दिल्ली के सबसे संवेदनशील इलाके में इस्रायल जैसे देश की अरक्षित कार को निशाना बनाने में सफल होना हमारी विफलता को बताता है। चिन्ता की बात यह भी है कि प्रधानमंत्री निवास काफी करीब था।

Saturday, February 12, 2011

मिस्री बदलाव का निहितार्थ

 हुस्नी मुबारक का पतन क्या मिस्र में लोकतंत्र की स्थापना का प्रतीक है? मेरा ख्याल है कि मिस्र की परीक्षा की घड़ी अब शुरू हो रही है। हुस्नी मुबारक क्या अकेले तानाशाही चला रहे थे? वे सत्ता की कुंजी जिनके पास छोड़ गए हैं क्या वे लोकतंत्र की प्रतिमूर्ति हैं? मिस्र का दुर्भाग्य है कि वहाँ लम्बे अर्से से अलोकतांत्रिक व्यवस्था चल रही थी। लोकतंत्र जनता की मदद से चलता है पर उसकी संस्थाएं उसे चलातीं हैं। भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं खासी मजबूत हैं, फिर भी आए दिन घोटाले सामने आ रहे हैं।मिस्र को अभी काफी लम्बा रास्ता तय करना है। हाँ एक बात ज़रूर है कि इस आंदोलन से राष्ट्रीय आम राय ज़रूर बनी है।