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Sunday, March 28, 2021

पहली वर्षगाँठ, दूसरी लहर


देश में लॉकडाउन की पहली वर्षगाँठ का संदेश बहुत निराशाजनक है। देश में महामारी की एक और लहर कई तरह की चुनौतियों का संदेश दे रही है। साथ ही यह भी बता रही है कि हमने एक साल में कोई सबक नहीं सीखा। जिन  सावधानियों को हमने एक साल पहले अपनाया, उन्हें फौरन भूल गए। खासतौर से जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहाँ यह नादानी पूरी शिद्दत से दिखाई पड़ रही है।

शुक्रवार को भारत में कोविड-9 के नए मामलों की संख्या 60 हजार पार कर गई। पहली लहर में देश में एक दिन में अधिकतम नए केसों की संख्या 97,894 तक पहुँची थी, जो पिछले साल 17 सितम्बर को थी। उसके बाद लगातार गिरावट आती चली गई थी। 16 जनवरी से देश में वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद उम्मीद थी कि हालात जल्द बेहतर हो जाएंगे। लगता है लोगों ने असावधानी बरतनी शुरू कर दी।

नए स्ट्रीम का हमला

ब्रिटेन से वायरस के म्युटेशन की खबरें सुनाई पड़ीं और देखते ही देखते दुनियाभर से नए स्ट्रीम्स की खबरें आने लगीं। दूसरी लहर के साथ कुछ नए खतरे जुड़े हैं। इसबार का संक्रमण पहली बार के मुकाबले ज्यादा तेज है और दूसरे वायरस-म्युटेशन के कारण उसके कई नए स्ट्रीम हमला बोल रहे हैं। पंजाब में हाल में संक्रमित पाए गए लोगों में कोरोना का जो जीनोम मिला है वह तेज प्रसार वाला ब्रिटिश-प्रारूप है। हो सकता है कि महाराष्ट्र में तेज प्रसार देश में ही विकसित नई किस्म के कारण हो।

Monday, January 18, 2021

टीका लगाने की वैश्विक ‘अफरा-तफरी’


शनिवार 9 जनवरी को ब्रिटेन की 94 वर्षीय महारानी एलिज़ाबेथ और उनके 99 वर्षीय पति प्रिंस फिलिप को कोविड-19 का टीका लगाया गया। ब्रिटेन में वैक्सीन की वरीयता सूची में उनका भी नाम था। वैक्सीनेशन की वैश्विक गणना करने वाली एक वैबसाइट के अनुसार 11 जनवरी तक दो करोड़ 38 लाख लोगों को कोविड-19 के टीके लगाए जा चुके थे। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक भारत में भी वैक्सीनेशन का काम शुरू हो जाएगा, जो दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा। हालांकि आबादी के लिहाज से चीन ज्यादा बड़ा देश है, पर वैक्सीन की जरूरत भारत में ज्यादा बड़ी आबादी को है। 

इसे अफरा-तफरी कहें, हड़बड़ी या आपातकालीन गतिविधि दुनिया में इतनी तेजी से किसी बीमारी के टीके की ईजाद न तो पहले कभी हुई, और न इतने बड़े स्तर पर टीकाकरण का अभियान चलाया गया। पिछले साल के शुरू में अमेरिका सरकार ने ऑपरेशन वार्पस्पीड शुरू किया था, जिसका उद्देश्य तेजी से वैक्सीन का विकास करना। वहाँ परमाणु बम विकसित करने के लिए चली मैनहटन परियोजना के बाद से इतना बड़ा कोई ऑपरेशन नहीं चला। यह भी तय था वैक्सीन की उपयोगिता साबित होते ही उसे आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति (ईयूए) मिल जाएगी।

Sunday, January 17, 2021

वैक्सीन यानी भरोसे की वापसी

भारत में कोविड-19 से लड़ाई के लिए जो टीकाकरण अभियान कल से शुरू हुआ है, उसका प्रतीकात्मक महत्व है। यह दुनिया का, बल्कि इतिहास का सबसे बड़ा अभियान है। भारत को श्रेय जाता है कि उसने न केवल त्वरित गति से वैक्सीन तैयार किए, बल्कि उन्हें देश के कोने-कोने तक पहुँचाया। अभियान के पहले चरण में करीब तीन करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा। यह टीकाकरण उस भरोसे की वापसीहै, जिसका पिछले दस महीनों से हमें इंतजार है। भारत केवल अपने लिए ही नहीं, दुनियाभर के लिए टीके बना रहा है।  

उम्मीद है कि इस साल के अंत तक देश की उस आबादी को टीका लग जाएगा, जिसे इसकी सबसे पहले जरूरत है। इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 3,600 केंद्र वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आपस में जुड़ेंगे। पहले चरण में हैल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स, 50 से अधिक उम्र के लोग और कोमॉर्बिडिटी वाले लोगों को टीका लगाया जा रहा है। भारत के इस अभियान के कुछ दिन पहले दुनिया में टीकाकरण का अभियान शुरू हुआ है। वैक्सीनेशन की वैश्विक गणना करने वाली वैबसाइट के अनुसार 15 जनवरी तक तीन करोड़ 85 लाख से ज्यादा लोगों को कोविड-19 के टीके लगाए जा चुके थे। भारत का अभियान शुरू होने के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ेगी।

भ्रामक प्रचार

इस सफलता के बावजूद और टीकाकरण शुरू होने के पहले ही कुछ स्वार्थी तत्वों ने भ्रामक बातें फैलानी शुरू कर दी हैं। उन बातों की कलई टीकाकरण शुरू होने के बाद खुलेगी, क्योंकि अगले कुछ दिनों के भीतर लाखों व्यक्ति टीके लगवा चुके होंगे। चूंकि दुष्प्रचार यह है कि राजनेता टीके लगवाने से बच रहे हैं, इसलिए उसका जवाब देना भी जरूरी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंस में कहा, जब भी आपका नंबर आए वैक्सीन जरूर लें, लेकिन नियम न तोड़ें। उनका आशय है कि वीआईपी होने का लाभ नहीं उठाएं। पर जब टीके को लेकर भ्रांत-प्रचार है, तब प्रतीक रूप में ही सही कुछ नेता टीकाकरण में शामिल होते तो अच्छा था। इनमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और कुछ मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। इससे उन आशंकाओं को दूर करने में मदद मिलती, जो फैलाई जा रही हैं। संदेह दो प्रकार के हैं। एक वैज्ञानिक और दूसरे राजनीतिक। बेशक वैज्ञानिक संदेहों को ही महत्व दिया जाना चाहिए। वैक्सीन के साइड इफैक्ट क्या हैं और उनके जोखिम क्या हैं, उनपर भी बात करनी चाहिए।

Saturday, January 9, 2021

राजनीति के माथे पर वैक्सीन का टीका

भारत सरकार का दबाव रहा हो या फिर मेडिकल साइंस की नैतिकता ने जोर मारा हो वैक्सीन के विकास को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के प्रमुखों के बीच अनावश्यक ‘तू-तू मैं-मैं’ थम गई है। बावजूद इसके प्रतिरोधी-टीके को लेकर कुछ नए विवाद खड़े हो गए हैं। एक तरफ विवादों की प्रकृति राजनीतिक है, वहीं भारत बायोटेक को मिली आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति पर वैज्ञानिक समुदाय के बीच मतभेद है। सभी बातों को एक साथ मिलाकर पढ़ें, तो लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण की थुक्का-फज़ीहत शुरू हो गई है। यह गलत और आपराधिक है।

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर में माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर गगनदीप कांग ने भारत बायोटेक की वैक्सीन को मिली अनुमति को लेकर अपने अंदेशों को व्यक्त किया है। इसके बाद सरकार और वैज्ञानिक समुदाय की ओर से स्पष्टीकरण आए हैं। इन स्पष्टीकरणों पर नीचे बात करेंगे। अलबत्ता विशेषज्ञों के मतभेदों को अलग कर दें, तो राजनीतिक-सांप्रदायिक और इसी तरह के दूसरे संकीर्ण कारणों से विवाद खड़े करने वालों का विरोध होना चाहिए।

तीव्र विकास

महामारी का सामना करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने जितनी तेजी से टीकों का विकास किया है, उसकी मिसाल नहीं मिलती है। सभी टीके पहली पीढ़ी के हैं। उनमें सुधार भी होंगे। गगनदीप कांग ने भी दुनिया के वैज्ञानिकों की इस तीव्र गति के लिए तारीफ की है। टीकों के विकास की पद्धतियों की स्थापना बीसवीं सदी में हुई है। इस महामारी ने उन स्थापनाओं में कुछ बदलाव करने के मौके दिए हैं। यह बात विशेषज्ञों के बीच ही तय होनी चाहिए कि टीकों का विकास और इस्तेमाल किस तरह से हो। औषधि विकास के साथ उसके जोखिम भी जुड़े हैं। भारत में हों या विश्व-स्तर पर हों इस काम के लिए संस्थाएं बनी हैं। हमें उनपर भरोसा करना होगा। पर जनता के भरोसे को तोड़ने या उसे भरमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। इस अभियान में एक मात्र मार्गदर्शक विज्ञान को ही रहने दें।  

Friday, January 1, 2021

2 जनवरी को होगा देश में टीकाकरण का पूर्वाभ्यास


 कोविड टीकाकरण शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे टीकाकरण शुरू करने के लिए 2 जनवरी को पूर्वाभ्यास करें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वे पूरी तरह तैयार हैं। इससे टीका आपूर्ति, शीत भंडारगृह शृंखला समेत भंडारण एवं लॉजिस्टिक्स के प्रबंधन में उनकी क्षमता का पता चल पाएगा। यह टीकाकरण विश्व का अब तक का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम होगा, जिसके लिए सरकार 96,000 टीका लगाने वाले लोगों को प्रशिक्षित कर चुकी है। टीके से संबंधित सवालों के समाधान के लिए राज्य एक हेल्पलाइन 104 शुरू कर रहे हैं। इस बात की संभावना है कि अगले एक-दो दिन में एस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन को भारत में लगाने की अनुमति मिल जाएगी। 

 पूर्वाभ्यास का मकसद जमीनी स्तर पर को-विन एप्लीकेशन के उपयोग की व्यवहार्यता का आकलन करना और टीकाकरण कार्यक्रम की योजना एïवं क्रियान्वयन के बीच तालमेल को जांचना है। इससे राज्यों के चुनौतियों को चिह्नित कर पाने और वास्तविक टीका उपलब्ध कराए जाने से पहले खामियों को दूर करने की संभावना है। यह पूर्वाभ्यास इसलिए भी किया जा रहा है ताकि विभिन्न स्तरों के कार्यक्रम प्रबंधकों में आत्मविश्वास पैदा किया जा सके। सभी राज्यों की राजधानियों में शनिवार को तीन टीकाकरण स्थलों पर पूर्वाभ्यास होगा। इन स्थलों में कुछ उन दुर्गम जगहों पर हो सकते हैं, जहां लॉजिस्टिक उपलब्धता कमजोर है। 

 स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में टीकाकरण शुरू करने के लिए 29,000 कोल्ड टेन पॉइंट, 240 वॉक-इन कूलर, 70 वॉइ-इन फ्रीजर, 45,000 आइस-लाइंड रेफ्रिजरेटर, 41,000 डीप फ्रीजर और 300 सोलर रेफ्रिजरेटर की जरूरत होगी।  स्वास्थ्य मंत्रालय कह चुका है कि कुल 2.39 लाख टीका देने वालों में से 1.54 लाख वे ऑग्जिलियरी नर्सेज ऐंड मिडवाइव्स (एएनएम) होंगी, जो व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम में टीके लगाती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के परिचालन दिशानिर्देशों के मुताबिक प्रभारी चिकित्सा अधिकारी प्रत्येक टीकाकरण स्थल  पर 25 जांच लाभार्थियों- स्वास्थ्य कर्मियों की पहचान करेगा और उनका डेटा को-विन ऐप में अपलोड किया जाएगा। पूर्वाभ्यास में सभी प्रस्तावित टीकाकरण स्थलों का भौतिक सत्यापन भी शामिल होगा ताकि पर्याप्त स्थान, लॉजिस्टिक इंतजाम, इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली एवं सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उदाहरण के लिए प्रत्येक राज्य में तीन मॉडल टीकाकरण स्थलों में 'तीन कमरों के सेट-अप' में अलग-अलग प्रवेश और निकास बिंदु होने चाहिए और जागरूकता गतिविधियों के लिए बाहर पर्याप्त जगह होनी चाहिए। राज्यों को टीकाकरण टीम चिह्नित करनी होंगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें मानक परिचालन प्रक्रिया की जानकारी है और टीका लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इस पूर्वाभ्यास में टीकाकरण के बाद किसी प्रतिकूल स्थिति को संभालने पर भी अहम ध्यान दिया जाएगा।

पूरी रिपोर्ट पढ़ें बिजनेस स्टैंडर्ड में 

Monday, December 14, 2020

वैश्विक स्वास्थ्य-नीतियों पर भी विचार होना चाहिए

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूँजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूँजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Saturday, December 12, 2020

कोरोना महामारी ने खोल कर रख दी वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों की पोल, गारंटी नहीं कि वैक्सीन के बाद नहीं होगा संक्रमण


सन 2020 में जब दुनिया को महामारी ने घेरा तो पता चला कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं। निजी क्षेत्र ने मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया। यह केवल भारत या दूसरे विकासशील देशों की कहानी नहीं है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे धनवान देशों का अनुभव है।

प्रमोद जोशी

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूंजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूंजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Sunday, December 6, 2020

वैक्सीन से जुड़े सवाल

सन 2020 को इतिहास के निर्ममतम वर्षों में गिना जाएगा। इस वर्ष का प्रारंभ वैश्विक महामारी के साथ हुआ था और अब इसका अंत उस महामारी के खिलाफ लड़ाई में विजय के पहले कदम के रूप में हो रहा है। हाल में खबर थी कि ब्रिटेन ने फायज़र की वैक्सीन को स्वीकृति दे दी है। अब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर भारत में भी वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी।

उधर खबर यह भी है कि फायज़र ने भारत के ड्रग कंट्रोलर से अपनी वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति माँगी है। यानी ब्रिटेन के बाद भारत दुनिया का दूसरा देश है, जिससे फायज़र ने अनुमति माँगी है और यदि यह अनुमति मिली, तो पश्चिमी देशों में विकसित वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाला भारत दुनिया में दूसरा देश बन जाएगा।

वैक्सीन के बन जाने से क्या समस्या का पूरी तरह समाधान हो जाएगा? कितने लोगों तक वैक्सीन पहुँच पाएंगी? इनकी कीमत क्या होगी? जनता तक कौन इन्हें पहुँचाएगा? कितनी प्रभावशाली होंगी ये वैक्सीन? कितने समय तक इसका असर रहेगा? क्या पूरी दुनिया के लोगों को वैक्सीन लगानी होगी? नहीं, तो फिर कितने लोगों को इन्हें लगाया जाएगा?

Friday, December 4, 2020

भारत में भी मिलने वाली है वैक्सीन को मंजूरी

 


सब कुछ ठीक रहा तो इस महीने के अंत या जनवरी की शुरुआत में देश की नियामक संस्था कोरोनावायरस टीके के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे देगी।  देश में विभिन्न टीकों का परीक्षण अभी अंतिम चरण में चल रहा है। इसकी जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को दी। (उधर प्रधानमंत्री ने आज सर्वदलीय बैठक में भी इस बात की पुष्टि की कि भारत में वैक्सीन को मंजूरी मिलने वाली है)।

गुलेरिया ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि अल्पावधि में टीका सुरक्षित है। उन्होंने कहा, 'कई आंकड़े उपलब्ध हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं कि टीका बेहद सुरक्षित है। टीके से संबंधित सुरक्षा और असर से किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। परीक्षण के दौरान तकरीबन 70 से 80 हजार स्वयंसेवकों को टीका लगाया गया है लेकिन अब तक कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखा है।'

रूस दुनिया का पहला देश है जिसने इस साल अगस्त में कोरोनावायरस के टीके स्पूतनिक-5 के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। हालांकि तब तक स्पूतनिक के तीसरे चरण का परीक्षण भी पूरा नहीं हुआ था। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सरकार को अगले हफ्ते से व्यापक स्तर पर देश में टीकाकरण शुरू करने का आदेश दिया है।

Wednesday, December 2, 2020

कोरोना के केस शहरों में घटे, ग्रामीण इलाकों में बढ़े


भारत में कोविड-19 संक्रमण के आँकड़ों पर नजर डालें, तो दो बातें स्पष्ट हो रही हैं। पहली, देशभर में संक्रमणों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। 17 सितंबर को यह संख्या सबसे ज्यादा 97,894 थी, जो उसके बाद से लगातार गिरती ही रही है। अब 2 दिसंबर को यह संख्या 36,604 है। इसके एक दिन पहले 1 दिसंबर को यह 31,118 थी।

हर रोज के आँकड़ों पर गौर करें, तो पाएंगे कि यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है, पर अब लगता है कि यह 40 हजार के नीचे आ गई है। यों 17 नवंबर को यह 29,163 थी। इस दौरान इस संक्रमण के निदान के लिए टेस्ट भी भारी संख्या में हुए हैं। गत 24 सितंबर को देश में 14,92,409 टेस्ट हुए थे, जो सबसे बड़ी संख्या है।

Monday, November 30, 2020

वैक्सीन तो तैयार हैं, हमें कब मिलेंगी?

गुजरे कुछ दिनों में कोविड-19 के अमेरिका और यूरोप में प्रसार की खबरें मिलीं, वहीं भारत की राजधानी दिल्ली में फिर से संक्रमणों की बाढ़ है। फिर भी दुनिया में आशा की किरणें दिखाई पड़ी हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब दुनिया में किसी महामारी के फैलने के एक साल के भीतर उसकी वैक्सीन तैयार हो गई है। मॉडर्ना, फायज़र और एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीनें लगभग तैयार होने की स्थिति में हैं और वे सुरक्षित और असरदार है।

भारत सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट से एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोवीशील्ड वैक्सीन की 50 से 60 करोड़ खुराकें खरीदने की योजना बनाई है। एक व्यक्ति को दो खुराकें लगेंगी। इसका मतलब है कि भारत ने पहले दौर में 25-30 करोड़ लोगों के टीकाकरण की योजना बनाई है। जैसे ही ब्रिटिश नियामक संस्था इस वैक्सीन को अनुमति देगी, भारतीय नियामक भी इसे स्वीकृति दे देंगे। उम्मीद है कि जनवरी के अंत या फरवरी में यह वैक्सीन भारत को मिल जाएगी।

Tuesday, November 24, 2020

वैक्सीन-प्रभावोत्पादकता की बहस में अभी पड़ना उचित नहीं


भारत में बन रही एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता को लेकर आज एक खबर दो तरह से पढ़ने को मिली। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है कि यह वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावोत्पादक है। टाइम्स के हिंदी संस्करण नवभारत टाइम्स ने भी यह बात लिखी है, जबकि उसी प्रकाशन समूह के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि यह वैक्सीन 90 फीसदी के ऊपर प्रभावोत्पादक है। खबरों को विस्तार से पढ़ें, तो यह बात भी समझ में आती है कि एस्ट्राजेनेका की दो खुराकें लेने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता 90 फीसदी के ऊपर है। केवल एक डोज की प्रभावोत्पादकता 70 फीसदी है। तमाम टीके एक से ज्यादा खुराकों में लगाए जाते हैं। छोटे बच्चों को चार पाँच साल तक टीके और उनकी बूस्टर डोज लगती है। इसकी डोज कितनी होगी, इसके बारे में इंतजार करें। इसमें दो राय नहीं कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन पर्याप्त कारगर होगी। अभी उसके पूरे विवरण तो आने दें। इस वैक्सीन का निष्कर्ष है कि यह छोटी डोज़ में दो बार देने पर बेहतर असरदार है। जो परिणाम मिले हैं, उनसे पता लगा है कि जिन लोगों को पहली डोज कम और दूसरी डोज पूरा दी गई उनके परिणाम 90 फीसदी के आसपास हैं और जिन्हें दोनों डोज पूरी दी गईं उनका असर 62 फीसदी के आसापास है। इसके पीछे के कारणों का पता तब लगेगा, जब इसके पूरे निष्कर्ष विस्तार से प्रकाशित होंगे। भारत में तो अभी तीसरे चरण के परीक्षण चल ही रहे हैं। 
बहरहाल महत्वपूर्ण खबर यह है कि भारत में वैक्सीन की पहली खुराक एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों को दी जाएगी। मुझे इन खबरों के पीछे हालांकि साजिश कोई नहीं लगती, पर कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा होता है कि फायज़र की वैक्सीन तो 95 फीसदी और मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है, तो यह कम असरदार क्यों हो? पहले तो यह समझना चाहिए कि यह दवा के असर से जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि उस डेटा का विश्लेषण है, जो टीके के दूसरे और तीसरे चरण के बाद जारी हुआ है। इसमें देखा यह जाता है कि कुल जितने हजार लोगों को टीके लगे, उनमें से कितनों को कोरोना का संक्रमण हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार टीका यदि 50 फीसदी या उससे ज्यादा लोगों को बीमारी से रोकता है, तो उसे मंजूरी मिल जानी चाहिए।

Monday, November 2, 2020

कोरोना की एक और लहर से सावधान!

दुनिया के कई देशों, खासकर यूरोप और अफ्रीका में कोरोना की एक और लहर ने दस्तक दी है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी में फिर लॉकडाउन, कर्फ्यू समेत कई तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं। अलबत्ता भारत में लॉकडाउन खत्म हो रहा है। कोरोना के हालात सुधरे हैं। नए केसों की संख्या कम हो रही है, रिकवरी रेट बढ़ा है और मरने वालों की संख्या कम हुई है। तीनों पैमानों पर सुधार के बावजूद अंदेशा है कि अगले दो-एक महीनों में एक लहर और आ सकती है। ठंड बढ़ने, त्योहारी भीड़ बढ़ने और बिहार-चुनाव के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के लगातार उल्लंघनों के कारण इस अंदेशे को बल मिला है।

चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और हांगकांग का रिकॉर्ड फिलहाल सबसे अच्छा है। दुनिया की सबसे सघन आबादी एशिया में रहती है, फिर भी पश्चिमी देशों की तुलना में यहाँ का रिकॉर्ड अच्छा है। इसके पीछे छिपे अनेक कारणों में से एक यह भी है इस इलाके के लोगों ने टीकाकरण को बेहतर तरीके से अपनाया है। पश्चिमी देशों में टीकों का विरोध होता है।

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार 20 अक्तूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक यूके, यूएस, स्पेन, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। यहां संक्रमितों की संख्या में तेजी देखी गई है। न्यू एंड इमर्जिंग रेस्पिरेटरी वायरस थ्रैट्स एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एवं ब्रिटेन सरकार के सलाहकार पीटर हॉर्बी ने कहा है कि बढ़ते मामले को देखते हुए एक बार फिर राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया जा सकता है।

Friday, October 30, 2020

यूरोप में फिर से लॉकडाउन


यूरोप में कोविड-19 की एक और लहर के खतरे को देखते हुए फ्रांस और जर्मनी ने लॉकडाउन की घोषणा की है। ब्रिटेन भी लॉकडाउन लागू करने पर विचार कर रहा है, पर उसके आर्थिक निहितार्थ को देखते हुए संकोच कर रहा है। कुछ शहरों में उसे लागू कर भी दिया गया है। गत बुधवार 28 अक्तूबर को टीवी पर राष्ट्र के नाम संबोधन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि शुक्रवार से लॉकडाउन शुरू होगा, जो करीब एक महीने तक लागू रहेगा। इस दौरान लोगों से अपने घरों में रहने को कहा गया है। रेस्त्रां और बार बंद कर दिए गए हैं। गैर-जरूरी वस्तुओं की दुकानों को भी बंद किया जा रहा है।

उधर जर्मनी की चांसलर अंगेला मार्केल ने कहा है कि देश की संघीय और राज्य सरकारों ने कम प्रतिबंधों के साथ एक महीने के शटडाउन का फैसला किया है। इस दौरान रेस्त्रां, बार, फिटनेस स्टूडियो, कंसर्ट हॉल, थिएटर वगैरह बंद रहेंगे। यह शटडाउन सोमवार से शुरू होगा।

Monday, October 26, 2020

पश्चिमी देशों में संक्रमण की एक और लहर

 

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार 20 अक्तूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक यूके, यूएस, स्पेन, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। यहां संक्रमितों की संख्या में तेजी देखी गई है। न्यू एंड इमर्जिंग रेस्पिरेटरी वायरस थ्रैट्स एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एवं ब्रिटेन सरकार के सलाहकार पीटर हॉर्बी ने कहा है कि बढ़ते मामले को देखते हुए एक बार फिर राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया जा सकता है।

स्पेन ने कोविड-19 संक्रमण की नई लहर को नियंत्रित करने के लिए रात के वक़्त में कर्फ़्यू लगा दिया है और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी है।स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज़ ने कहा कि रात 11 बजे से अगली सुबह छह बजे तक कर्फ़्यू लागू रहेगा यानी लोगों के घर से बाहर निकलने पर रोक रहेगी।  ये प्रतिबंध रविवार से लागू हो गए हैं। सांचेज़ ने यह भी कहा कि आपातकाल के तहत स्थानीय प्रशासन विभिन्न क्षेत्रों में आने-जाने पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे संसद से नए नियमों की समयावधि बढ़ाकर छह महीने करने के लिए कहेंगे, जो फिलहाल 15 दिन है।

Sunday, October 25, 2020

चुनावी ज़ुनून में कोरोना की अनदेखी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के साथ बिहार विधानसभा चुनाव के पहले दौर का प्रचार चरम पर पहुँच रहा है। देश की निगाहें इस वक्त दो-तीन कारणों से बिहार पर हैं। महामारी के दौर में हो रहा यह पहला चुनाव है। चुनाव प्रचार और मतदान की व्यवस्थाओं का कोरोना संक्रमण पर असर होगा। राजनीतिक दल प्रचार के जुनून में अपनी जिम्मेदारियों की अनदेखी कर रहे हैं। चुनाव आयोग असहाय है।

पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद सात विधानसभाओं के चुनाव भी हुए थे। और इस साल के शुरू में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। इन चुनावों का निष्कर्ष है कि फिलहाल वोटर के मापदंड लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अलग-अलग हैं। उत्तर भारत की सोशल इंजीनियरी के लिहाज से बिहार के चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सन 2015 के चुनाव में बिहार ने ही महागठबंधन की अवधारणा दी थी। प्रकारांतर से भारतीय जनता पार्टी ने विरोधी दलों की उस रणनीति का जवाब खोज लिया और उत्तर प्रदेश में वह प्रयोग सफल नहीं हुआ। बिहार में भी अंततः महागठबंधन टूटा।

Monday, October 19, 2020

इस महामारी ने हमें कुछ दिया भी है

कोई आपसे पूछे कि इस महामारी ने आपसे क्या छीना, तो आपके पास बताने को काफी कुछ है। अनेक प्रियजन-परिजन इस बीमारी ने छीने, आपके स्वतंत्र विचरण पर पाबंदियाँ लगाईं, तमाम लोगों के रोजी-रोजगार छीने, सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों पर रोक लगाई, खेल के मैदान सूने हो गए, सिनेमाघरों में सन्नाटा है, रंगमंच खामोश है। शायद आने वाली दीवाली वैसी नहीं होगी, जैसी होती थी। तमाम लोग अपने-अपने घरों में अकेले बैठे हैं। अवसाद और मनोरोगों का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है, जिसका दुष्प्रभाव इस बीमारी के खत्म हो जाने के बाद भी बना रहेगा। जो लोग इस बीमारी से बाहर निकल आए हैं, उनके शरीर भी अब कुछ नए रोगों के घर बन चुके हैं।

यह सूची काफी लम्बी हो जाएगी। इस बात पर वर्षों तक शोध होता रहेगा कि इक्कीसवीं सदी की पहली वैश्विक महामारी का मानवजाति पर क्या प्रभाव पड़ा। सवाल यह है कि क्या इसका दुष्प्रभाव ही महत्वपूर्ण है? क्या इस बीमारी ने हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी नहीं दिया? बरसों से दुनिया मौसम परिवर्तन की बातें कर रही है। प्राकृतिक दुर्घटनाओं की बातें हो रही हैं, पर ऐसी कोई दुर्घटना हो नहीं रही थी, जिसे दुनिया इतनी गहराई से महसूस करे, जिस शिद्दत से कोरोना ने महसूस कराया है। विश्व-समुदाय की भावना को अब हम कुछ बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं, भले ही उसे लागू करने के व्यावहारिक उपकरण हमारे पास नहीं हैं।

Sunday, May 24, 2020

प्रवासी कामगारों की चुनौती


मई के पहले-दूसरे सप्ताह तक जो लड़ाई निर्णायक रूप से जीती हुई लगती थी, उसे लेकर पिछले दस दिनों से अचानक चिंताजनक खबरें आ रही हैं। गत 1 मई को महाराष्ट्र में संक्रमण के 11 हजार से कुछ ऊपर मामले थे, जो 22 मई को 44 हजार से ऊपर हो गए। दिल्ली में साढ़े तीन हजार मामले करीब साढ़े 12 हजार हो गए, तमिलनाडु में ढाई हजार मामले पन्द्रह हजार को छूने लगे, मध्य प्रदेश में 2715 से बढ़कर 6170 और पश्चिम बंगाल में 795 से बढ़कर 3332 हो गए। एक मई को 24 घंटे में पूरे देश में 2396 नए केस दर्ज हुए थे, जबकि 22 मई को 24 घंटे के भीतर 6,088 नए मामले आए।

इस कहानी का यह एक पहलू है। इसका दूसरा पक्ष भी है। सरकार का कहना है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण कम से कम 14-29 लाख नए केस, 37,000-71,000 मौतें बचा ली गईं। यह संख्या विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा तैयार किए गए गणितीय मॉडल पर आधारित हैं। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों के सदस्य डॉ वीके पॉल का कहना है कि भारत ने जो रणनीति अपनाई है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मॉडल के रूप में काम कर रही है। सच यह भी है कि कुल संक्रमितों की संख्या के लगभग आधे का ही इलाज चल रहा है। आधे से कुछ कम ठीक भी हुए हैं।  

Tuesday, May 19, 2020

सुनो समय क्या कहता है


एक मोटा अनुमान है कि देश में करीब 12 करोड़ प्रवासी मजदूर काम करते हैं. ये सारे मजदूर किसी रोज तय करें कि उन्हें अपने घर वापस जाना चाहिए, तो अनुमान लगाएं कि उन्हें कितना समय लगेगा. हाल में जो रेलगाड़ियाँ चलाई गई हैं, उनमें एकबार में 1200 लोग जाते हैं. ऐसी एक हजार गाड़ियाँ हर रोज चलें, तो इन सबको पहुँचाने में सौ से सवा सौ दिन लगेंगे. ऐसा भी तब होगा, जब एक पॉइंट से चली गाड़ी सीधे मजदूर के घर तक पहुँचाए.

रास्तों और स्टेशनों का व्यापक जाल देशभर में फैला हुआ है. इतने बड़े स्तर पर आबादी का स्थानांतरण आसान काम नहीं है. यह प्रवासन एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है और दुनियाभर में चल रही है. भारत के बाहर काम कर रहे लोगों के बारे में तो अभी हमने ज्यादा विचार किया ही नहीं है. कोरोना-दौर में केवल लोगों के परिवहन की बात ही नहीं है. उनके दैहिक अलगाव, स्वास्थ्य और स्वच्छता सम्बद्ध मानकों का पालन भी महत्वपूर्ण है. इस अफरातफरी के कारण संक्रमण बढ़ रहा है.

Sunday, May 17, 2020

हम जरूर होंगे कामयाब


पिछले मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पुरानी बहस को एक नए नाम से फिर से शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट ने हमें स्थानीय उत्पादन और सप्लाई चेन के महत्व से परिचित कराया है। अब समय आ गया है कि हम आत्मनिर्भरता के महत्व को स्वीकार करें। उनका नया नारा है वोकल फॉर लोकल। प्रधानमंत्री ने अपने इस संदेश में बीस लाख करोड़ रुपये के एक पैकेज की घोषणा की, जिसका विवरण वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने चार दिनों में दिया।

क्या यह पैकेज पर्याप्त है, उपयोगी है और क्या हम इसके सहारे डांवांडोल नैया को मँझधार से निकाल पाएंगे? ऐसे तमाम सवाल हैं, पर बुनियादी सवाल है कि क्या हम इस आपदा की घड़ी को अवसर में बदल पाएंगे, जैसाकि प्रधानमंत्री कह रहे हैं? क्या वैश्विक मंच पर भारत के उदय का समय आ गया है? दुनिया एक बड़े बदलाव के चौराहे पर खड़ी है। चीन की आर्थिक प्रगति का रथ अब ढलान पर है। कुछ लोग पूँजीवादी व्यवस्था का ही मृत्यु लेख लिख रहे हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था का भी ह्रास हो रहा है। इस बीच जापान ने घोषणा की है कि बड़ी संख्या में उसकी कम्पनियाँ चीन में अपना निवेश खत्म करेंगी। चीन में सबसे ज्यादा जापानी कम्पनियों की सहायक इकाइयाँ लगी हैं। अमेरिकी कम्पनियाँ भी चीन से हटना चाहती हैं। सवाल है कि क्या यह निवेश भारत आएगा? जिस तरह सत्तर के दशक में चीन ने दुनिया की पूँजी को अपने यहाँ निमंत्रण दिया, क्या वैसा ही भारत के साथ अब होगा?