Monday, November 9, 2020

पाकिस्तान में विरोधी आंदोलन का अगला दौर

इस्लामाबाद में मौलाना फजलुर्रहमान

पाकिस्तान के विरोधी दलों के आंदोलन पीडीएम का अगला दौर अब 13 नवंबर से शुरू होगा, जब 11 दलों का यह गठबंधन इस्लामाबाद में बैठक करने के बाद एक माँग-पत्र जारी करेगा। रविवार 8 नवंबर को पीडीएम के अध्यक्ष मौलाना फजलुर्रहमान ने इस्लामाबाद में कहा कि सभी दल अपने-अपने प्रस्ताव उस बैठक में रखेंगे, जिसके बाद उसके अगले दिन सभी दलों के प्रमुखों की बैठक में उस माँग-पत्र को अंतिम रूप दिया जाएगा।

मौलाना फजलुर्रहमान ने इस्लामाबाद में इन दलों की बैठक के बाद इस आंदोलन की भावी दिशा के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य देश में वास्तविक सांविधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना है। इस बैठक में पाकिस्तान मुस्लिम लीग नून के अध्यक्ष नवाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली ज़रदारी क्रमशः लंदन और कराची से वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल हुए थे। पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ज़रदारी गिलगित-बल्तिस्तान में 15 नवंबर को होने वाले चुनाव के सिलसिले में वहाँ व्यस्त हैं।

इक्कीसवीं सदी की कट्टर हवाएं

फ्रांस में केवल हाल की घटनाओं पर ध्यान देने के बजाय पिछले आठ साल के घटनाक्रम पर नजर डालें, तो साफ नज़र आता है कि दुनिया एक ऐसे टकराव की ओर बढ़ रही है, जिसकी उम्मीद कम से कम इक्कीसवीं सदी से नहीं की जा रही थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के शुरूआती बयानों और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की प्रतिक्रियाओं ने आग में घी का काम किया है। जरूरत इस बात की है कि इसे भड़कने से रोका जाए।

दो बातों पर विचार करने की जरूरत है। एक, धार्मिक आस्था पर हमले करते समय क्या कोई मर्यादा रेखा नहीं चाहिए? दूसरे यह कि क्या धार्मिक आस्था पर हुए सायास हमले का जवाब निर्दोष लोगों की हत्या से दिया जाना चाहिए? हिंसक कार्रवाई का समर्थन किसी रूप में नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति मैक्रों ने शुरूआती कठोर रुख अपनाने के बाद अल जज़ीरा के साथ बातचीत में अपेक्षाकृत सावधानी के साथ अपनी बात रखी है। उनका कहना है कि मैं दुनिया के मुसलमानों की भावनाओं की कद्र करता हूँ। पर आपको समझना होगा कि मेरी दो भूमिकाएं हैं। पहली है हालात को शांत करने की और दूसरी लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने की।

धार्मिक आवेश

गले काटने की घटनाओं पर दुनियाभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। फ्रांस की कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो ने पुराने कार्टूनों को फिर से छापने का फैसला किया, जिसके कारण यह विरोध और उग्र हुआ है। फ्रांस में ईशनिंदा अपराध नहीं माना जाता। वहाँ इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में रखा जाता है। इस वजह से पिछले आठ साल से फ्रांस में आए दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं। इनमें 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। फ्रांस में करीब 85 लाख मुसलमान रहते हैं, जो यूरोप में इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी है।

Sunday, November 8, 2020

भारतीय दृष्टि में जो बिडेन

 


डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं। अब उनकी टीम और उनकी नीतियों को लेकर बातें हो रही हैं। हमारी दृष्टि से पहला सवाल यह बनता है कि वे भारत के लिए कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे? हमारे देश के ज्यादातर लोग समझना चाहते हैं कि भारत के प्रति उनका नजरिया कैसा होगा। क्या वे हमारे मित्र साबित होंगे? इस सवाल का सीधा जवाब है कि वे साबित होंगे या नहीं, यह दीगर बात है, वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं।

वे बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक थे। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उप राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। वस्तुतः उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।

कश्मीर के लिए शुभ है नई राजनीतिक पहल



जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के गुपकार गठबंधन ने जिला विकास परिषद के चुनावों में मिलकर उतरने की घोषणा करके राजनीतिक गतिविधियों में जान डाल दी है। देखना होगा कि ये राजनीतिक दल जनता के साथ किस हद तक जुड़ते हैं। साथ ही यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान परस्त हुर्रियत कांफ्रेंस की भूमिका क्या होगी। चूंकि हुर्रियत चुनाव के बहिष्कार की घोषणा करती है, जिसके कारण मतदान कम होता है। यदि कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़ेगा, तो कश्मीर में हालात सामान्य करने में आसानी होगी।

कुछ समय पहले तक ये दल जम्मू-कश्मीर को पुराना स्टेटस बहाल न होने तक किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल न होने की बात कह रहे थे। अब शनिवार 7 नवंबर को उन्होंने एकजुट होने की घोषणा करके एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। कांग्रेस पार्टी शुरू में गुपकार गठबंधन की बैठकों में शामिल हुई थी, पर उसने इसमें शामिल होने की घोषणा नहीं की है। अलबत्ता पार्टी ने चुनाव में शामिल होने की घोषणा जरूर की है। अलबत्ता रविवार को फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस हमारे साथ मिलकर डीडीसी के चुनाव लड़ेगी, जबकि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी कह रहे हैं कि हम अलग रहकर चुनाव लड़ेंगे।

अमेरिकी ‘बीरबल की खिचड़ी’

अमेरिकी चुनाव-व्यवस्था बीरबल की खिचड़ीसाबित हो रही है। हालांकि जो बिडेन ने राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी बहुमत हासिल कर लिया है, पर लगता है कि औपचारिक रूप से अंतिम परिणाम आने में समय लगेगा। जॉर्जिया ने फिर से गिनती करने की घोषणा की है। कुछ दूसरे राज्यों में ट्रंप की टीम ने अदालतों में अर्जियाँ लगाई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि न्यायिक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, पर सन 2000 में केवल फ्लोरिडा का मामला अदालत में गया था, जिसका फैसला होने 12 दिसंबर को हो पाया था। इसबार तो ज्यादा मामले हैं।

 डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं। परिणाम आने में देर इसलिए भी हुई, क्योंकि डाक से भारी संख्या में मतपत्र आए हैं। ऐसा कोरोना के कारण हुआ है। डाक से आए ज्यादातर वोट बिडेन के पक्ष में हैं, क्योंकि ट्रंप ने अपने वोटरों से कहा था कि वे कोरोना से घबराएं नहीं और मतदान केंद्र में जाकर वोट डालें, जबकि बिडेन ने डाक से वोट देने की अपील की थी।