कांग्रेस पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव के सिलसिले में राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी-दलों की एकता का प्रयास कर रही है। इस एकता के सूत्र उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति से भी जुड़े हैं। सन 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त बना महागठबंधन जुलाई 2017 में टूट गया, जब जेडीयू ने एनडीए में शामिल होने का निश्चय किया। उसके पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, पर वहाँ बहुजन समाज पार्टी ने इस गठबंधन को स्वीकार नहीं किया। सवाल है कि क्या अब उत्तर प्रदेश में तीन बड़े दलों का गठबंधन बन सकता है? इस सवाल का जवाब देने के लिए दो मौके फौरन सामने आने वाले हैं।
कांग्रेस इस वक्त गठबंधन राजनीति की जिस रणनीति पर काम कर रही है, वह सन 2015 के बिहार चुनाव में गढ़ी गई थी। यह रणनीति जातीय-धार्मिक वोट-बैंकों पर आधारित है। पिछले साल पार्टी ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ इसी उम्मीद में गठबंधन किया था कि उसे सफलता मिलेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा एकसाथ नहीं आए हैं। क्या ये दोनों दल कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन में शामिल होंगे? इस सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश में इस साल होने वाले राज्यसभा चुनावों में मिलेगा।
कांग्रेस इस वक्त गठबंधन राजनीति की जिस रणनीति पर काम कर रही है, वह सन 2015 के बिहार चुनाव में गढ़ी गई थी। यह रणनीति जातीय-धार्मिक वोट-बैंकों पर आधारित है। पिछले साल पार्टी ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ इसी उम्मीद में गठबंधन किया था कि उसे सफलता मिलेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा एकसाथ नहीं आए हैं। क्या ये दोनों दल कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन में शामिल होंगे? इस सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश में इस साल होने वाले राज्यसभा चुनावों में मिलेगा।