भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2 नवंबर को, भारतीय नौसेना के लिए जीसैट-7आर का प्रक्षेपण करके अपनी दक्षता को एक बार फिर से साबित किया है। दक्षता इसलिए क्योंकि देश के सबसे शक्तिशाली रॉकेट लॉन्च वेहिकल मार्क-3 (एलवीएम-3) का इसमें इस्तेमाल हुआ था, जिसकी भार वहन क्षमता मोटे तौर पर 4000 किलोग्राम की थी, पर उसने जिस उपग्रह का प्रक्षेपण किया, उसका भार 4,410 किलोग्राम था। भारतीय धरती से प्रक्षेपित यह अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है।
सीएमएस-03 (जीसैट-7आर) सैन्य संचार उपग्रह है, जिसका वित्तपोषण पूरी तरह से रक्षा मंत्रालय ने
किया है। इसे हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षित, मल्टी-बैंड
संचार लिंक प्रदान करने के लिए भारतीय नौसेना के उपयोग के लिए विशेष रूप से
डिज़ाइन किया गया है। यह उपग्रह पोतों, पनडुब्बियों और
विमानों के बीच आवाज, डेटा और वीडियो लिंक के लिए संचार
नेटवर्क का काम करेगा। मुख्य मिशन के रूप में इसका काम समुद्री सुरक्षा और निगरानी
है। यह पुराने जीसैट-7 (रुक्मिणी) की जगह लेगा, जो 2013 से सेवा में है। जीसैट-7 और जीसैट-7ए देश के समर्पित सैन्य संचार उपग्रह
हैं। दिसंबर 2018 में प्रक्षेपित जीसैट-7ए, मुख्यतः वायुसेना के लिए डिज़ाइन किया गया है। थलसेना
आंशिक रूप से इसकी लगभग 30 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करती है।
हमारे संचार उपग्रह अपेक्षाकृत भारी होते हैं। इसरो की कोशिश होती है कि एक ही अंतरिक्ष यान में व्यापक कवरेज, उच्च शक्ति और लंबी सेवा अवधि का मेल हो। पूरे देश और आस-पास के समुद्रों की कवरेज के लिए, संचार पेलोड को कई आवृत्ति बैंडों में कई चैनलों की आवश्यकता होती है। इसके लिए कई बड़े एंटेना, उच्च-शक्ति एम्पलीफायर, वेवगाइड, फ़िल्टर, स्विच कई एनालॉग ट्रांसपोंडरों या लचीले डिजिटल प्रोसेसर की आवश्यकता होती है। 12 से 15 साल तक कई किलोवाट बिजली की आपूर्ति के लिए, उपग्रहों में बड़े सौर पैनल, पर्याप्त बड़ी बैटरियाँ और पावर कंडीशनिंग इकाइयाँ होती हैं। इस वजह से वजन बढ़ता है।
चार हजार किलोग्राम से अधिक वज़न वाला जीसैट-7आर इसरो का यह पहला उपग्रह है, जिसे देश की धरती से दूरस्थ भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित किया गया है। इस प्रक्षेपण ने उस बाधा को तोड़ा, जो अपने प्रक्षेपकों की मदद से भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण से हमें रोकती थी।




