Wednesday, July 16, 2025

चीन के आंतरिक-मंथन को लेकर अफवाहें


चीन को लेकर आमतौर पर हमेशा ही कुछ खबरें हवा में रहती हैं. इन दिनों भी दो-तीन खबरें चर्चा में हैं. एक, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर है, जिसके पीछे सनसनी नहीं है, पर उसका राजनीतिक महत्व ज़रूर है.

दूसरी चीन की आंतरिक-राजनीति को लेकर है. हाल में वहाँ सेना के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों की तनज़्ज़ुली या बर्खास्तगी हुई है, वहीं कुछ समय से राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सार्वजनिक-कार्यक्रमों में अनुपस्थिति ने ध्यान खींचा है. हाल में ब्राज़ील में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में उन्होंने शामिल न होने का फ़ैसला किया, जिससे अटकलें बढ़ीं.

उनके 13 साल के शासनकाल में ऐसी ही अफवाहें बार-बार उड़ी हैं, और हर बार झूठी साबित हुई हैं. शायद इसबार की चर्चाएँ भी निराधार हैं, पर लगता है कि वहाँ शी चिनफिंग के उत्तराधिकार को लेकर कुछ चल रहा है. शायद वे खुद उत्तराधिकार की व्यवस्था को कोई शक्ल दे रहे हैं.

विश्लेषकों का कहना है कि सत्ता में बने रहने या सत्ता साझा करने की उनकी योजना 2027 में होने वाली पार्टी की अगली पाँच-वर्षीय कांग्रेस से पहले या उसके दौरान लागू हो जाएगी, तब तक उनका तीसरा कार्यकाल समाप्त हो जाएगा.

व्यवस्था-परिवर्तन

बात केवल नेतृत्व परिवर्तन की नहीं है, बल्कि व्यवस्था-परिवर्तन या उसमें संशोधन की भी है. शी ने 2022 में अपने तीसरे और संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की थी. उस वक्त उन्होंने देश की आर्थिक, विदेश और सैनिक नीतियों में बदलाव का इशारा भी किया था.

देश की अर्थव्यवस्था के विस्तार ने विसंगतियों को जन्म दिया है. असमानता का स्तर बढ़ा है. एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है.

Sunday, July 13, 2025

मीनाक्षी जैन

इतिहासकार डॉ मीनाक्षी जैन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। जैन दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकी हैं। उन्होंने भारतीय सभ्यता, धर्म और राजनीति से संबंधित कई पुस्तकें लिखी हैं। इस तथ्य का उल्लेख ज्यादा नहीं हुआ है कि वे  टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक गिरिलाल जैन की पुत्री हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। सामाजिक आधार और जाति एवं राजनीति के बीच संबंधों पर उनका शोध प्रबंध 1991 में प्रकाशित हुआ था। इतिहास के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए 2020 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। उनकी कुछ पाठ्य पुस्तकों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

डॉ जैन नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की शासी परिषद की पूर्व सदस्य भी हैं । संप्रति वे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की वरिष्ठ अध्येता हैं। उनके शोध के क्षेत्रों में मध्यकालीन और प्रारंभिक आधुनिक भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक विकास शामिल हैं।

Saturday, July 12, 2025

दक्षिण एशिया में प्रवेश की चीनी कोशिशें


हाल में भारतीय सेना के उप प्रमुख ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया. हम एक सीमा पर दो विरोधियों या असल में तीन से जंग लड़ रहे थे. पाकिस्तान अग्रिम मोर्चे पर था और चीन उसे हर संभव सहायता प्रदान कर रहा था.

यह बात बरसों से कही जा रही है कि भारत को अब दो मोर्चों पर एकसाथ लड़ाई लड़नी होगी. अभी यह परोक्ष सहयोग है, बाद में प्रत्यक्ष लड़ाई भी हो सकती है. इस खबर के पहले एक और खबर आई थी, जो बताती है कि दक्षिण एशिया में चीन की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है.

गत 19 जून को चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में विदेश कार्यालय स्तर पर अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक की. वैकल्पिक संगठन के लिए चीन-पाकिस्तान की योजना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

Wednesday, July 2, 2025

व्यापार-समझौते और बदलता वैश्विक-परिदृश्य


अमेरिका के दंडात्मक
पारस्परिक टैरिफ से बचने की 9 जुलाई की समय-सीमा जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, भारत-अमेरिका व्यापार-समझौते की संभावनाएँ बढ़ रही हैं. इसमें सबसे बड़ी बाधा भारत के किसानों और पशुपालकों के हितों की लक्ष्मण रेखा है.

पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कि नई दिल्ली के साथ होने वाला अंतरिम द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) अमेरिका के लिए भारतीय बाजार को खोल देगा’, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है, हाँ, हम समझौता करना चाहेंगे.

ट्रंप की टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक भारतीय दल 26 जून को ही अमेरिका के साथ अगले दौर की व्यापार वार्ता के लिए वाशिंगटन पहुँचा. अग्रवाल वाणिज्य विभाग में विशेष सचिव हैं.

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही राष्ट्रपति  ट्रंप ने बुधवार को कहा कि यह समझौता ऐसा होगा, जिसमें अमेरिका की कंपनियां ‘‘आगे बढ़कर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगी’’ क्योंकि यह समझौता ‘‘बहुत कम शुल्क’’ सुनिश्चित करेगा.

एयरफोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा: "मुझे लगता है कि हम भारत के साथ एक समझौता करने जा रहे हैं। और यह एक अलग तरह का समझौता होगा. यह एक ऐसा समझौता होगा जिसमें हम शामिल होकर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे. अभी भारत किसी को भी स्वीकार नहीं करता. मुझे लगता है कि भारत ऐसा करने जा रहा है, और अगर वे ऐसा करते हैं, तो हम बहुत कम टैरिफ पर एक समझौता करने जा रहे हैं..."

राष्ट्रपति की यह टिप्पणी अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट द्वारा मंगलवार को दिए गए बयान के कुछ घंटों बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका और भारत दक्षिण एशियाई देश में अमेरिकी आयात पर शुल्क कम करने तथा भारत को अगले सप्ताह तेजी से बढ़ने वाले ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले शुल्कों से बचने में मदद करने के लिए एक समझौते के करीब पहुंच रहे हैं.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में कहा था, "हम एक बहुत ही जटिल व्यापार वार्ता के बीच में हैं - उम्मीद है कि बीच से भी ज़्यादा बीच में." "ज़ाहिर है, मेरी उम्मीद है कि हम इसे एक सफल निष्कर्ष पर ले जाएँगे। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता, क्योंकि उस चर्चा में एक और पक्ष भी है."

पहला चरण

अमेरिका ने 2 अप्रैल को घोषित उच्च टैरिफ को 9 जुलाई तक निलंबित कर दिया था. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत के साथ समझौता उसके पहले हो जाएगा. यह दीर्घकालीन व्यापार-समझौते का पहला चरण होगा.

इस समझौते से भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती दिशा का पता लगेगा. नब्बे के दशक के आर्थिक-उदारीकरण, के बाद आंतरिक-राजनीति में फिर से नई लहरें पैदा होंगी. अमेरिका के सस्ते कृषि-उत्पादों के भारत आने का मतलब है, खेतों और गाँवों में हलचल.

भारत चाहता है कि अमेरिकी कृषि-उत्पादों की सब्सिडी पर भी बात हो. अब लगता है कि दोनों देश, व्यापार-समझौते के पहले चरण पर जल्द ही पहुँचेंगे, शायद काफी हद तक अमेरिकी शर्तों पर, लेकिन भविष्य में भारतीय चिंताओं को संबोधित करते हुए संभावित समायोजन के साथ.

भारतीय विदेश-नीति के लिहाज से यह हफ्ता काफी महत्वपूर्ण होगा. अगले कुछ समय में अमेरिका के साथ व्यापार-समझौते के अलावा यूरोप और चीन के साथ रिश्तों को लेकर भी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ होने वाली हैं.