Sunday, March 6, 2016

संसद की बेहतर भूमिका

संसद के बजट सत्र के पहले दो हफ्तों का अनुभव अपेक्षाकृत बेहतर रहा है। पिछले दो सत्रों को देखते हुए अंदेशा था कि यह सत्र भी निरर्थक रहेगा। इस अंदेशे के पेशे नजर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में प्रतीकों के सहारे कहा था कि लोकतांत्रिक भावना का तकाजा है कि सदन में बहस और विचार-विमर्श हो। संसद चर्चा के लिए है, हंगामे के लिए नहीं। उसमें गतिरोध नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में रोचक नोक-झोंक तो हुई, पर सदन का समय खराब नहीं हुआ। इस हफ्ते पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखें भी घोषित हो गईं हैं। संसद का यह सत्र चुनावों के साथ-साथ चलेगा, इसलिए चुनाव की प्रतिध्वनि इसमें सुनाई देगी।

संसद के बजट सत्र और बाहरी राजनीति को मिलाकर देखें तो कुछ बातें दिखाई पड़ेंगी

· देश की अर्थ-व्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है। बेशक हम दुनिया की सबसे तेज अर्थ-व्यवस्था बनते जा रहे हैं, पर उस गति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक संस्थागत सुधार अभी हम नहीं कर पाए हैं।

· संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो रही हैं। भारतीय जनता पार्टी अभी पूरी तरह जम नहीं पाई है और कांग्रेस अभी पूरी तरह परास्त नहीं है। अगले दो महीने में देश निर्णायक विजय-पराजय की और बढ़ेगा।

· भारतीय जनता पार्टी को सन 2016 में जिन कारणों से विजय मिली उन्हें लेकर पार्टी के भीतर अभी स्पष्टता दिखाई नहीं पड़ती। आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक सवाल गड्ड-मड्ड हो रहे हैं। हाल में जाट-आरक्षण आंदोलन और जेएनयू प्रकरण ने इस असमंजस को बढ़ाया है।

संसद का एक सकारात्मक संदेश यह है कि राजनीतिक दल दोनों सदनों का ज्यादा से ज्यादा समय विचार-विमर्श को देने पर सहमत हैं। बजट सत्र सबसे लम्बा सत्र होता है और यह दो भागों में चलता है। 23 फरवरी से शुरू हुआ पहला भाग 16 मार्च को पूरा होगा। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार इस सत्र में 2 मार्च तक लोकसभा ने अपने नियत समय से ज्यादा यानी 111 फीसदी काम किया है और राज्यसभा ने 88 फीसदी। पिछले दो सत्रों के मुकाबले यह बड़ा सुधार है। शीत सत्र में लोकसभा ने 98 फीसदी और राज्यसभा ने 50 फीसदी समय का उपयोग किया था। उसके पहले मॉनसून सत्र में लोकसभा ने 48 फीसदी और राज्यसभा ने केवल 9 फीसदी समय का इस्तेमाल किया।

बजट सत्र के पहले दौर में ज्यादातर बातें राजनीतिक सवालों के इर्द-गर्द रहेंगी। धन्यवाद प्रस्ताव पर राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बीच नोक-झोंक से इसकी शुरूआत हो चुकी है। पिछले दो साल में नरेंद्र मोदी अपेक्षाकृत संयत रहे थे, पर इस सत्र में उन्होंने राहुल गांधी और कांग्रेस पर सीधे कुछ निशाने लगाए। कांग्रेस का कहना है कि यह राहुल गांधी की सफलता है, क्योंकि मोदी राहुल की सफलता से परेशान हो रहे हैं। राहुल गांधी ने अपने सलाहकारों की मदद से अपना मेक-ओवर किया है। उनके बयानों में नाटकीयता और सहजता बढ़ी है। देखना होगा कि क्या इतने मात्र से काम पूरा हो जाएगा। भाजपा और कांग्रेस के बीच महत्वपूर्ण लड़ाई असम विधानसभा के चुनाव की है।

हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत की वृद्धि को हाल ही में किए गए नीतिगत सुधारों से फायदा होगा। साथ ही उसने आर्थिक सुधारों की गति तेज करने का सुझाव दिया है। आईएमएफ के एशिया व प्रशांत विभाग की उप निदेशक कल्पना कोचर ने इधर कहा, 'हम भारत की वृद्धि की संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं। मुद्रास्फीति में नरमी आई है, चालू खाते का घाटा काबू में है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार पर्याप्त है... आर्थिक वृद्धि तेज है।' कोचर ने विभिन्न सकारात्मक घटनाक्रमों को गिनाते हुए कहा कि कई महत्वपूर्ण आर्थिक एवं ढांचागत सुधार के लिए भी पहल की गई है। मोदी सरकार के लिए संस्थागत सुधार बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं।

पिछले साल जनवरी में दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सुधार प्रक्रिया और अन्य नीतिगत पहलों का कुल असर बिग-बैंग से भी बढ़कर होगा। उनके बजट से बिग बैंग सुधारों की आशा थी, पर ऐसा हुआ नहीं। इस साल के बजट में भी नहीं हुआ। फिलहाल सरकार ने सुधार के रूप में नया आधार कार्ड विधेयक पेश किया है। यह नया आधार विधेयक वर्ष 2016 के वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के वितरण पर लक्षित है। इसकी घोषणा इस बार के बजट में थी। यह एक महत्वपूर्ण सुधार है, पर सरकार सुधार के ज्यादातर मोर्चों पर लोक-लुभावन रास्ते पर जा रही है।

अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति ने कहा था कि संस्थाओं को बेहतर बनाने, प्रक्रियाओं को सरल बनाने तथा पुराने कानूनों को हटाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। लगभग 1800 पुराने कानूनों को समाप्त करने की प्रक्रिया जारी है। सरकार बनने के फौरन बाद सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की प्रक्रिया शुरू की। उसे समझ में आया कि यूपीए सरकार ने जो कानून पास किया है उसके कारण विकास कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण लगभग असम्भव हो गया है। पर पार्टी ने अपनी ताकत को गलत आँक लिया और इसके लिए अध्यादेश का सहारा लिया, पर वह अब तक अपने विधेयक को पास कराने में कामयाब नहीं हो पाई है। सबसे बड़ा अड़ंगा राज्यसभा में है।

यही स्थिति जीएसटी विधेयक की है। इन दोनों के अलावा ह्विसिल ब्लोवर संरक्षण, औद्योगिक (विकास और नियमन) तथा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन से जुड़े विधेयक भी राज्यसभा में पड़े हैं। भ्रष्टाचार रोकथाम, बैंकरप्सी कोड, रियल एस्टेट रेग्युलेशन, फैक्ट्री संशोधन और आरबीआई एक्ट जैसे विधेयकों का अर्थव्यवस्था से सीधा रिश्ता है। बजट सत्र के 25 अप्रैल से 13 मई तक के दौर में इन विधेयकों को लेकर कुछ गतिविधि होने की आशा है। यह दौर सरकार की अग्नि परीक्षा का होगा।

कांग्रेस के अस्तित्व के लिए भी यह सत्र महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। राज्यसभा में कांग्रेस की ताकत घटने वाली है। इस साल 21 मार्च से 1 अगस्त के बीच राज्यसभा की 74 सीटें खाली होंगी और नए सदस्य आएंगे। क्या सरकार इसका लाभ उठाएगी? दूसरी ओर कांग्रेस असम, बंगाल और तमिलनाडु में राजनीति के नए प्रयोग करने जा रही है। संसद से सड़क तक अगले दो-तीन महीने हर लिहाज से काफी रोचक और महत्वपूर्ण होंगे।

हरिभूमि में प्रकाशित

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