Monday, January 25, 2021

प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘बात’

साहित्य के पन्नों में अनेक रचनाएं ऐसी हैं, जिन्हें आज भी पढ़ा जाए, तो नई लगती हैं। इंटरनेट ने बहुत सी पुरानी सामग्री को पढ़ने का मौका दिया है। मैं अपने ब्लॉग में चयन उप शीर्षक से पुरानी रचनाओं को लगाना शुरू कर रहा हूँ। इनमें निबंध, कहानियाँ, कविताएं और किसी बड़ी रचना के अंश भी होंगे। हालांकि बुनियादी तौर पर इसमें हिन्दी रचनाएं होंगी। यदि मैं देवनागरी में उर्दू रचनाओं को हासिल कर सका, तो उन्हें भी यहाँ रखूँगा। विदेशी भाषाओं के अनुवाद रखने का प्रयास भी करूँगा। शुरुआत प्रताप नारायण मिश्र के निबंध बात से। प्रताप नारायण मिश्र भारतेन्दु काल के लेखक थे भारतेंदु पर उनकी अनन्य श्रद्धा थी, वह अपने आप को उनका शिष्य कहते तथा देवता की भाँति उनका स्मरण करते थे। भारतेंदु जैसी रचना शैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण मिश्र जी "प्रति-भारतेंदु" और "द्वितीय हरिश्चंद्र" कहे जाने लगे थे। संयोग से यह वह समय है, जिसे हिन्दी या हिन्दू राष्ट्रवाद के विकास का समय भी कहा जाता है। उन्होंने 'ब्राह्मण' मासिक पत्र में हर प्रकार के विषय पर निबंध लिखे। जैसे-घूरे के लत्ता बीने-कनातन के डोल बांधे, समझदार की मौत है,आप, बात, मनोयोग, बृद्ध, भौं, मुच्छ, , , द आदि। मैं इनमें से कुछ निबंधों को अपने पाठकों के सामने रखूँगा।


यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते। किंतु इन दोनों विषयों में हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। इससे केवल उसी बात के ऊपर दो चार बात लिखते हैं जो हमारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्‍थ भाव प्रकाशित करती रहती है। सच पूछिए तो इस बात की भी क्या बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफुल मखलूकात) कहलाती है। शुक-सारिकादि पक्षी केवल थोड़ी सी समझने योग्‍य बातें उच्चरित कर सकते हैं इसी से अन्‍य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। फिर कौन न मान लेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को सब लोग निराकार कहते हैं तो भी इसका संबंध उसके साथ लगाए रहते हैं। वेद ईश्वर का वचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्‍लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं सो प्रत्‍यक्ष में मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलंबियों ने "बिन बानी वक्‍त बड़ योगी" वाली बात मान रक्खी है। यदि कोई न माने तो लाखों बातें बना के मनाने पर कटिबद्ध रहते हैं।

कृषि कानूनों को लेकर पीछे हटने की वजह!


24 जनवरी 2021 के बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित अपने कॉलम
राष्ट्र की बातमें शेखर गुप्ता ने लिखा है कि मोदी सरकार ने कृषि कानूनों पर पीछे हटकर अधैर्य का परिचय दिया है। उन्होंने लिखा, बहानेबाजी, मिशन को रद्द करना, झिझक जाना, रणनीतिक रूप से कदम पीछे करना, गतिरोध, कृषि सुधारों को लेकर मोदी सरकार की दुविधा समझाने के लिए इनमें से किसी भी शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे हार या आत्मसमर्पण न मानें तो भी यह दुविधा तो है। यह दुखद है क्योंकि ये कानून साहसी और सुधारवादी हैं और ये किसानों को नुकसान पहुंचाने के बजाय मददगार साबित होंगे।

बहरहाल, अहम सुधारों को राजनीतिक ढंग से लुभावना बनाना होता है। अब सुधारों को गुपचुप और चरणबद्ध तरीके से अंजाम देने का वक्त नहीं रहा। ऐसे में समझना होगा गलती कहां हुई। दरअसल कोई भी कानून उतना ही अच्छा या बुरा होता है जितना कि उससे प्रभावित लोग उसे पाते हैं।

 

हमारी दृष्टि में सात प्रमुख वजह हैं जिनके कारण मोदी-शाह की भाजपा किसानों को यकीन दिलाने में नाकाम रही।

 

1.वे यह नहीं मानना चाहते कि उत्तर भारत में एक ऐसा गैर मुस्लिम राज्य है जहां मोदी को वह लोकप्रियता हासिल नहीं जो उन्हें हिंदी प्रदेश में है।

 

2.वे यह नहीं मानते कि उन्हें कभी स्थानीय साझेदार की जरूरत महसूस नहीं हुई। अकालियों से अलग होने की यही वजह है। पंजाब के सिख, असम के हिंदुओं जैसे नहीं हैं जो मोदी को तब भी वोट देते हैं जब वह उनकी क्षेत्रीय पार्टी को हाशिए पर धकेल दें और उनके नेताओं को चुरा लें।

 

3.इस स्तंभ में पहले भी लिखा जा चुका है कि वे सिखों को नहीं समझते। अलग वेशभूषा के बावजूद वे उन्हें मूल रूप से हिंदू मानते हैं। सच यह है कि वे हिंदू हैं लेकिन नहीं भी हैं। परंतु मोदी-शाह की भाजपा को भी बारीकियों की अधिक समझ नहीं है।

 

4.भाजपा यह समझ नहीं पाई कि पंजाब के किसान 20वीं सदी के आरंभ में भगत सिंह से भी पहले वाम प्रभाव में आ गए थे। सिखों और गुरुद्वारों में सामुदायिक गतिविधियों की परंपरा रही है। वाम के संगठनात्मक कौशल और राजनीतिक विवेक को भी इसमें शामिल कर दिया जाए। नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल को वार्ताओं में इन्हीं का सामना करना है।

 

5.इन्हीं सब वजहों से मोदी सरकार सुधारों का प्रचार प्रसार करने से नहीं हिचकिचाई। उसने हरित क्रांति वाले और अधिशेष उपज उत्पन्न करने वाले किसानों को यह नहीं बताया कि जिस व्यवस्था के अधीन उनकी दो पीढ़ियां समृद्ध हुई हैं वह ध्वस्त हो चुकी है। उसने बस इसे ठीक करने के लिए तीन कानून बना दिए।

 

6.आप सिखों के खिलाफ बल प्रयोग नहीं कर सकते। स्पष्ट कहें तो उनके साथ मुस्लिमों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। आप उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठा सकते। अगर उनके साथ मुस्लिमों जैसा व्यवहार किया गया तो पूरा देश विरोध करेगा। वहीं अगर उनकी देशभक्ति पर सवाल उठा तो सिख आप पर हंसेंगे और पूरा देश आपसे पूछेगा कि आपकी दिक्कत क्या है। यानी उनके खिलाफ जाने-पहचाने हथियार इस्तेमाल नहीं किए जा सकते: बल प्रयोग, एजेंसियों का इस्तेमाल, दुष्प्रचार, अतिशय राष्ट्रवाद आदि।

 

7.आखिर में मोदी-शाह की भाजपा का जाना-पहचाना रुख: अतीत के प्रति अवमानना का भाव। क्योंकि वे मानते हैं कि भारत का इतिहास 2014 की गर्मियों से शुरू हुआ और उसके पहले जो कुछ हुआ वह एक त्रासदी थी और उससे कोई सबक लेना उचित नहीं।

 

सातवें बिंदु पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं। यदि सन 2014 के बाद के भाजपा नेता सत्ता और आत्म मोह से ग्रस्त न होते तो शायद वे किसी से कहते कि उन्हें देश से जुड़े अनुभवों से वाकिफ कराए। यकीनन तब उन्हें जवाहरलाल नेहरू की उन तमाम कथित गलतियों की जानकारी नहीं मिलती जिनके बारे में उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बताया गया। तब उन्हें यह अवश्य पता चलता कि कैसे एक अत्यंत ताकतवर नेता को जो अपनी लोकप्रियता के शिखर पर था उससे गलती हुई और उसे अपने कदम वापस लेने पड़े।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें पूरा आलेख


सावधान, निधि राजदान की तरह आप भी हो सकते हैं ‘फिशिंग’ के शिकार


एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार निधि राजदान ने हाल में ट्वीट करके अपने साथ हुई ऑनलाइन धोखाधड़ी की जानकारी दी है। पिछले साल एनडीटीवी के 21 साल के करिअर को उन्होंने इस विश्वास पर छोड़ दिया था कि उन्हें अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के अध्यापन का ऑफर मिला है। राजदान ने ट्वीट के साथ नत्थी अपने बयान में लिखा, मुझे यह यकीन दिलाया गया था कि सितंबर में मुझे हार्वर्ड विवि में अध्यापन शुरू करने का मौका मिलेगा। जब मैं नए काम पर जाने की तैयारी कर रही थी, तो बताया गया कि कोरोना की महामारी के कारण कक्षाएं जनवरी में शुरू होंगी।

इस मामले में हो रही देरी को लेकर उन्हें गड़बड़ी का अंदेशा होने लगा, जो अंत में सही साबित हुआ। निधि ने अपने ट्वीट में लिखा कि मैं बहुत ही गंभीर फिशिंग हमले की शिकार हुई हूँ। निधि राजदान के इस ट्वीट के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं, ज्यादातर की प्रकृति राजनीतिक है। इस प्रकरण के नैतिक और कानूनी निहितार्थ पर इस आलेख में विचार करने का इरादा नहीं है। केवल फिशिंग, सायबर हमलों और उनकी प्रकृति का परिचय देने का उद्देश्य है।

जानकारियाँ दे दीं

एक बात जो निधि राजदान ने अपने ट्वीट में लिखी वह है, इस हमले के पीछे के लोगों ने चालाकी से मुझसे जुड़ी जानकारियाँ हासिल कीं और संभव है कि उन्होंने मेरे उपकरणों (कंप्यूटर, फोन वगैरह), ईमेल/ सोशल मीडिया एकाउंट वगैरह तक भी घुसपैठ कर ली हो। फिशिंग एक प्रकार की ठगी और आपराधिक कारनामा है। इंटरनेट-अपराधों का दायरा वैश्विक है। यह पता लगाना आसान नहीं होता कि वे कहाँ से संचालित किए जा रहे हैं। बेशक धोखाधड़ी के पीछे कोई शातिर दिमाग है। पता नहीं उसने अपने फुटप्रिंट छोड़े हैं या नहीं। उसका उद्देश्य क्या है? ऐसे तमाम सवाल है, अलबत्ता इस मामले ने फिशिंग के एक नए आयाम की ओर दुनिया का ध्यान जरूर खींचा है।

Sunday, January 24, 2021

हर्ष और विषाद के दोराहे पर गणतंत्र


हम अपना 72वाँ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। अगले साल 15 अगस्त को हम 75वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। हमारे तीन राष्ट्रीय पर्व हैं। स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, गांधी जयंती 2 अक्तूबर और ‘गणतंत्र दिवस’ 26 जनवरी। वास्तविक अर्थ में जनता का दिन। कैसा महसूस कर रहे हैं आप? जवाब आपके चेहरों पर लिखा है। बेशक यह खुशी का मौका है, पर इस साल हम हर्ष और विषाद के दोराहे पर हैं।

रघुवीर सहाय की एक कविता की अंतिम पंक्तियाँ हैं, ‘कौन-कौन है वह जन-गण-मन/ अधिनायक वह महाबली/ डरा हुआ मन बेमन जिसका/ बाजा रोज़ बजाता है।’ इस सवाल की गहराई पर जाने की कोशिश करें। वह जन-गण-मन अधिनायक कौन है, जिसका बाजा हमारा डरा हुआ मन रोज बजाता है? कुछ ऐसा संयोग पड़ा है कि इस गणतंत्र दिवस पर दो अंतर्विरोधी घटनाएं एक साथ हो रही हैं।

करीब-करीब एक साल तक महामारी के दंश से पीड़ित देश ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया है। मृत्यु पर जीवन की विजय। दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सकीय परियोजना। दूसरी ओर गणतंत्र दिवस के मौके पर नाराज किसान ट्रैक्टर मार्च निकालने जा रहे हैं। महात्मा गांधी ने कहा था, भारत का प्रधानमंत्री एक किसान होना चाहिए। विडंबना है कि गांधी के देश में किसान आंदोलन की राह पर हैं।  

व्यथित देश

हर्ष से ज्यादा गहरा गणतांत्रिक विषाद है। दशकों पहले काका हाथरसी ने लिखा, ‘जन-गण-मन के देवता, अब तो आँखें खोल/ महँगाई से हो गया, जीवन डांवांडोल।’ काका को भी जन-गण-मन के देवता से शिकायत थी। हम अपने गणतंत्र से संतुष्ट नहीं हैं, तो क्यों? कौन है जिम्मेदार इसका? इस गणतंत्र दिवस पर तीन बातें एक साथ सामने हैं। एक, कोविड-19 से मुकाबला, दूसरे, अर्थ-व्यवस्था की वापसी और तीसरे किसान आंदोलन। तीनों परेशान करती हैं और तीनों के भीतर संभावनाएं हैं। इन तीन के अलावा सामाजिक जीवन में घुलता विषाद भी बड़ी समस्या है।

Saturday, January 23, 2021

क्या बदलेंगे जो बाइडेन?


डोनाल्ड ट्रंप के पराभव के साथ अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने तेजी से काम शुरू किया है। किसी भी बदलाव के बाद के कुछ दिन बड़े महत्वपूर्ण होते हैं, पर असली बदलाव कुछ समय बाद नजर आता है। उसके तुलनात्मक अध्ययन होते हैं। इसमें दो राय नहीं कि ट्रंप तुनुकमिजाज और बेहद अप्रत्याशित व्यक्ति हैं। पर दूसरा सच यह भी है कि उनके कार्यकाल में अमेरिका के सैनिक अभियान अपेक्षाकृत कम हुए। उन्होंने शोर ज्यादा मचाया, पर टकराव कम मोल लिए। चीन और ईरान के साथ जो टकराव उन्होंने मोल लिए हैं, वे अब खत्म हो जाएंगे, ऐसा नहीं मान लेना चाहिए। अलबत्ता वैश्विक पर्यावरण को लेकर ट्रंप की जुनूनी राजनीति ज्यादा नहीं चल सकती थी।

हमारे नजरिए से सवाल पूछा जा रहा है कि भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते कैसे रहेंगे? इसे मामले में एक बात समझ ली जानी चाहिए कि विदेश-नीति से जुड़े मसलों में निरंतरता रहती है। यों भी जो बाइडेन भारत समर्थक माने जाते हैं। उनके कार्यकाल में भारत और अमेरिका की मैत्री प्रगाढ़ ही होगी। उसमें किसी किस्म की कमी आने के संकेत नहीं हैं। अलबत्ता नए प्रशासन की आंतरिक और विदेश नीति में काफी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं। बाइडेन ने जो फैसले किए हैं, उनमें भारत को लेकर सीधे कोई बात नहीं है, पर उनके रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जो कहा है, वह जरूर महत्वपूर्ण है। हमें आने वाले समय में भारत के प्रति उनकी नीति की प्रतीक्षा करनी होगी। भारत-नीति ही नहीं पाकिस्तान-नीति पर भी हमें नजरें रखनी होंगी।